चित्तौड़ का जिक्र महाभारत काल में मिलता है. ऐसा माना जाता है कि- महाभारत में वर्णित "मध्यमिका नगरी" ही चित्तौड़ है. ऐसा माना जाता है कि- पारसमणि की तालाश में भीम यहाँ पहुंचे थे. एक तांत्रिक ने उनको कहां कि तुम अगर यहां केवल एक रात्रि में किला बना दो तो मैं तुमको "पारस मणि" दिलाने में मदद करूँगा.
पांडव भाइयों ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति को लगाकर रातोंरात किले का निर्माण कर दिया, सिर्फ दक्षिण का कुछ हिस्सा बाक़ी रह गया था. तांत्रिक को लगा कि- अगर यह किला सुबह तक बन गया तो उनको पारसमणि न दिला पाने पर वह झूठा साबित हो जाएगा. इसलिए रात्रि के तीसरे प्रहर में ही वह मुर्गे का रूप रखकर बांग देने लगा.
उसकी बांग को सुनकर भीम को लगा कि - उनका काम पूरा नहीं हुआ है और सुबह हो गई है इसलिए उन्होंने काम रोक दिया. कुछ समय बाद जब भीम को यह पता चला कि तांत्रिक ने उनसे छल किया था तो उन्होंने एक स्थान पर गुस्से में बहुत जोर से लात मार दी. वहां से पानी निकलने लगा. उस स्थान को आज भी भीमलात ताल कहते हैं.
वर्तमान किला 7वीं सदी में राजा चित्रांगद द्वारा बनबाया गया था. चित्रांगद अपने आपको चंद्रगुप्त मौर्य का वंशज मानते थे. चित्रांगद के नाम पर ही इस गढ़ का नाम चित्रगढ़ पड़ा, जो बाद में चितौड़गढ़ हो गया. कुछ बर्षों के खिलजी और बहादुर शाह के कब्जे को छोड़ दिया जाए तो यह किला 834 साल तक यह मेवाड़ की राजधानी बना रहा.
800 साल से ज्यादा तक चित्तौड़ पर राजपूतों का अधिकार रहा और चित्तौड़ मेवाड़ की राजधानी बना रहा. बीच में कुछ समय के लिए इस्लामी हम्लाबर खिलजी और बहादुर शाह का कब्ज़ा अवश्य हुआ लेकिन जल्द ही राजपूतों ने उनको वहां से मार भगाया और चित्तौड़ से हरे झंडे को उतार कर वहां भगवा झंडा फहरा दिया.
8वी सदी में यह किला गुहेल वंश के बाप्पा रावल को दहेज़ के रूप में प्राप्त हुआ. तबसे लेकर 15वीं सदी तक गुहिलों / सिसोदियों की राजधानी बना रहा. 8 वी सदी से लेकर 1557 तक विबिन्न सिसोदिया राजाओं ने चित्तौडगढ़ से मेवाड़ का शासन चलाया. 1303 में चित्तौड़ पर किले पर अलाउद्दीन खिलजी का कब्जा हो गया था, जिसकी एक रोचक गाथा है.
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