हमारे देश के वामपंथी इतिहासकारों ने भारत के महान वीरों और वीरांगनाओं के साथ सदैव अन्याय किया है. इन तथाकथित इतिहासकारों ने या तो केवल विदेशी आक्रमणकारियों का गुणगान किया है या फिर कांग्रेसियों का. देश के लिए अपनी जान लड़ाने वाले स्वाभिमानी वीरो को, यह लोग हमेशा ही हाशिये पर डालने की कोशिश करते रहे.

लेकिन ऐसे वीर वीराग्नाओ का इतिहास लोक कथाओं और देशभक्त लेखको के माध्यम से समांतर में चलता रहा. कई विदेशी इतिहासकारों ने भी उनपर लिखा. मेरी कोशिश भी रहती है कि - ऐसे महान वीरों - वीरांगनाओ की गाथा आप तक पहुंचाता रहूँ. आज प्रस्तुत है गडवाल की रानी "कर्णावती" की कहानी जिसने मुघलों की नाक काटी थी.
14 फरवरी 1628 को शाहजहां आगरा का राजा बना. अपने राज्याभिषेक के समय उसने सभी छोटे मोटे राजाओं को आने का निमंत्रण दिया. उस समय गढ़वाल पर राजा महिपतशाह राज करते थे. स्वाभिमानी राजा महिपतशाह को मुघलो की अधीनता स्वीकार नहीं थी इसलिए वे उस कार्यक्रम में नहीं गए. इस बात को लेकर शाहजहाँ उनसे नाराज हो गया.
नजीबाबाद का नवाब, जो पहले से ही राजा महिपतशाह से ईर्ष्या रखता था, उसने "शाहजहां" को नाराज देखकर और ज्यादा भडकाने का काम किया. उसने बताया कि गडवाल के श्रीनगर में सोने की खाने हैं, इसके अलावा गढ़वाल की लडकिया बहुत सुन्दर होती हैं. चिढ, लालच और कामंधता के चलते शाहजहाँ गडवाल पर हमला करने की सोंचने लगा.
लेकिन राजा महिपतशाह और इनके सेनापति माधोसिंह और रिखोला लोदी की वीरता के किस्से इतने मशहूर थे कि - मुघलों की हिम्मत ही नहीं हुई गढ़वाल पर हमला करने की. इसी बीच राजा महिपतशाह की अकालम्रत्यु हो गई, उनका पुत्र प्रथ्वीपतिशाह उस समय मात्र 7 बर्ष के थे. तब रानी कर्णावती ने पुत्र को राजा घोषित कर उनकी जगह राज किया.
रानी कर्णावती बहुत ही बुद्धिमान और गौरवमयी व्यक्तित्व की स्वामिनी थी. सिक्खों के गुरु "गुरु हर गोविन्द सिंह" जी और शिवाजी महाराज के गुरु "समर्थ गुरु रामदास" जी का भी उनको आशीर्वाद प्राप्त था. राजा की म्रत्यु के बारे में जानकर शाहजहाँ ने 1635 में नजाबत खान नाम के मुग़ल सरदार को विशाल सेना देकर गढ़वाल पर हमला करने भेज दिया.
नजाबत खान को हुकुम दिया कि - गढ़वाली लड़कियों को ज़िंदा सही सलामत उसके हरम में लाया जाए, जिससे इन स्वाभिमान गढ़वालियों को अपमानित कर उनकी नाक काट सके. नजाबत खान ने अपने जबरदस्त हमले में दूनघाटी और चंडीघाटी (ऋषिकेश) को अपने कब्जे में ले लिया. इस बिषम परिस्थिति में रानी ने कूटनीति से काम लिया.
रानी ने उन्हें अपनी सीमा में घुसने दिया और जब वे लक्ष्मणझूला से आगे बढ़े, तो उनके आगे और पीछे जाने के, दोनों तरफ के रास्ते रोक दिये. मुघल सैनिक एक तरफ विशाल गंगा और दुसरी तरफ पहाड़ के बीच घिर गए. पहाड़ी रास्तों से अनभिज्ञ मुगल सैनिकों के पास खाने की सामग्री समाप्त होने लगी और मिलने का रास्ता भी बंद हो गया.
मुघल सेना पर, पहाडी सैनिक कभी भी हमला कर आसानी से शिकार बना लेते थे. इससे घबराकर नजाबत खान ने रानी के पास संधि का सन्देश भेजा. तब रानी ने अपना जबाब भेजा कि - अपनी और अपने सैनिको की जान बचानी है तो तुम सबको अपनी नाक कटवानी पड़ेगी. कायर मुग़ल सैनिक अपनी जान बचाने के लिए नाक कटाने को तैयार हो गए.
सैनिकों को भी लगा कि नाक कट भी गयी तो क्या जिंदगी तो बची रहेगी. सभी मुगल सैनिकों के हथियार छीनकर, नाक काट दी गयी. नाक कटा कर मुघल सेना आगरा वापस चल दी. शाहजहाँ को जब खबर मिली तो उसको बहुत शमिन्दगी भी हुई और नजाबत खान पर गुस्सा भी आया. उसने आगरा पहुँचते ही नजाबत को बंदी बनाने का हुक्म दिया.

इटली के लेखक "निकोलाओ मानुची" (जो औरंगजेब के समय में आये थे) ने अपनी किताब 'स्टोरिया डो मोगोर' में गढ़वाल की एक रानी के बारे में बताया है जिसने मुगल सैनिकों की नाट काटी थी. शाहजहां के कार्यकाल पर बादशाहनामा लिखने वाले "अब्दुल हमीद लाहौरी" और 'मासिर अल उमरा' लिखने वाले शम्सुद्दौला खान ने रानी कर्णावती का उल्लेख किया है.
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