भरतपुर के महान राजा "सूरजमल" का जन्म 13 फरवरी 1707 को हुआ था. सूरजमल के पिता बदन सिंह जयपुर के राजा जयसिंह के सूबेदार थे. उस समय भरतपुर जयपुर राज्य का हिस्सा था. भरतपुर खूंखार मेवो का आतंक था, जिनका धर्म इस्लाम था. लूटपाट उनका मुख्य धंधा था. राजा जयसिंह ने बदन सिंह से भरतपुर को मेवों के आतंक से मुक्त कराने को कहा.
सूबेदार बदन सिंह ने अपने किशोर बेटे सूरजमल और अपने एक निकट सम्बन्धी ठाकुर सुलतान सिह को सेना की टुकड़ी के साथ भरतपुर भेजा. "सूरजमल" ने मेवो के आतंक को ख़त्म करने के लिए जिस बहादुरी और चतुराई का परिचय दिया और खुद आगे बढ़कर सैनिको का नेतृत्व किया उसकी बजह से वह सैनिको में बहुत लोकप्रिय हो गए.
भरतपुर को मेवो से मुक्त कराने के बाद जब वे जयपुर पहुंचे तो, महाराजा जयसिंह ने खुश होकर बदन सिंह को भरतपुर का राजा घोषित कर दिया. भरतपुर उस समय ऊंचा-नीचा, पहाडी, पथरीला और उजाड़ इलाका था. उसको बसाने का पूरा श्रेय बदन सिंह और उनके बेटे सूरजमल को जाता है. बदन सिंह ने 1733 एक किले का निर्माण शुरू कर दिया.
इसी बीच राजा बदन सिंह की आँखों की रौशनी बहुत कमजोर हो गई, तब राजा बदन सिंह ने अपने योग्य बेटे सूरजमल को भरतपुर का राजा घोषित कर दिया. राजा सूरजमल वीर और बुद्धिमान के साथ पितृभक्त थे. वे अपना हर निर्णय अपने पिता की सलाह से लेते थे. सूरजमल इ नेतृत्व में भरतपुर शीघ्र ही समर्थ और शक्तिशाली राज्य बन गया.
महाराजा जयसिंह के साथ साथ जयपुर की जनता भी बदनसिंह और सूरजमल को बहुत स्नेह और सम्मान देती थी. औरंगजेब की म्रत्यु के बाद कमजोर हुए मुघलों से भारत को आजाद कराने के लिए महाराजा सवाई जयसिंह भी प्रयत्नरत थे. उन्होंने मुघलो से टक्कर लेने वाले मराठों और राजस्थान ने अन्य राजाओं को भी एकजुट करने का काम किया.
1743 में माराजा सवाई जयसिंह की म्रत्यु हो गई. उनके दो पुत्र थे ईश्वरी सिंह और माधोसिंह. ज्यादातर राजपूत रियासतों ने भी माधोसिंह को राजा बनाने का समर्थन किया, लेकिन बदन सिंह ने ईश्वरी सिंह का समर्थन किया और सूरजमल से ईश्वरी सिंह का साथ देने को कहा. सूरजमल अपनी बहादुरी के दम पर ईश्वरी सिंह को जयपुर का राजा बनवा दिया.
ईश्वरी सिंह के राजा बनने से जितना नाम ईश्वरी सिंह को मिला उससे कहीं ज्यादा नाम सूरजमल का हुआ, क्योंकि सूरजमल ने बड़े बड़े धुरंधरों का बिरोधकर ईश्वरी सिहं को राजा बनाया था. इस घटना के बाद महाराजा सूरजमल का डंका पूरे भारत देश में बजने लगा. देश के अन्य राजा भी राजा सूरजमल को पूरा महत्त्व देने लगे.
