
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जर्मन जाकर हिटलर से मिले और विश्वयुद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ भारत की जनता द्वारा हिटलर की मदद करने का बचन दिया. उन्होंने आजाद हिन्द फ़ौज का पुनर्गठन किया. उन्होंने भारतीय मूल के ब्रिटिश सैनिको और आम नागरिकों से आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल होने और आर्थिक मदद करने आव्हान किया.
लाखों युवा नेताजी के आव्हान पर आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल हो गए या फिर अपने आपको आजाद हिन्द फ़ौज का सैनिक कहते हुए अपने अपने गाँव / शहर / कसबे में ही अंग्रेजों और अंग्रेजों के चापलूस भारतीयों के खिलाफ कार्यवाही करने लगे. आजाद हिन्द फ़ौज ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ों को खोखला कर दिया.
ऐसे समय में जब अंग्रेज कमजोर हो गए थे तब अंग्रेजो के द्वारा बनाई गई और देशी अंग्रेजों द्वारा चलाई जा रही पार्टी "कांग्रेस" ने विश्वयुद्ध में अंग्रजों का साथ देने का ऐलान कर दिया. अब भारत में ही आम जनता दो वर्गों में विभाजित हो गई. अब विश्वयुद्ध में सुभाष समर्थक अंग्रेजों के खिलाफ थे और गांधी समर्थक अंग्रेजों के साथ थे.
नेताजी को अंग्रेजों से लड़ाई जारी रखने के लिए, अपनी फ़ौज के लिए बहुत ज्यादा धन की आवश्यकता थी. उन्होंने भारतीयों से आर्थिक मदद का आव्हान किया. उनके आव्हान पर देशभक्तों ने अपना धन-सोना-चांदी आदि आजाद हिन्द फ़ौज को समर्पित कर दिया. उस समय सौराष्ट्र के एक मुस्लिम व्यापारी ने जो किया वह तो बेमिशाल है.
सौराष्ट्र (गुजरात) के एक धनवान व्यापारी "मेमन अब्दुल हबीब युसूफ मारफानी" उस समय रंगून में थे. उन्होंने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से रंगून में मुलाक़ात की और सारी पूंजी, सोना, जायदाद "आजाद हिन्द फ़ौज" को समर्पित कर दी. जिसकी कीमत उस जमाने में लगभग एक करोड़ थी, आज कितनी होगी इसका अंदाज आप खुद लगा सकते हैं.
नेताजी ने ‘आजाद हिन्द बैंक’ का गठन किया और यह पूंजी उस बैंक की प्रारम्भिक पूंजी घोषित कर दी गई. इसके अलाबा नेताजी ने "मारफानी" को 'सेवक ऐ हिन्द' का खिताब देकर अपनी इस बैंक का प्रमुख घोषित कर दिया. नेताजी ने कहा - 'हबीब सेठ ने आजाद हिन्द फौज की मदद की है, उनका यह योगदान हमेशा याद रखा जायेगा'.
आजाद हिन्द फ़ौज ने जापान के सहयोग से भारत का काफी हिस्सा अंग्रेजों से आजाद करा लिया. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अंडमान में आजाद हिन्द फ़ौज का झंडा फहराकर भारत की आजादी की घोषणा कर दी और खुद को भारत का प्रथम प्रधानमंत्री घोषित कर दिया. मगर यह बात अंग्रेजों के साथ साथ देशी अंग्रेजों को भी नागबार गुजरी.
दुर्भाग्य से विश्वयुद्ध में जापान-जर्मन की हार हो गई और नेताजी की दुर्घटना में म्रत्यु अथवा गायब हो जाने के कारण आजाद हिन्द फ़ौज भी बिखर गई. कुछ समय बाद जब देश आजाद हुआ तो सत्ता पर कब्ज़ा उस कांग्रेस का हो गया जो विश्वयुद्ध में आजाद हिन्द फ़ौज के खिलाफ और अंग्रेजों के साथ थी.
बहुत सारे लोग आज भी यह मानते हैं कि- आजाद हिन्द बैंक के खजाने पर भी तत्कालीन सरकार ने कब्ज़ा कर लिया था और उसे देश की सम्पत्ति घोषित करने के बजाये, कुछ लालची नेताओं ने अपनी निजी समाप्ति बना लिया. साथ ही "मेमन अब्दुल हबीब युसूफ मारफानी" जैसे देशभक्त दानवीर का नाम इतिहास में दर्ज तक नहीं होने दिया.
मुसलमानो को लेकर संघ को कोसने वालों को बताना चाहता हूँ कि - मैंने उनका नाम सबसे पहले 1990 में बरेली , संघ के प्रचारक "विनोद जी" के बौद्धिक में सुना था. उसके बाद पाञ्चजन्य में उनपर एक लेख पढ़ा था. कई साल बाद जब इंटर नेट आया तो मैंने गुमनाम महापुरुषों के बारे में खीजना प्रारम्भ कियाम. उस खोज के बाद यह लेख लिखा है.
मैंने अपनी अभी तक की जानकारी के हिसाब से तो ठीक ठाक लिख दिया है लेकिन अभी मैं खुद संतुष्ट नहीं हूँ. अभी मैं उनके बारे में और जानना चाहता हूँ. यदि आपमें से किसी के पास "मेमन अब्दुल हबीब युसूफ मारफानी" जी के बारे में कोई विशेष जानकारी हो तो कमेन्ट बाक्स में देने की कृपा करें, जिससे लेख को और ज्यादा विस्तार दिया जा सके.
"मेमन अब्दुल हबीब युसूफ मारफानी" जैसे गुमनाम महापुरुषों के बारे में जानकारी पहुंचाना हम सभी का कर्तव्य होना चाहिए.
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