Sunday, 6 October 2019

जिन्ना का डायरेक्ट एक्शन और गोपाल पाठा का प्रतिकार

जो एक बार धोखा खा जाये उसे धोखा कहा जा सकता है लेकिन अगर कोई कौम बार बार धोखा खाकर भी वही मूर्खता दोहराता रहे, तो उसे सुतियापा कहते हैं. हिन्दुओ पर यह बात पूरी तरह से लागू होती है. बार बार विधर्मियों के धोखे और अत्याचार झेलने के बाद भी उनसे भाई-चारे की उम्मीद करते रहना मूर्खता नहीं तो और क्या है ?
द्वितीय विश्वयुद्ध भले ही इंग्लैण्ड और उसके मित्र देशों ने जीत लिया था परन्तु विश्वयुद्ध ने अंग्रेजों की कमर तोड़कर रख दी थी. आजाद हिन्द फ़ौज के सेनानियों ने अंग्रेजी सेना को कमजोर बना दिया था, भारत के लोग अपने गाँव कस्बो में भी खुदको आजाद हिन्द फ़ौज का सदस्य करते हुए, अंग्रेजों और उनके भारतीय चमचो पर लगातार हमले कर रहे थे.
भारत का ब्रिटिश शासन से आजाद होना तय हो चुका
था. ऐसे में जिन्ना ने मुसलमानो के लिए अलग देश की मांग को और तेज कर दिया. मुस्लिम लीग के लोग सरे देश में हिन्दुओं और हिन्दुस्थान को लेकर जहर उगलते घूम रहे थे. अंग्रेज सरकार भी ऐसे मुसलमानो को शह दे रही थी कि - जो हिन्दुओं के खिलाफ अनाप शनाप बोल रहे थे.
उस समय बंगाल का मुख़्यमंयत्री था सोहरवर्दी और उसका दाहिना हाथ था शेख मुजीबुर्रहमान, वही शेख मुजीबुर्रहमान जिसको 1971 में उसके सहधर्मी पापीस्तानियों से भारत ने बचाया था. बंगाल की अंग्रेजी पुलिस में 50% मुस्लिम थे. उस समय कोलकाता का मेयर था शरीफ खान, जो केवल नाम का ही शरीफ था काम का नहीं.
24 में से 22 पुलिस मुख्यालयों में मुस्लिम अधिकारी रख दिए गए थे और 2 में भी हिन्दू के बजाय एंग्लो इंडयन को बिठा दिया था. 16 अगस्त को मुस्लिम लीग ने पापिस्तान बनाने के लिए "डायरेक्ट एक्शन" अभियान की घोषणा कर दी, जिन्नाह ने कहा था कि- हमने संवैधानिक रास्ते को छोड़ दिया है हमारी जेब में पिस्तौल है.
16 अगस्त की सुबह मुस्लिम लीग ने विशाल जुलुस निकाला. मुख्यमंत्री सुहरावर्दी के नेतृत्व में विशाल सभा हुई. हर व्यक्ति ने भीड़ को हिन्दुओं के खिलाफ उकसाया. सभा के बाद लौटती हुई मुसलमानो की भीड़ ने हिन्दुओं की दुकानों पर लूटपाट तथा हिन्दुओं की हत्या करना शुरू कर दी. बड़े पैमाने पर आगजनी और बलात्कार किये गए.
हावड़ा में तो दंगाइयों का नेतृत्व ही शरीफ खान कर रहा था. मुख्यमंत्री सुहरावर्दी और गवर्नर ऍफ़. बेरोज मजे से तमाशा देख रहे थे. कुछ ही घंटों में 10 हजार से ज्यादा हिन्दुओं की लाशें सडकों पर पडी थी. कटे पिटे हिन्दुओं की तो कोई गिनती ही नहीं थी. एक लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए, चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था.
स्टेटमैन के संवाद दाता ने इस घटना पर लिखा था कि-- विश्वयुद्ध के अनुभव ने मुझे कठोर बना दिया था, लेकिन इस हत्याकाण्ड ने मुझे भी बिचलित कर दिया है. न यह युद्ध है और न ही यह दंगा है, इसके लिए मध्ययुग से कोई शब्द खोजना होगा. तथाकथित अहिंसावादी महान आत्मा के मुँह से भी उस हत्याकांड के बिरोध में एक शब्द नहीं निकला
दो दिन तक हिन्दुओं का कत्लेआम और बलात्कार चलता रहा. अब हिन्दुओं को समझ आ चूका था कि - ये सब सरकार के इशारे पर हो रहा है इसलिए सरकार से मदद की उम्मीद करने के बजाये खुद ही मुकाबला करना पड़ेगा. हिन्दू महासभा के नेता डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने हिन्दुओं से आव्हान किया कि मरना ही है तो लड़कर मरो. उन्होंने कलकत्ता के एक आपराधिक रिकार्ड वाले हिन्दू बाहुवली गोपाल दास मुखर्जी (गोपाल पाठा) से भी मदद मांगी.