अब राजा सूरजमल ने अपने राज्य भरतपुर का विस्तार करने का निर्णय लिया. औरंगजेब की म्रत्यु के बाद जब मुघल कमजोर पड़ गए थे तब उन्होंने इसका लाभ उठाकर धौलपुर, आगरा, मैनपुरी, अलीगढ़, हाथरस, इटावा, मेरठ, रोहतक, मेवात, रेवाड़ी, गुडगांव और मथुरा को मुघलों के चंगुल से से आजाद करा लिया था.
अफगानिस्तान के सुल्तानअब्दाली ने भारत पर कई आक्रमण किये और हर आक्रमण में केवल महाराजा सूरजमल ने ही उसका प्रतिरोध किया.1757 में अब्दाली के सबसे घातक हमले के समय महाराजा सूरजमल के अलावा कोई भी राजा अब्दाली का सामना करने नहीं आया. अब्दाली के उस आक्रमण में दिल्ली, मथुरा, आगरा में बहुत कत्लेआम हुआ.
कई लड़ाइयों के बाद महाराजा सूरजमल ने दिल्ली के नजदीक फिरोजशाह कोटला तक अपना अधिकार क्षेत्र बढ़ा लिया था. उन दिनों दक्षिण में मराठों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था. मराठों ने भी भारत के बहुत बढे भूभाग को मुघलों से आजाद करा लिया था. मराठों का भी नजर दिल्ली पर थी. क्योंकि दिल्ली का राजा ही भारत का राजा माना जाता था.
महाराजा सूरजमल को खबर लग चुकी थी कि-अहमद शाह अब्दाली भारत पर एक और भीषण हमले की तैयारी कर रहा है तब उन्होंने सोंचा कि - यदि राजपूत, मराठा और जाट अगर एक साथ मिलकर उसका सामना करें तो न केवल अब्दाली को हराया जा सकता है बल्कि सम्पूर्ण भारत को भी मुग़लों से आजाद कराया जा सकता है,
दो शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्यों मराठों और जाटों में संधि होने से यह लगा कि- अब बहुत जल्द हिन्दुस्थान मुस्लिम आक्रांताओं से आजाद हो जाएगा परन्तु भारत के दुर्भाग्य ने यहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा। मराठों और जाटो में संधि हो जाने के बाबजूद महाराजा सूरजमल और मराठा सरदार सदाशिव भाऊ में सम्बन्ध बहुत अच्छे नही हो सके.
सदाशिव भाऊ बहुत ही महान योद्धा और रणनीतिकार थे लेकिन इन अच्छाइयों के बाबजूद उनमे अहंकार, तुनकमिजाजी और अति-आत्मविशवास जैसी बुराइयां भी थी. उनको यह अति-आत्मविशवास था कि अब्दाली को तो हरा ही लेंगे और इसके लिए उनको किसी की जरूरत नहीं और वे इस बात को बार बार जताते भी रहते थे
उम्र और अनुभव में अधिक होने के बाबजूद सदाशिव भाउ, महाराजा सूरजमल की सलाहों को नजर अंदाज करते थे. उनके बीच कडवाहट कई बार सामने आई. 1760 में मथुरा में घूमते हुए "नवी मस्जिद" को देखकर "भाऊ" ने "सूरजमल" पर तीखा कटाक्ष किया था - मथुरा इतने दिन से आपके कब्जे में है, फिर आप इस को नहीं हटा सके.
दिल्ली पर संयुक्त हिन्दू सेना कब्जा हो जाने के बाद भाऊ ने लाल किले के दीवाने-खास की चांदी की छत को गिरवाने का हुक्म दिया। इस पर भी सूरजमल ने भाऊ से कहा कि - इस समय हमारा लक्ष्य केवल अब्दाली को हराना होना चाहिए। लखनऊ और बिजनौर के नवाव इस्लाम के नाम पर भारत के मुसलमानो को अब्दाली का साथ देने को कह रहे हैं.
