Monday, 23 September 2019

संघ प्रार्थना : प्रारम्भ और विकास का इतिहास

संघ में वर्तमान में प्रचलित "प्रार्थना", "आज्ञायें" ,"घोष रचनाएं" ,"गणवेश", आदि सभी आज जैसी है हमेशा से बैसी नहीं थी. समय-समय पर आवश्कतानुसार उनमें परिवर्तन होता रहा है, जैसे अभी तीन साल पहले विजय दशमी 2016 में गणवेश में परिवर्तन हुआ था. अपने लचीले होने के कारण ही संघ आज दुनिया का सबसे बड़ा संगठन बन सका है.
"राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" में हमेशा देश-काल और परिस्थिति के अनुसार आवश्यक परिवर्तन किये जाते रहे हैं. मैं अपने लेखों के माध्यम से अन्य बदलाबो के बारे में भी जानकारी देता रहा हूँ. आज मैं संघ की प्रार्थना (भारत माता की प्रार्थना ) के अर्थ, विकास और इतिहास पर चर्चा करूँगा। 1925 की विजयदशवी को संघ की स्थापना हुई थी.
एक पार्क में कुछ बच्चो के खेलकूद के रूप में संघ को स्थापित किया. एक घंटे की शाखा में बच्चों को व्यायाम और खेलकूद कराये जाते थे. इसके बाद उनको बौद्धिक सुनाया जाता. बौद्धिक के बाद उस समय का कोई भी प्रचलित हिंदी / मराठी गीत गववाकर शाखा को बिकीर कर दिया जाता था. ऐसा लगभग 6 माह तक चलता रहा.
अप्रेल 26 में निर्णय लिया गया कि- शाखा में एक निश्चित प्रार्थना और जय घोष बोले जाए. तब उस समय की प्रचलित प्रार्थना में से ही एक प्राथना तय की गई. प्रार्थना में दो पद निश्चित किये गए, जिसमे एक पद मराठी व एक पद हिंदी का था. मराठी पद उन दिनों महाराष्ट्र के स्कूलों में और हिंदी पद हिंदी राज्यों के स्कूल की प्राथना थी
इसी वन्दना में कुछ आवश्यक परिवर्तन करके मराठी / हिंदी स्कूल की प्रार्थना को संघ की प्रार्थना के लिए चुना गया। तत्कालीन प्रार्थना के अन्त में छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रेरणा स्रोत्र "श्री समर्थ रामदास स्वामी" जी का जयघोष बोला जाता था. यह प्रार्थना लगभग 14 साल तक शाखाओं में की जाती रही. यह प्रार्थना इस प्रकार थी.
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मराठी :-
"नमो मातृभूमि जिथे जन्मलो मी ।
नमो आर्यभूमि जिथे वाढलो मी ।।
नमो धर्मभूमि जियेच्याच कामी ।
पड़ो देह माझा सदा ती नमीमी ।।
हिन्दी :-
"हे गुरु श्री रामदूता , शील हमको दीजिये,
शीघ्र सारे दुर्गुणों से ,मुक्त हमको कीजिये।।
लीजिये हमको शरण में , राम पन्थी हम बनें,
ब्रह्मचारी धर्म रक्षक , वीरव्रत धारी बनें ।।
"राष्ट्र गुरु श्री समर्थ रामदास स्वामी की जय !
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संघ का विस्तार संपूर्ण भारतवर्ष में फैलने लगा, तो प्रार्थना की भाषा और शब्दों में बदलाब की जरूरत महसूस होने लगी. फरवरी 1939 में सिन्दी में एक बैठक हुई उसमें प.पू.डॉक्टर जी, प.पू.श्री गुरु जी, श्री तात्याराव तैलंग, बाबासाहब आप्टे, विट्ठलराव पतकी, श्री बाबाजी सालोडकर, श्री कृष्णराव मोहरीर, नाना साहब टालाटूले, आदि कार्यकर्ता उपस्थित थे.
इस बैठक में विचारविमश कर सर्वसम्मति से यह निर्णय हुआ कि- अब प्रार्थना को उस भाषा में होना चाहिए जो समस्त समाज व सम्पूर्ण भारतवर्ष में स्वीकार्य हो. इसी बैठक में संस्कृत भाषा में प्रार्थना का ऐतिहासिक निर्णय हुआ, क्योंकि संस्कृत भाषा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी तथा राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ने वाली है और समस्त हिन्दु समाज को स्वीकार्य है.
अब प्रार्थना का गद्य और पद्य प्रारूप का दायित्व क्रमशः नाना साहब टालटुले व श्री नरहरि नारायण भिड़े जी को दिया गया. उनसे कहा गया कि ऐसी प्रार्थना की रचना करे, जिसमे भारत माता को नमन, संघ का लक्ष्य , लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग, लक्ष्य प्राप्ति के लिए आवश्यक गुण, संघ के अधिष्ठान, संकल्प आदि सभी कुछ को समाहित किया गया हो.