गोपाल पाठा, तत्कालीन कलकत्ता का एक मशहूर बाहुबली था, लगभग 800 लड़के उसके आदेश पर मरने-मारने के लिए तैयार रहते थे. उन दिनों कोलकाता में अमेरिकी छावनी भी जिसके नीग्रो सैनिक चोरी से हथियार बेचते थे. गोपाल पाठा ने डा. मुखर्जी से हथियारों के लिए धन की व्यवस्था करने को कहा.  डा. मुखर्जी ने अपने साधनो एवं अनेकों मारवाड़ी व्यापारियों से काफी धन जुटाया.  उस धन से गोपाल पाठा ने अमेरिकी नीग्रोज़ से हथियार खरीदे.  

इसके बाद गोपाल ने दंगाइयों को उन्ही की भाषा में जवाब देना प्रारम्भ किया. देखते ही देखते बंगाल, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के हिन्दू सड़कों पर निकल आये और मुसलंमानो द्वारा किये गए उस हत्याकांड की प्रतिक्रिया देने लगे. केवल हिन्दू महासभा और आरएसएस के सदस्य ही नहीं बल्कि कांग्रेस के भी अनेकों हिन्दू साथ आ गए. हत्यारो को ढूढ़ ढूंढ कर निकाल कर सजा दी जाने लगी.

बाजी पलटते ही सरकार भी दंगा रोकने में सक्रीय हो गई और गांधीजी की भी महात्मागिरी जाग उठी. जब तक हिन्दू मरते रहे सरकार और गांधीजी शांत रहे लेकिन जैसे ही इसका उलट होना शुरू हुआ, फौरन वे लोग दंगा रोकने की अपील करने लगे. सरकार ने कई जगहों पर तो हिन्दुओं के ऊपर हेलीकाप्टर से भी फायरिंग की.
उस समय पूर्वी भारत की हिन्दू जनता ने "गोपाल पाठा" को अपना नेता मान लिया. गोपाल पाठा के आदेश पर हर हिन्दू मरने मारने को तैयार था. इधर गांधीजी आमरण अनशन पर बैठ गए और हिन्दुओं से हथियार डालने की अपील करने लगे. गांधी ने खुद दो बार गोपाल पाठा को मिलने के लिए बुलाया मगर वे गांधी से मिलने नहीं गए.
तब एक स्थानीय कांग्रेसी नेता ने गोपालजी से कहा कि - बापू का मान रखने के लिए ही एक दो हथियार उनके सामने डाल दो. इस पर गोपालजी ने कहा - जब हिन्दुओं की हत्या हो रही थी तब आपके बापू कहां थे ? मैंने इन हथियारों से हिन्दुओ की जान और हिन्दू महिलाओं की इज्जत्त की रक्षा की है, इन्हे किसी के पैरों में नहीं डाल सकता।
उसने अपने लडको को स्पष्ट आदेश दिया कि - तुम्हे एक के बदले 10 की हत्या करनी है. दरससल वह दंगा हिन्दुओं को मारकर / भगाकर कलकत्ता को पूर्वी पापिस्तान में मिलाने की साजिश थी. आज अगर कोलकाता भारत में है तो इन्ही गोपाल पाठा के कारण है. अब आप खुद बताइये, हिन्दुओं के लिए गांधी पुज्य्नीय होने चाहिए या गोपाल पाठा ?

4 comments:

  1. बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी है , हमें इस प्रकार की घटनाओं और ऐसे महापुरुषों की जानकारी सामान्य जनता के समक्ष रखनी चाहिए .

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  2. इस महापुरुष को कोटि कोटि नमन, समय बलवान था नही तो हम कोलकाता में नही रहते धन्य है श्यामा प्रसाद जी का जो इतना गुणवान व्यक्ति को समाज का रक्षक बनाया , पाठा की मूर्ति तो लगनी चाहिए ।

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  3. नमन गोपाल पाठा जैसे हिन्दू वीरों को

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  4. लेख में वर्षो का क्रम सही करे

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