"डा. भीमराव रामजी आंबेडकर" का जन्म मध्य-प्रदेश के मऊ में हुआ था. उनके पिता का नाम "रामजी मालोजी सकपाल" और माँ का नाम "भीमाबाई मुरबादकर" था. वे अपने माता-पिता की 14 वीं व अंतिम संतान थे . उनके पूर्वज लंबे समय से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे और अंग्रेजों के प्रति बहुत बफादार थे. उनके पिता भी अंग्रेजों की भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवारत थे.
1894 मे रामजी मालोजी सकपाल सेवानिवृत्त हो जाने के बाद सपरिवार सतारा चले गए, जहां 1896 मे अम्बेडकर की मां की मृत्यु हो गई. दो साल बाद 1898 में उनके पिता ने पुनर्विवाह कर लिया. उसके बाद उत्पन्न हुई बिषम परिस्थितियों में उनके नौ भाई बहन अकाल म्रत्यु के शिकार हो गए. उनके केवल दो भाई, बलराम और आनंदराव तथा दो बहने मंजुला और तुलसा ही इन कठिन हालातों मे जीवित बच पाये.
वे महार जाति से थे, जो अछूत कहे जाते थे लेकिन उनके एक ब्राह्मण शिक्षक "महादेव कृष्ण अम्बेडकर" जी, उनकी असाधारण योग्यता के कारण, उनसे विशेष स्नेह रखते थे. जातिगत भेदभाव और पिता की उपेक्षा से निराश बालक " भीमराव रांजी सकपाल" को उनके महान शिक्षक "महादेव कृष्णा अम्बेडकर" जी ने अपना पुत्र कहते हुए, अपना सरनेम "अम्बेडकर" दिया और उसके बाद "भीमराव रामजी सकपाल" हमेशा के लिए "भीमराव रामजी अम्बेडकर" हो गए.
1908 में उन्होंने बंबई के एक सरकारी कॉलेज में प्रवेश लिया और बड़ौदा के गायकवाड़ शासक "सहयाजी राव तृतीय" से पच्चीस रुपये प्रति माह का वजीफा़ प्राप्त किया. 1912 में उन्होंने राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में डिग्री प्राप्त कीऔर बड़ौदा राज्य सरकार की नौकरी को तैयार हो गये. उसके बाद गायकवाड शासक ने उनको "संयुक्त राज्य अमेरिका" के "कोलंबिया विश्वविद्यालय" मे जाकर अध्ययन के लिये भी छात्रवृत्ति भी प्रदान की.
1916 में पी. एच.डी. पूरी करने के बाद, वे लंदन चले गये जहाँ उन्होने कानून का अध्ययन और अर्थशास्त्र में शोध की तैयारी के लिये अपना नाम लिखवा लिया. लेकिन छात्रवृत्ति समाप्त हो जाने के कारण उन्हें भारत वापस लौटना पडा़. यहाँ कुछ समय बडौदा रियासत में सचिव की नौकरी की फिर उसके बाद बंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में काम किया.
1920 में उन्होंने बंबई में, साप्ताहिक "मूकनायक" के प्रकाशन की शुरूआत की. अम्बेडकर ने इसका इस्तेमाल जातीय भेदभाव से लड़ने तथा समाज में जागरूकता फैलाने के लिए किया. एक सम्मेलन के दौरान दिये गये उनके भाषण से कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया. 1920 में कोल्हापुर के महाराजा के सहयोग से वे एक बार फिर से इंग्लैंड गए. 1923 में उन्होंने अपना शोध "प्रोब्लेम्स ऑफ द रुपी" पूरा कर लिया.
उन्हें लंदन विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ साईंस की उपाधि प्रदान की गयी, इसके साथ ही उन्होंने कानून की पढ़ाई भी पूरी की जिससे उन्हें ब्रिटिश बार मे बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया. भारत आने के बाद उन्होंने वकालत शुरू की जो अच्छे से चल निकली. डॉ. अम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया. उन्होंने "सबके लिए सार्वजानिक जल के अधिकार" के लिए आन्दोलन किया.
इसमें सफल होने पर अछूतों के लिए, हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया. सन् 1926 में, वो बंबई विधान परिषद के एक मनोनीत सदस्य बन गये. 1927 में उन्होंने अपना दूसरी पत्रिका "बहिष्कृत भारत" शुरू की. कुछ ही समय में डॉ . अम्बेडकर सबसे बडी़ अछूत राजनीतिक हस्ती बन गए. उनकी बढ़ती लोकप्रियता के चलते 1931 मे लंदन में उन्हें दूसरे गोलमेज सम्मेलन में आमंत्रित किया गया.