तब नाना साहब टालटुले ने गद्य के रूप में क्रमबद्ध तरीके से ये सब बातें लिखीं. इस गद्य रचना पर श्री "नरहरि नारायण भिड़े" ने सुन्दर पद्य के रूप में गीत लिखकर फरवरी 1939 लिखकर दिखाया. गीत सभी को पसंद आया. बहुत ही अच्छा गीत गाने वाले एक स्वयंसेवक "यादवराव जोशी" ने गीत की ले बनाने और स्वरबद्ध करने की जिम्मेदारी ली.
"यादवराव जोशी" और "बाबु सुधीर फडके" ने मिलकर गीत की लय तैयार की. इस प्रार्थना का प्रथम गायन माननीय यादवराव जोशी जी के द्वारा 1940 में पुणे के संघ शिक्षा वर्ग में किया गया. प्रार्थना पूरी तरह से पुरुषार्थवादी है. प्रार्थना में भगवान् अथवा देश से कुछ माँगा नहीं गया है बल्कि इस देश के लिए अपना सबकुछ देने का भाव है.
"यादवराव जोशी" और "बाबु सुधीर फडके" ने मिलकर गीत की लय तैयार की. इस प्रार्थना का प्रथम गायन माननीय यादवराव जोशी जी के द्वारा 23 अप्रेल 1940 में पुणे के संघ शिक्षा वर्ग में किया गया. प्रार्थना पूरी तरह से पुरुषार्थवादी है. प्रार्थना में भगवान् अथवा देश से कुछ माँगा नहीं गया है बल्कि इस देश के लिए अपना सबकुछ देने का भाव है.
इसमें भगवान् से गुण देने की मांग की गई है इसके अलावा यही कहा गया है कि - हम कार्य करेंगे या हम प्रयास हम करेंगे. संघ का सिद्धांत, उद्देश्य, कार्यपद्धति आदि विभिन्न बातों का समावेश सूत्र रूप में किया गया है. अतः प्रत्येक स्वयंसेवक को प्रार्थना कण्ठस्थ उसके स्वर, उच्चारण, शब्दार्थ और भावार्थ आदि का सम्यक ज्ञान आवश्यक है.
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वर्तमान प्रार्थना
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नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥१॥
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बद्धा कटीयम्
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम्
सुशीलं जगद् येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत् कण्टकाकीर्णमार्गम्
स्वयं स्वीकृतं नः सुगङ्कारयेत्॥२॥
समुत्कर्ष निःश्रेयसस्यैकमुग्रम्
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्राऽनिशम्।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम्
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥३॥
॥भारत माता की जय॥
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प्रार्थना का भावार्थ
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हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा (सदैव) नमस्कार करता हूँ। तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है।
हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो। मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
हे सर्वशक्तिशाली परमेश्वर! हम हिन्दूराष्ट्र के अंगभूत तुझे आदरसहित प्रणाम करते है। तेरे ही कार्य के लिए हमने अपनी कमर कसी है। उसकी पूर्ति के लिए हमें अपना शुभाशीर्वाद दे।
हे प्रभु! हमें ऐसी शक्ति दे, जिसे विश्व में कभी कोई चुनौती न दे सके, ऐसा शुद्ध चारित्र्य दे जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाये ऐसा ज्ञान दे कि स्वयं के द्वारा स्वीकृत किया गया यह कंटकाकीर्ण मार्ग सुगम हो जाये।
उग्र वीरव्रती की भावना हम में उत्स्फूर्त होती रहे जो उच्चतम आध्यात्मिक सुख एवं महानतम ऐहिक समृद्धि प्राप्त करने का एकमेव श्रेष्ठतम साधन है। तीव्र एवं अखंड ध्येयनिष्ठा हमारे अंतःकरणों में सदैव जागती रहे।
तेरी कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को वैभव के उच्चतम शिखर पर पहुँचाने में समर्थ हो।
भारत माता की जय।

3 comments:

  1. VERY GOOD ARTICAL, THANKS FOR IT

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  2. अत्यन्त प्रेरणादायक,
    अति प्रशंसनीय, सादर साधुवाद

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  3. बहुत सुंदर। धन्यबाद

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