जिन बातों से स्थानीय मुसलमानो की भावनाये जुडी हैं हमें फिलहाल उन चीजों से दूर रहना चाहिए। आप मुझ से पांच लाख रुपये ले लो, पर इसे मत तोड़ो, पर भाऊ नहीं माने और छत को तुडवा दिया. इसी प्रकार महाराजा सूरजमल चाहते थे कि युद्ध को कम से कम दो माह तक टाला जाये। उनका मानना था सर्दी मराठाओं को ज्यादा दिक्कत होगी।
एक बार सूरजमल अब्दाली की ताकत और सैन्य क्षमता के बारे में बता रहे थे तो भाऊ को ऐसा लगा कि- सूरजमल अब्दाली की विशाल सेना से डर रहे हैं और पीछे हट रहे हैं तो भाऊ ने सूरजमल से कह दिया कि- मैं इतनी दूर दक्षिण से आपकी ताकत के भरोसे पर यहां नहीं आया हूं. अगर तुम लड़ना नहीं चाहते तो मत लड़ो लेकिन हम अब्दाली को रोकेंगे.
कहा जाता है कि- राजा सूरजमल को भाऊ की यह बात बहुत बुरी लगी और उन्होंने मराठा सेना का साथ देने से इनकार कर दिया. उनका यह मनमुटाब भारत के लिए खतरनाक साबित हुआ. जहाँ भारत की मुश्लिम रियासते इस्लाम के नाम पर अब्दाली का साथ दे रहीं थी वाही हिन्दू राजा आपसी मनमुटाव के चककर में अलग अलग हो गए.
राजा सूरजमल के हट जाने से उत्तर भारत के कई अन्य राजा भी संयुक्त हिन्दू सेना से दूर हो गए. यहाँ के हालात, मौसम, रास्तों से परिचित न होने के कारण 14 जनवरी 1761 को पानीपत में मराठा सेना की कारारी हार हुई. राजा सूरजमल ने भले ही पानीपत के मैदान में अब्दाली का मुकाबला नहीं किया था लेकिन वे दिल से मराठाओ के साथ थे.
मराठों की हार से उनको भी बहुत दुःख था. इसलिए उन्होंने हारी हुई मराठा सेना के घायल और बदहाल सैनिको को अपने यहाँ भोजन और शरण दी. उनको धन देकर अपने घर जाने में भी उन्होंने काफी मदद की. यही बजह थी कि भाउ और सूरजमल के बीच हुए मनमुटाव के बाबजूद, बाद में भी मराठा और जाट एक दूसरे का हर तरह से साथ देते रहे.
इधर पानीपत की जीत के बाद अहमद शाह अब्दाली, मुहम्मदशाह की पुत्री के साथ स्वयं का तथा आलमगीर द्वितीय की पुत्री के साथ अपने पुत्र का विवाह करके और रोहिल्ला नबाब नजीब खान को भारत में अपना सर्वोच्च प्रतिनिधि नियुक्त करके वह कन्धार लौट गया”. अब्दाली के जाने के बाद फिर सूरजमल ने दिल्ली को जीतने का अभियान प्रारम्भ किया.
सूरजमल ने एक बार फिर दिल्ली के आसपास तक का क्षेत्र मुघलों से आजाद करा लिया. गाजियाबाद पर आक्रमण के समय वे 25 दिसम्बर 1763 की सुबह को हिंडन नदी के तट पर टहल रहे थे तभी झाड़ियों में छुपे नजीबुद्दौला के आदमियों ने धोखे से उनकी हत्या कर दी. अपनी वीरता और साहस के लिए वे सदैव याद किये जाते रहेंगे.
महान राजा सूरजमल का सारा जीवन हिन्दुस्थान को आजाद कराने के लिए समर्पित रहा. महाराजा सूरजमल की धोखे से की गई हत्या की बात सुनकर मराठों को भी बहुत आघात पहुंचा। मराठों ने गंगापार बिजनौर जाकर नवाब नजीबुद्दौला का सर काटकर यह साबित किया कि- पानीपत में जो हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण था लेकिन मराठा आज भी जाटों के साथ हैं.