खुशहाली के महापर्व, "बैसाखी" के अवसर पर, सभी देश वाशियों को बहुत-बहुत बधाई. इसके साथ-साथ आज के ही दिन हुए "जलियाँवाला बाग़ काण्ड" के शहीदों को श्रद्धांजलि.
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बैसाखी का पर्व किसानो के लिए बहुत ही खुशी का पर्व होता है. उनकी फसल तैयार हो जाती है, जिसे वो बैसाखी वाले दिन से काटना प्रारम्भ करते हैं. आज के दिन उनको अपनी कई महीनो की मेहनत का फल मिलता है. लेकिन बैसाखी के इस खुशहाली के पर्व से एक दुखद घटना भी जुडी हुई है. यह घटना है अंग्रेजों द्वारा किया जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड.
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बैसाखी का पर्व किसानो के लिए बहुत ही खुशी का पर्व होता है. उनकी फसल तैयार हो जाती है, जिसे वो बैसाखी वाले दिन से काटना प्रारम्भ करते हैं. आज के दिन उनको अपनी कई महीनो की मेहनत का फल मिलता है. लेकिन बैसाखी के इस खुशहाली के पर्व से एक दुखद घटना भी जुडी हुई है. यह घटना है अंग्रेजों द्वारा किया जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड.
जालियाँवाला बाग, भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में, स्वर्ण मन्दिर के निकट है. जलियाँ बाला बाग़ में रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी, जिसमें जनरल डायर नामक एक अँगरेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं थी, जिसमें 1000 से अधिक व्यक्ति मरे और 2000से अधिक घायल हुए.
13 अप्रैल 1919 को डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी तथा रोलेट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग में लोगों ने एक सभा रखी थी, पंजाब के तत्कालीन गवर्नर "माइकल ओडवायर" ने "जनरल डायर" को आदेश दिया कि- वह भारतीयों को सबक सिखा दे. "माइकल ओडवायर" के आदेश पर "जनरल डायर" ने यह काण्ड किया था.
"जनरल डायर" ने 90 सैनिकों को लेकर जलियाँवालाबाग को चारों ओर से घेर लिया और सभा में उपस्थित लोगों पर अंधाधुँध गोलीबारी करवा दी, जिसमें सैकड़ों भारतीय मारे गए. जान बचाने के लिए बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद एक कुएं में छलांग लगा दी. जलियाँवाला बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि- 120 शव तो सिर्फ कुए से ही मिले थे.
आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 371 बताई गई जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार 1500 से 1800 लोग मारे गए. अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी. जबकि अम्रतसर के लोग मानते हैं कि- उस दिन उस काण्ड में लगभग 3000 लोग मारे गए थे.
जलियाँबाला बाग़ की उस सभा में एक किशोर युवक "उधम सिंह", लोगों को पानी पिलाने का काम कर रहां था. ये सारी भयंकर ह्रदय विदारक घटना उधम सिंह की आँखों के सामने घटी थी. उधम सिंह ने इस हत्याकांड का बदला लेना अपने जीवन का एकमात्र उदेश्य बना लिया था. इसके लिए वह लन्दन गया और वहा जाकर इस काण्ड का बदला लिया.
उधमसिंह ने लन्दन जाकर, एक सभा के बीचो बीच, अपनी पिस्तौल से "माइकल ओडवायर" का बध करके इस हत्या काण्ड का बदला लिया. "माइकल ओडवायर" का बध करने के बाद उधमसिंह ने भागने के बजाये अपनी गिरफ्तारी देकर सारी दुनिया को जलियाँवाला बाग के बारे में बताया. ये घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है.
इस हत्याकांड के बाद रबिन्द्रनाथ टैगोर ने 'सर' की उपाधि लौटा दी थी. सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चन्द्र शेखर आजाद, सुभाष चन्द्र बोस, रामप्रसाद बिस्मिल, असफाक उल्ला खान, रोशन सिंह, आदि अनेकों क्रांतिकारियों के जीवन पर इस घटना का बहुत गहरा प्रभाव पडा था. देशभक्तों के लिए जलियाँवाला बाग़ एक पवित्र तीर्थ स्थल है.
जय हिन्द, वन्दे मातरम, भारत माता की जय
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