Monday, 2 September 2019

नागालैण्ड और धारा 371A का सच




अभी हाल ही में कश्मीर से अलगाववादी धारा 370 और 35a हटाई गई है. सारा देश जानता है कि यह धाराएं देश की एकता और अखंडता के लिए घातक थीं. इसलिए अंधबिरोधी इन धाराओं को हटाने के खिलाफ तो बोल नहीं पाते है लेकिन इसको हटाने के खिलाफ तरह तरह के कुतर्क अवश्य गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं.
उनका ऐसा ही एक कुतर्क है कि मोदी ने कश्मीर से धारा 370 तो हटा दी है लेकिन नागालैंड में धारा 371 लगा दी है. अब नागालैंड का अपना अलग झंडा होगा तथा नागालैंड जाने के लिए वीजा लेना पड़ेगा. जबकि हकीकत यह है कि- नागालैंड की चर्चा करने के बाद भी , उनके चाचा नेहरू ही कटघरे में खड़े दिखाई देंगे.
धारा 371a नागालैंड में 1963 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ही लगाई थी, यह धारा 370 की तरह अस्थाई नहीं बल्कि एक संविधान संशोधन था जिसे हटाने के लिए दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत के साथ विधेयक पास करना अनिवार्य है. जिस परमिट की बात कर रहे हैं वह आज से नहीं बल्कि अंग्रेजों के समय से चल रहा है.
नागालैंड के उग्रवादी संगठन, 1947 से ही नागालैंड में राज्य सरकार के अतिरिक्त अपनी समानांतर सरकार चलाते आ रहे हैं जिनका अपना झंडा है, अपने मंत्रालय हैं, और टैक्स भी लेते हैं. 70 साल से किसी सरकार ने उनको रोकने की कोशिश तक नहीं की. 2015 से मोदी सरकार ने उस समस्या को हल करन के लिए प्रयास करना शुरू किया है.
यह कहना कि- मोदी सरकार ने नागालैंड के लिए अलग झंडे की मान्यता दी है, तथ्यहीन और झूठा प्रोपेगेंडा है. आइये अब हम नागालैंड से सम्बंधित तथ्यों का क्रमवार अध्यन करते हैं. पूर्वोत्तर के छोटे छोटे पहाड़ी राज्य दरअसल छोटे छोटे कबीलों के समान है जो अपने कबीले के अलाबा किसी बाहरी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं करते और उनसे लड़ते हैं.
नागालैंड में 1826 में अंग्रेजों ने ब्रिटिश शासन लागू किया था और इसे असम में मिला दिया था. 1881 में अंग्रेजों ने कोहिमा में अपनी सैनिक छावनी बनाई. असम के नागालैंड, अरुणाचल, मिजोरम, आदि वाले क्षेत्र में कई ऐसी हिंसक जनजातियों के लोग रहते थे जो अपने इलाके में आने वाले किसी भी बाहरी इंसान की बिना किसी कारण हत्या कर देते थे.
तब अंग्रेजों अरुणाचल, नागालैंड और मिजोरम में प्रवेश करने वाले बाहरी व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यह व्यवस्था बनाई कि- जब भी कोई उस इलाके में जाए तो जाने से पहले प्रवेश चौकी पर अपनी इंट्री कराये. इसके साथ उसे एक परमिट मिल जाती है कि वह व्यक्ति उस इलाके में आया है राज्य की पुलिस उसकी सुरक्षा करेगी.
तब से ही यह परमिट सिस्टम चला आ रहा है. वर्तमान में यह परमिट मिजोरम नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में पूर्ण रूप से लागू है एवं अन्य पांच राज्यों में भी आंशिक रूप से कुछ जनजाति बहुल क्षेत्रों में लागू है. इसलिए यह कहना कि ऐसा अभी हुआ है यह पूरी तरह से झूठ और बेबुनियाद है इसको सौ साल से ज्यादा हो चुके हैं.
1946 में नागा नेता "अंगामी जापू फिजो" ने "नागा नेशनल काउंसिल" (NNC) बनाई पहले उनकी मांग यह थी कि- नागा हिल्स भारत में रहे लेकिन उन्हें स्वायत्तता दे दी जाए जिससे वे अपने पारम्परिक तरीके से रह सकें, लेकिन 14 अगस्त 1947 को इसने पापिस्तान की तरह अपने आपको भारत से अलग होकर नया राष्ट्र घोषित कर दिया.
