
इनके माता पिता बहुत ही धार्मिक प्रव्रत्ति के थे और संतों तथा भारतीय परम्पराओं का बहुत आदर करते थे. उनके घर में अक्सर भजन, कीर्तन तथा उपदेश आदि का आयोजन होता रहता था. उनका स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में दाखिल कराया गया मगर उनका पढने में मन नहीं लगा और 5वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी.
19 वर्ष की उम्र में उनकी शादी 13 बर्ष की "नगम्मल" के साथ हो गई. इसी बीच किशोर "पेरियार" का संपर्क कुछ ईसाई प्रचारकों से हुआ, जो गरीब हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन कराने के उद्देश्य से हिन्दू परम्पराओं को गलत बताते थे. उस कुसंग के कारण "पेरियार" ने भी हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया.
वे अपने आपको नास्तिक कहते थे लेकिन उनका निशाना कभी भी ईसाई अथवा इस्लामिक धार्मिक मान्यताएं नहीं होती थीं. वे केवल हिन्दू महाकाव्यों तथा पुराणों में कही बातों का ही मखौल उड़ाया करते थे. उन्हें बस केवल हर हिन्दू मान्यता और परम्परा से आपत्ति थी. इस कारण उनके माता पिता भी उनसे बहुत नाराज रहते थे.
1904 में उन्होंने एक क्रांतिकारी ब्राह्मण की मुखबिरी कर उसे अंग्रेज पुलिस के हाथों पकडवा दिया. उस पर आरोप लगाया कि- वह धार्मिक कथाओं के माध्यम से लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ भड़काता है. इस घटना पर उनके पिता अत्यंत लज्जित और क्रोधित हुए और उन्होंने "पेरियार" को सड़क पर सबके सामने बहुत पीटा और घर से निकाल दिया.
घर से निकलने के बाद वे काशी आ गए. यहाँ एक जगह ब्राह्मणभोज का कार्यक्रम चल रहा था, वे भी उसमे जाकर बैठ गए. इस पर उनको बताया गया कि- अभी ब्राह्मण भोज चल रहा है, ब्राह्मण भोज के बाद ही अन्य सभी लोगों को भोजन कराया जाएगा. अभी उठ जाइए और थोड़ा इन्तजार कीजिए, थोड़ी देर में आपको भी भोजन मिलेगा.
इस बात पर उनको ब्राह्मणों से नफरत हो गई, जो आजीवन बनी रही. इसके बाद उन्होंने अपना सारा जीवन ब्राह्मण, हिंदुत्व, हिन्दू देवी देवताओं, हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के खिलाफ बोलने में लगा दिया.ऐसी हरकतों के कारण उनको अंग्रेज सरकार से भी भरपूर सहयोग मिलने लगा. ऐसे सेकुलर ( हिन्दू बिरोधी) तो कांग्रेस को भी हमेशा से प्रिय रहे हैं.
सन 1919 में सी. राजगोपालाचारी ने उन्होने कांग्रेस का सदस्य बनाकर तमिलनाडु इकाई का प्रमुख बना दिया. जल्द ही वे अपने शहर के नगरपालिका के प्रमुख बन गए. कुछ बर्ष बाद सोवियत रूस के दौरे पर जाने पर, उन्हें साम्यवाद ने बहुत प्रभावित किया, वापस आकर उन्होने कांग्रेस छोड़ कर अपने साम्यवादी होने की घोषणा की.
उन्होंने कांग्रेस छोड़कर "जस्टिस पार्टी" ज्वाइन कर ली, कुछ समय बाद वे इस पार्टी के अध्यक्ष बन गए. 1937 में उन्होंने दक्षिण भारत में हिंदी भाषा के बिरोध में एक बड़ा अभियान शुरू किया, इस हिन्दी बिरोधी अभियान के कारण भारत उत्तर दक्षिण में बंट गया. आज का उत्तर दक्षिण और हिंदी / तमिल का झगडा काफी हद तक उनकी ही देंन है.
अंग्रेजों के समय में इसने एक रेली निकाली थी जिसमे ट्रकों पर राम-सीता, राधा-कृष्ण, शिव, हनुमान, आदि की मूर्तियों को रखा. इसके कार्यकर्ता उन मूर्त्तियों को झाडू और जुते मार कर प्रदर्शन कर रहे थे और यह राक्षस अट्टाहास कर रहा था कि - लो देख लो इन मूर्त्तियों की ताकत, यह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पा रही हैं, जिनकी तुम लोग पूजा करते हो.
1944 में उन्होंने जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर "द्रविदर कड़गम" कर दिया. इसी बीच 1949 में उन्होंने अपने से 20 साल छोटी एक लड़की जिसको पहले अपनी बेटी बताते थे, से एक और विवाह कर लिया. इस बात से नाराज होकर उनके बहुत से साथियों ( सी॰ एन॰ अन्नादुरै / एम. करुनानिधि.आदि ) ने उनको छोड़कर एक नए दल "D M K" (द्रविड़ मुनेत्र कडगम ) की स्थापना कर दी.
D M K के प्रभावशाली हो जाने के बाद, उनकी पार्टी का राजनैतिक पतन हो गया. इसके बाद उन्होंने राजनीति को छोड़कर हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू देवी देवताओं के खिलाफ लिखना और बोलना अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया. उन्होंने रामायण के बिरोध "सच्ची रामायण" नामक किताब लिखी, जिसमे राम को गलत बताया.
राम के बारे में पेरियार का मत है कि - वाल्मीकि के राम विचार और कर्म से धूर्त थे. झूठ, कृतघ्नता, दिखावटीपन, चालाकी, कठोरता, लोलुपता, निर्दोष लोगों को सताना और कुसंगति जैसे अवगुण उनमें कूट-कूट कर भरे थे. पेरियार जैसे अधर्मी व्यक्ति की बातें कोई भी व्यक्ति अपने धर्म के लिए बर्दाश्त नहीं कर सकता.
इसका बुढापा अत्यंत गरीबी, लाचारी, बीमारी और अकेलेपन में बीता. इसके सभी साथी इसको छोड़ गए. विभिन्न बीमारियों का शिकार होने के बाद 94 साल की आयु में 24 दिसंबर 1973 को इसकी मौत बहुत ही घिसटते घिसटते हुई थी.
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