1936 में, अम्बेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जिसने 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 15 सीटें जीती. उन्होंने अपनी पुस्तक "जाति का विनाश" भी इसी वर्ष प्रकाशित की, जो उनके न्यूयॉर्क मे लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी. 1941 और 1945 के बीच में उन्होंने बड़ी संख्या में कई विवादास्पद पुस्तकें और पर्चे प्रकाशित किये जिनमे ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ भी शामिल है, जिसमें उन्होने मुस्लिम लीग की आलोचना की .
अम्बेडकर, इस्लाम और दक्षिण एशिया में उसकी रीतियों के भी आलोचक थे. उन्होने भारत विभाजन का पक्ष लिया, लेकिन साथ ही आवादी की अदला-बदली का भी पक्ष लिया. उन्होंने मुस्लिम समाज मे व्याप्त बाल विवाह और महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की भी घोर निंदा की थी. उन्होंने लिखा कि मुस्लिम समाज मे तो हिंदू समाज से भी अधिक सामाजिक बुराइयाँ हैं और मुसलमान उन्हें "भाईचारे" जैसे नरम शब्दों के प्रयोग से छुपाते हैं.
अपने विवादास्पद विचारों और गांधी व कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अम्बेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब, 15 अगस्त, 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व मे आई तो उसने अम्बेडकर को देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया.
29 अगस्त 1947 को, अम्बेडकर को नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया. उनकी अध्यक्षता में तैयार किया गया संविधान, प्रत्येक नागरिक को , सम्मान से जीने का संवैधानिक अधिकार देता है. इसमें नागरिक स्वतंत्रताओं की सुरक्षा प्रदान की गई है जिससे धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया.
डा. अम्बेडकर, महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भी उग्र आलोचक थे. डा. अम्बेडकर ने गाँधी जी की आलोचना करते हुये कहा कि - असली महात्मा "गांधी जी " नही बल्कि , असली महात्मा तो "ज्योतिवा फुले" थे. 14 अक्टूबर 1956 को अपने अनुयायियों के साथ उन्होंने "बौद्ध धर्म" अपना लिया था. "बौद्ध धर्म" अपनाने के कुछ ही दिन बाद, 6 दिसंबर 1956 को अचानक उनकी मृत्यु हो गई.
उनकी म्रत्यु को लेकर तरह तरह की अफवाहे भी चलती रही है. कोई कहता है कि- वे रात खाना खाकर ठीक ठाक सोये थे परन्तु सुबह उठे नहीं. कुछ लोगों का कहना है कि- उनका दिल्ली में रोड एक्सीडेंट हुआ था. इसके अलाबा सोशल मीडिया पर उनकी म्रत्यु को लेकर एक अलग ही तरह की स्टोरी चल रही है जिसमे कहा गया है कि- भरतपुर के राजा चौधरी बच्चू सिंह ने उनको संसद में ही गोली मारी थी.
खैर जो भी हुआ हो, 7 दिसंबर को चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली मे उनका अंतिम संस्कार किया गया जिसमें सैकड़ों हजारों समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया था. बाबा साहब का जीवन प्रेरणा देता है कि - कोई भी व्यक्ति चाहे उसका जन्म चाहे कहीं भी, किसी भी जाति में या गरीब परिवार में ही क्यों न हुआ हो, अगर कोशिश करे तो वह अपनी मेहनत और योग्यता के दम पर, किसी राष्ट्र का संविधान तक को लिखने की जिम्मेदारी पा सकता है.
उन्होंने संविधान में आरक्षण का प्रावधान रखकर, दलितों और पिछडों आगे बढ़ने का अवसर प्रदान किया. आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक न्याय था लेकिन आज इसका लाभ केवल वही दलित और पिछड़े ले पा रहे हैं जो पहले से ही आगे हैं. जो दलित/ पिछड़े लोग आज मजबूत आर्थिक और सामाजिक स्थिति में हैं उनको अन्य जरुरतमंद दलितों और पिछडों के हित में खुद ही अपने लिए बार - बार आरक्षण लेने से मना कर देना चाहिए.
उन्होंने भी अपने पिता की तरह दो विवाह किये . उनका पहला विवाह 15 बर्ष की आयु में 1906 में रामाबाई आंबेडकर से हुआ. बाद में उन्होंने भी अपने पिता की तरह 58 साल की आयु में सविता आंबेडकर से दूसरा विवाह किया था. जिस तरह अपने पिता के दुसरे विवाह से वे दुखी रहे उसी तरह उनके दुसरे विवाह से , उनकी पहली पत्नी के बच्चे भी उनसे आजीवन नाराज रहे.
जय हिन्द , वन्दे मातरम , भारत माता की जय......................