उग्रवादी संगठन NNC ने 1951 में अपनी तरफ से एक जनमत संग्रह करवाने का दावा किया, जिसमें उन्होंने बताया कि 99% नागा हिल्स के नागरिक आजाद नागालैंड की इच्छा रखते हैं. उनकी बात पर जब केंद्र सरकार ने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया तो "फिजो" ने 22 मार्च 1956 को "नागा फेडरल गवर्नमेंट" बनाने की घोषणा कर दी.
एक तरह से यह है उग्रवादियों की समानांतर सरकार थी, जिसका लक्ष्य था नागा हिल्स को बंदूक के दम पर भारत से अलग करके अलग देश बनाना। अप्रैल 1956 में सुरक्षा बलों ने नागालैंड में अपने ऑपरेशन शुरू किए, NNC पर दबाव बना और आतंकवादी नेता "फिजो" साल खत्म होने से पहले ही जान बचाकर पूर्वी पाकिस्तान भाग गया.
सेना लगातार कार्यवाही करती रही लेकिन दुर्गम क्षेत्र होने और स्थानीय लोगों द्वारा आतंकियों का साथ देने के कारण जब उग्रवादियों से निपटने में सफलता नहीं मिली तो केंद्र ने वहां "आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट" (AFSPA) कानून लगा दिया. इस कानून के अनुरूप सशस्त्र बलों को दिए विशेषाधिकार कुछ इस तरह हैं,
* चेतावनी के बाद भी कोई कानून तोड़ता है, तो उसको गोली मारी जा सकती है.
* किसी आश्रय स्थल को नष्ट किया जा सकता है, जहां से हमले का संशय हो.
* किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट गिरफ्तार किया जा सकता है,
* गिरफ्तारी के समय किसी भी तरह की शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है
* बिना वारंट किसी के भी घर की तलाशी ली जा सकती है,
* इसके लिए जरूरी बल का भी प्रयोग किया जा सकता है.
* किसी भी वाहन को रोककर उसकी तलाशी ली जा सकती है.
उग्रवाद से निपटने के लिए इस कानून को असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड सहित पूरे पूर्वी भारत में लागू किया गया. उग्रवाद के दौर में पंजाब में भी यह क़ानून लगाया गया था और 1990 के बाद कश्मीर में भी यह कानून लागू है. AFSPA लगने के बाद फिजो 1960 में भागकर लंदन में जा छिपा.
फिर जवाहरलाल नेहरू ने इसके बाद 1963 में नागा हिल्स और त्यूएनसांग को मिलाकर नागालैंड राज्य बना दिया, साथ ही नागालैंड में राज्य की मूल नागा जनजातियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए धारा 371A लगा दी. जिसके अनुसार उन विषयों में नागालैंड में संसद और सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा जिनमें-
* नागालैंड के लोगों की धार्मिक / सामाजिक गतिविधियां प्रभावित होती हों.
* नागा संप्रदाय के अपने पारम्परिक कानूनों से टकराव होता हो.
* नागा कानूनों के आधार पर नागरिक और अपराधिक मामलों में न्याय.
* जमीन का स्वामित्व और खरीद फरोख्त के नियम केवल राज्य तय करेगा.
* कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्यपाल को विशिष्ट अधिकार होंगे.
* केंद्र सरकार की ओर से किसी विशेष काम के लिए दी गई धनराशि उसी काम के लिए प्रयोग की जा सकती है, किसी अन्य काम के लिए नहीं.
* त्यूसांग जिले के लिए 35 सदस्यों की एक क्षेत्रीय काउंसिल बनाई जाए और इस काउंसिल से जुड़े सभी फैसले और कानून बनाने की जिम्मेदारी राज्यपाल की होगी.
साल 1963 में जब नागालैंड राज्य बना था तो इसे विशिष्ट और सुरक्षित राज्य का दर्जा आर्टिकल 371A के द्वारा ही दिया गया था, 1964 के अप्रैल में जयप्रकाश नारायण, असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री माईला प्रसाद चालिहा और एक ईसाई धर्मगुरु रेवरेंड माइकल स्टार्क का एक शांति मिशन नागालैंड भेजा गया.
