Monday, 2 September 2019

बाढ़ और सूखे की समस्या का "अटल" समाधान

देश साल में चार महीने सूखे की चपेट में रहता है तो चार महीने बाढ़ में डूबता है. हर बर्ष हजारों करोड़ का नुकशान होता है, लाखों लोग प्रभावित होते हैं और हजारों लोग मारे जाते है. सूखे के समय टैंकर से पानी पहुंचाकर और बाढ़ के समय हेलीकाप्टर से खाना फेंककर, सरकारें यह समझ लेती है उसने बहुत महान काम कर दिया है.
बाढ़ और सूखे की यह समस्या हर साल की समस्या है और इसका स्थाई हल निकालना बहुत जरुरी है. बरसात में इतना पानी बरसता है कि - अगर उसका 5% भी स्टोर कर लिया जाए तो सालभर पानी की कमी नहीं होगी. लेकिन हम उस पानी को ऐसे ही नदियों में बह जाने देते हैं और और नदियाँ लोगों डुबोते हुए पानी समुन्द्र में डाल देती है.
बाढ़ और सूखे की समस्या का स्थाई हल यही है कि - एक तो बर्षा के जल को संग्रह किया जाए और दुसरा देश की सभी नदियों को नहरों के माध्यम से जोड़ दिया जाए. बर्षा के जल को संग्रह करने के दो उपाय है एक तो पारम्परिक तालाब जिनमे पानी भर जाये और धीरे धीरे रिसते हुए भूजल में मिल जाए तथा जिसको पशु - पक्षी सीधे ही इस्तेमाल करें.
जमीन घिर जाने के कारण तालाब के लिए स्थान नहीं बचा है लेकिन सड़क तथा बड़ी छतों पर गिरने वाले पानी को "रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम" के द्वारा ग्राउंड वाटर को रीचार्ज किया जा सकता है. ऐसा करने से धरती में भूजल का स्तर ऊपर आ जाएगा, जो सालभर काम आएगा इसके अलावा कम पानी बहने से बाढ़ की समस्या भी कम होगी.
दुसरा उपाय है नदियों को जोड़ना. भूतपूर्व प्रधानमंत्री "अटल बिहारी बाजपेई" जी ने इस अभियान की शुरुआत की थी. उनका बिचार था कि- यदि देश की नदियों पर डैम बनाकर उनको नहरों के माध्यम से आपस में मिला दिया जाए, तो बाढ़ और सूखे का हल किया जा सकता है. कभी भी ऐसा नहीं होता है कि सारे देश में एक साथ बाढ़ और सुखा हुआ हो.
बाढ़ आने पर पानी को नहरों के माध्यम से दूर भेजा जा सकता है तथा सुखा पड़ने पर उन इलाकों से पानी मंगवाया जा सकता है जहाँ पर पानी उपलब्ध हो. "अटल" जी इस योजना पर काम शुरू कर पाते इससे पहले ही उनकी सरकार चली गई और दस साल में लोग इसे भूल गए. और नदियों को जोड़ने की योजना अधर में लटक गई.
हालांकि कि - अटल जी की पार्टी (बीजेपी) की सरकार वाले तीन राज्यों (गुजरात - मध्य प्रदेश- राजस्थान) ने राज्य स्तर पर इस योजना को चालू रखा . नर्मदा - क्षिप्रा, नर्मदा - सावरमती, केन -वेतवा, आदि जैसी कुछ परियोजनाओं को पूरा भी कर लिया. लेकिन यह काम लार्ज स्केल पर सारे भारत में करने की आवश्यकता है.
इस समय जम्मू -कश्मीर में किशनगंगा प्रोजेक्ट चल रहा है. इसके अलावा सिन्धू, झेलम, रावी तथा कुछ छोटी नदियों को जोड़कर उनका पानी पंजाब में और पंजाब से राजस्तान गुजरात तथा महारष्ट्र तक ले जाने का बिचार है. नदियों को जोड़ने की परियोजना में सबसे बड़ी बाधा है नदियों के जल पर राज्य का अधिकार माना जाना.
संविधान में नदियों के पानी का प्रबंधन करने और उसका इस्तेमाल करने का निर्णय लेने का अधिकार राज्यों को दे रखा है. ज्यादातर सभी राज्यों की सरकारें झूठी बातें करके अपने-अपने राज्यों की जनता को भड़काती रहती हैं कि - केंद्र सरकार तम्हारा पानी छीनना चाहती हैं. सतलुज-यमुना और कृष्ण- कावेरी का झगडा आप देखते ही है.
मेरा वर्तमान केंद्र सरकार से अनुरोध है कि - "अटलजी" की इस महत्वाकांक्षी परियोजना को फिर से शुरू किया जाए. संविधान में संशोधन कर नदियों एवं उनके जल पर किसी राज्य का नहीं बल्कि सारे देश का अधिकार माना जाए. नदियों को जोड़ने की व्यापक और सुरक्षित प्रणाली को विकसित कर सारे देश में नहरों का जाल बिछाया जाए.
इस काम को करने के लिए वास्तविक पर्यावरण विशेषज्ञों को भी साथ लिया जाए, लेकिन ऐसे तथाकथित फर्जी पर्यावरणविद जिनका काम केवल परियोजनाओं को रुकवाना होता है, वे अगर रुकावट डालें तो उन पर देशद्रोह का मुकदमा कायम करके जेल भेजना चाहिए, राष्ट्र विकास में वाधा डालना भी देशद्रोह से कम नहीं है.

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