Sunday, 11 February 2018

"दादरा नगर हवेली" का स्वाधीनता आन्दोलन और आरएसएस

"दादरा और नगर हवेली" के स्वाधीनता दिवस (2 अगस्त 1954) पर हार्दिक शुभकामनाये और दादरा नगर हवेली को पुर्तगालियों से आजाद कराकर भारत में शामिल करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवको को हार्दिक अभिनंदन. बहुत से लोगों को पता नहीं है कि - दादरा, नगर हवेली, गोवा, दमन, द्वीव. की आजादी में संघ का हाथ है.
15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद होने के बाद भी गोवा, दमन, द्वीव. दादरा, नगर हवेली, आदि आजाद नहीं हुए थे. अंग्रेजों ने इन्हें पुर्तगाल को सौंप दिया था. भारत की आजादी से पहले प्रख्यात समाजवादी नेता डा. राममनोहर लोहिया ने इनकी भी आजादी की मांग उठाई थी. लेकिन नेहरू ने उनकी इस मांग को कोई महत्त्व नहीं दिया.
18 जून 1946 को डा. राममनोहर लोहिया ने, गोवा, दमन, द्वीव. दादरा, नगर हवेली, आदि की आजादी की आवाज सबसे पहले उठाई थी मगर उनकी बातों पर न सरकार ने ध्यान दिया और न ही उन क्षेत्रों की जनता ने. देश की आजादी के बाद भी उन्होंने लोगों को जाग्रत करने के प्रयास किये मगर उनके प्रयासों को ख़ास सफलता नहीं मिली.
1953 में गोवा सरकार के एक बैंक कर्मचारी अप्पासाहेब कर्मलकर ने नेशनल लिबरेशन मूवमेंट संगठन (NLMO) शुरू की. उन्होंने नेहरु से इस कार्य के लिए मदद मांगी मगर नेहरु ने इसमें कोई रूचि नहीं ली. तब वे विश्वनाथ लावंडे, दत्तात्रेय देशपांडे, प्रभाकर सीनरी और श्री. गोले के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं से मिले.
ये लोग उस समय रा.स्व. संघ के महाराष्ट्र के सर्वोच्च अधिकारी श्री बाबाराव भिड़े व श्री विनायक राव आप्टे से मिले और उनके सम्मुख सशस्त्र क्रांति की योजना रखी. सर्वश्री शिवशाहीर बाबा साहब पुरन्दरे, संगीतकार सुधीर फड़के, खेलकूद प्रसारक राजाभाऊ वाकणकर, शब्दकोश रचयिता विश्वनाथ नरवणे, आदि ने सहमति जताई.
अंतिम निर्णय श्री गुरु जी को लेना था. सुधीर फडके और नाना काजरेकर (जो मुक्ति के पश्चात्‌ दादरा नगर हवेली के पुलिस अधिकारी बने) ने गुरु जी को तैयार करने का जिम्मा लिया. सारी योजना को समझने के बाद गुरु जी ने अभियान चलाने की अनुमति दे दी. लेकिन इसके लिए पुख्ता रणनीति बनाने पर जोर दिया.
पहले क्षेत्र के लोगों को आजादी के लिए तैयार करके फिर हमले की योजना बनाई गई थ. पुणे महानगर पालिका के सदस्य "श्रीकृष्ण भिड़े" और "बाबा साहब पुरन्दरे" को जुझारू स्वयं सेवको चूनने और नासिक स्थित "भोंसले मिलिट्री स्कूल" के एक प्रशिक्षक "मेजर प्रभाकर कुलकर्णी" को उन्हें ट्रेनिंग देने की जिम्मेदारी दी गई.
इतने बड़े अभियान को सफल करने हेतु आर्थिक सहायता की जरूरत थी. यह जिम्मेदारी सुधीर फडके ने ली. उन्होंने स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर को अभियान जानकारी देते हुए पुणे के हीराबाग मैदान में "लता मंगेशकर-रजनी' का कार्यक्रम आयोजित किया. इसके अलाबा अनेकों व्यापारियों ने इस कार्य के लिए स्वेच्छा से धन दिया.
बाबा साहब पुरन्दरे, विश्वनाथ नरवणे, नाना काजरेकर आदि को सैन्य अभियान का नेतृत्व करना था. हथियरों को जमा करने की जिम्मेदारी श्री राजाभाऊ वाकणकर पर थी. "सुधीर फडके" ने संगीत कार्यक्रमों के बहाने दादरा / नगर हवेली में प्रवास कर वहां की जनता को जाग्रत करने और माहौल बनाने का काम भी किया.
संघ के कार्यकर्त्ताओं ने उस क्षेत्र के दौरे करने शुरू कर दिए. इस प्रकार युद्धस्थल की छोटी-छोटी जानकारी, स्थानीय समर्थन, शस्त्र सामग्री एवं पैसा, इकट्ठा होने के पश्चात्‌ श्री बाबाराव भिड़े ने पुणे के तरुणों को प्रतिज्ञा दिलाई. माहौल बनाने के बाद 20 जुलाई 1954 को पुणे से कार्यकर्त्ताओं का पहला जत्था वापी को निकला.
आज़ाद गोमान्तक दल के सदस्य तथा अन्य आजादी के चाहवान लोग भी उनके साथ मिल गए. 22 जुलाई को दादरा पुलिस स्टेशन पर हमला बोला और पुलिस उप-निरीक्षक अनिसेतो रोसारियो का बध करके वहां तिरंगा फहरा दिया. दादरा को मुक्त घोषित कर "जयंतीभाई" देसाईं को दादरा पंचायत का मुखिया बना दिया गया.
28 जुलाई 1954 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आज़ाद गोमान्तक दल के स्वयंसेवक ने नारोली के पुलिस चौकी पर हमला बोला और पुर्तगाली अफसरों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया और नारोली को आजाद किया. अगले दिन, 28 जुलाई को स्वतंत्र नारोली की ग्राम पंचायत की स्थापना हुई.
तब तक गुजरात और महाराष्ट्र के हजारों स्वयंसेवक दादरा और नगर हवेली में पहुँच चुके थे. स्थानीय जनता का भी उनको बहुत सहयोग मिल रहा था. 2 अगस्त 1954 को सभी पुर्तगाली अधिकारियों ने सरेंडर कर दिया और राष्ट्रवादियों से सिलवासा के सरकारी कार्यालयों पर तिरंगा लगाया और अप्पासाहेब कर्मलकर को प्रथम प्रशासक चुन लिया.
अप्पासाहेब कर्मलकर ने दादरा / नगर हवेली को आजाद घोषित कर भारत में विलय की घोषणा कर दी, लेकिन भारत सरकार ने फिर भी उनसे दूरी बना कर रखी. स्वतंत्र होने के बावजूद, दादरा-नगर हवेली को पुर्तगाली संपत्ति के रूप में माना जाता रहा. सात साल तक दादरा / नगर हवेली का शासन ऐसे ही चलता रहा.
1961 में जब गोवा /दमन /द्वीव भी आजाद हो गया तब उसके साथ दादरा / नगर हवेली को भी केंद्रशासित राज्य का दर्जा मिला. दादरा / नगर हवेली की आजादी तथा गोवा / दमन / द्वीव की आजादी और भारत में विलय के लिए सबसे पहले आवाज उठाने वाले लोहिया और इस काम को अंजाम पर पहुंचाने वाले आरएसएस को हार्दिक अभिनन्दन.

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