इस शांति मिशन ने NNC और केंद्र सरकार के बीच समझौता करवाने में सफलता प्राप्त की, समझौते के अनुसार दोनों पक्ष अपनी-अपनी बंदूकें त्याग देंगे, लेकिन इस समझौते के बाद भी NNC की ओर से उग्रवादी घटनाएं होती रही, कई माह तक यह नाटक चला जब भी सरकार NNC से इसकी शिकायत करती, वो कहते लड़के हैं गलती हो जाती है.
इसी बीच इस बात के सबूत मिले कि - इन घटनाओं के पीछे चीन का हाथ है. जब हालत में कोई सुधार नहीं हुआ तो तत्कालीन लालबहादुर शास्त्री की सरकार के आदेश पर 1965 में सुरक्षा बलों ने इन उग्रवादी गुटों के खिलाफ जबरदस्त कार्यवाही शुरू की. सेना का फोकस रहा NNC, NFG और NFA पर. सेना को इसमें काफी सफलता मिली.
परन्तु 1966 में शास्त्रीजी की असामयिक मौत के बाद यह अभियान रोक दिया गया. नार्थईस्ट के हालात फिर खराब हो गये. 11 नवंबर 1975 में इंदिरा गांधी ने NNC और NFG से फिर एक समझौता किया, लेकिन जब शिलांग में यह समझौता हो रहा था, तब NNC का एक मेंबर "थुइनगालेंग मुइवा" चीन से समझौता कर रहा था,
"थुइनगालेंग मुइवा" ने इंदिरा गांधी और NNC / NFG के साथ हुए समझौते की शर्ते मानने से इंकार कर दिया. चीन के पालतू उग्रवादियों ने 1980 में "नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड" (NSCN) नाम का नया संगठन बनाया. यह आतंकवादी संगठन समाजवाद से ज्यादा हिंसक तरीके विद्रोह करने में विश्वास रखता था.
इस उग्रवादी संगठन में दो और छोटे संगठन मिल गए जिन्होंने पहले इंदिरा गांधी के साथ समझौता किया था. इसके बाद इन उग्रवादी संगठनों ने बड़े पैमाने पर हिंसा शुरू कर दी. इस संगठन में 8 साल के बाद एक बंटवारा हुआ और "खापलांग" नाम के एक खतरनाक उग्रवादी ने अपना नया संगठन बना लिया.
इसी बीच 1991 में "फिजो" की लंदन में मौत हो गई. NSCN चीन के पैसे और हथियार के दम पर लोगों की हत्या करवाता रहा. 1997 में इन्द्र कुमार गुजराल सरकार ने NSCN के साथ पहला सीजफायर समझौता किया. लेकिन दूसरा गुट NSCN (IM) समझौते को धता बताते हुए अपनी समानांतर सरकार चलाता रहा.
NSCN (IM) नागालैंड में चल रही अकेली समानांतर सरकार नहीं है. वहां NNC और NSCN के जितने धड़े हैं और उन धड़ों के जितने धड़े हैं, सबकी अपनी-अपनी ‘सरकारें’ चल रही हैं. और सभी जबरन टैक्स वसूलती है. अनेक ‘सरकारों’ के होने से नागाओं की ज़िंदगी नरक बनी हुई है. उनके लिए तय करना मुश्किल है कि किसका नियम मानें,
1999 में अटल बिहारी बाजपेई ने नागा नेताओं से बातचीत शुरू की. नागाओं की आजतक किसी भारतीय प्रधानमंत्री से सबसे ज़्यादा पटी है, तो वो थे अटल बिहारी वाजपेयी, अटलजी वो पहले नेता थे, जिन्होंने नागाओं की पहचान और इतिहास का ज़िक्र किया. साथ ही ये माना कि इंसरजेंसी में फौज से कुछ गलतियां भी हुईं.
अपनी पहचान को लेकर भावुक नागाओं को ये बात बहुत पसंद आई. अटलजी ने 1998 में पैरिस में "इसाक चिसी स्वु" और "थुइनगालेंग मुइवा" से मुलाक़ात भी की. इसी बीच आरएसएस ने भी जमीनी स्तर पर नागाओ में अपनी पैठ बना ली, परन्तु 2004 में बाजपेई सरकार चली जाने से शान्ति प्रयास एक बार फिर थम गये.
परन्तु 2004 में बाजपेई सरकार जाने के बाद एक बार फिर केंद्र और नागाओं में संवादहीनता के हालात पैदा हो गए. 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद केन्द्र ने एक बार फिर नार्थईष्ट पर ध्यान देना शुरू किया. 3 अगस्त 2015 को एक और समझौता हुआ जो नागा शांति समझौते का फ्रेमवर्क ऑफ एग्रीमेंट हैं.
नागा लोग भी मोदी को अटलजी का शिष्य मानते हुए, मोदी के प्रति विश्वास जता रहे हैं. नागालैंड के वर्तमान राज्यपाल "आर. एन. रवि ने भी नागाओं के बीच में रहकर काफी काम किया है. इनसे पहले वाले राज्यपाल "पद्मनाभ बालकृष्ण आचार्य" ने राज्यपाल बनने से पहले संघ के सवयंसेवक के रूप में नागालैंड में बहुत सेवा कार्य किया था.
सुरक्षाबलों के लगातार चले अभियान ने नागालैंड में रहकर उग्रवाद को पालना पोषण कहीं ज्यादा मुश्किल कर दिया है, सीमाएं सील हैं या तेजी से की जा रही हैं, तो विदेशी मदद मिलने के रास्ते कम हो रहे हैं NSCN(K) म्यांमार के जंगलों से अब भी उग्रवादी घटनाएं अंजाम दे रहा है. सरकार ने इसे बातचीत शामिल नहीं किया है.
एनएससीएन के अतिरिक्त नागालैंड में 6 और उग्रवादी संगठन हैं, केंद्र सरकार उनको भी इस समझौते का हिस्सा बनाना चाहती है, लेकिन सरकार यह चाहती है कि- सरकार एक पार्टी हो और सभी नागा गुट मिलकर एक पार्टी हों. ऐसा माना जा रहा है कि- लगभग सभी उग्रवादी संगठन समझौते पर एकमत हो चुके हैं.
धीरे-धीरे समझौते की शर्ते भी बाहर आ रही हैं, जो भी कुछ इस तरह हैं-
* सरकार उन सभी गुटों से बात कर रही है लेकिन समझौता वह एक से ही करेगी, इसका एक पक्ष केंद्र सरकार होगी और दूसरा पक्ष सभी उग्रवादी संगठन.
* भारत के संविधान में निहित संप्रभुता के भाव को सभी पक्ष मान्यता देंगे, अर्थात भारतीय संघ से अलग होने की मांग का दी एंड, सभी उग्रवादी संगठन मान लेंगे कि वह भारतीय हैं.
* उग्रवादी संगठनों के द्वारा हिंसा हमेशा हमेशा के लिए खत्म, जो हथियार छोड़ने वाले उग्रवादी हथियार चलाना चाहते हैं वह भारतीय सेना में सम्मिलित हो सकते हैं, जो इस के योग्य नहीं होंगे उन्हें पुनर्वास के लिए कुछ और बंदोबस्त किया जाएगा.
* सभी उग्रवादी संगठन हथियार डाल देंगे तो सुरक्षा बल भी अपनी छावनीयों में लौट आएंगे AFSPA हटा लिया जाएगा, सुरक्षा बल आवश्यक होने पर ही दखल देंगे.
* नागालैंड राज्य की सीमाओं में कोई बदलाव नहीं होगा.
* मणिपुर और अरुणाचल के नागा बहुल इलाकों में नागा टेरिटोरियल काउंसिल बनाए जाएंगे, यह राज्य सरकार के अधीन नहीं होंगे, असम के नागा बहुल इलाकों में यह नहीं बनाई जाएंगी.
* एक ऐसी संस्था भी बनाई जाएगी जो अलग अलग राज्य में बसे ना गांव के सांस्कृतिक प्लेटफार्म का काम करेगी इस संस्था में नागा जनजातियों के प्रतिनिधि बैठेंगे और यह राजनीति से दूर रहेगी.
* नागालैंड विधानसभा में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार की तरह विधान परिषद जैसा दूसरा सदन बनाया जाएगा और विधानसभा सीटों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी.
* अभी नागालैंड से सिर्फ एक एक सांसद लोकसभा और राज्यसभा भेजा जाता है, इसे बढ़ाया जाएगा, कहां और कितना यह अभी साफ नहीं है.
* सरकार सात गुटों से बात कर रही है. लेकिन NSCN (K). इस गुट ने 2001 में भारत सरकार के साथ शांति समझौता किया था, लेकिन बाद में तोड़ दिया था.

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