Sunday, 4 February 2018

चित्तौड़गढ़ : भाग-4 (अलाउद्दीन खिलजी )

सन 1303 में चित्तौडगढ़ पर अलाउद्दीन खिलजी का कब्ज़ा हो गया. लेकिन इस जीत का बाद भी वह बहुत निराश हुआ. उसको वहां पर धन तो बहुत मिला लेकिन उसे इस बात का अफसोश रहा कि वह राजपूतों को अपने आगे झुका नहीं सका. वह कुछ ही दिन चित्तौड़ में रुकने के बाद अपने बेटे खिज्र खान को चित्तौड़ सौपकर खुद वापस दिल्ली चला गया.
चित्तौड़गढ़ और राजपूतों के इतिहास पर आगे बढ़ने से पहले, हमें खिलजियों के बारे में भी जान लेना चाहिए कि- यह खिलजी कौन थे और कुल कितने समय तक इनका शासन रहा था ? यह भी जानना जरुरी है कि- जिस अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ को जीता था वो कौन था, उसकी मौत कैसे हुई और उसकी मौत के बाद उसके राज्य का क्या हुआ ?
वामपंथी इतिहासकार राजपूतों के 800 साल के शासन का चन्द लाइनों में जिक्र करते हैं और अलाउद्दीन खिलजी की चित्तौड़ जीत का खूब बखान करते हैं. जबकि अलबरुनी और अमीर खुसरो के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ की लड़ाई को अपनी जीत नहीं बल्कि हार मानता था और अपने सामने चित्तौड़ का जिक्र भी पसंद नहीं करता था.
खिलजियों का इतिहास कोई बहुत बड़ा नहीं है. सारे खिलजियों ने कुल मिलाकर केवल 30 बर्ष (1290 से 1320) तक ही राज किया था. खिलजियों का राज केवल धोखेबाजी, आपस में एक दुसरे का क़त्ल करके सत्ता हाशिल करना, दूसरों के राज्यों पर हमला कर उन पर कब्ज़ा करना और उनकी स्त्रीयों को उठाकर अपने हरम लाना, उनका शौक था.
जवाहर लाल नेहरु की किताब "भारत :एक खोज" के अनुसार केवल अलाउद्दीन के हरम में ही 1600 पत्निया और उनकी 5000 बन्दिया थी. उसका शौक उनके साथ एयासी करना भी नहीं था बल्कि हिन्दुओं के मान सम्मान को कुचलना था. एयासी के लिए वो उन स्त्रीयों के सामने ही मालिक काफूर के साथ समलैंगिक सम्बन्ध बनाता था.
अब बात करते हैं खिलजी सल्तनत की. खिलजी वंश का पहला सुलतान था "जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलजी". वह गुलाम वंश के अंतिम शासक "कय्यूम" का सिपहसालार था. जलालुद्दीन, 1290 में कय्यूम की हत्या कर दिल्ली का सुलतान बन गया.था.सुलतान बन्ने के बाद उसने 1291 में रणथम्बौर पर हमला किया लेकिन उसमे बुरी तरह पराजित हुआ.
1292 में मंगोल आक्रमणकारी (जो हलाकू का पौत्र था) ने डेढ़लाख की खूंखार फ़ौज के साथ भारत पर हमला किया. जलालुद्दीन खिलजी के भतीजे अलाउद्दीन खिलजी ने बड़ी बहादुरी से मंगोलों के इस हमले को नाकाम कर दिया. अलाउद्दीन ने चंगेज खान के एक नाती "उलगु" को अपने साथ मिलाकर उसे मंगोलों के खिलाफ इस्तेमाल किया.
जलालुद्दीन ने अपनी एक बेटी की शादी "उलगु" के साथ कर दी. मंगोलों से गद्दारी कर "उलगु" अपने 400 साथियों के साथ भारत में रह गया और उसने इस्लाम कबूल कर लिया. जलालुद्दीन ने उन मंगोल से मुस्लमान बने उन मंगोनो को रहने के लिए दिल्ली के समीप 'मुगरलपुर' नाम की बस्ती बसाई. इन लोगों को "नवी मुसलमान" कहा जाता था.
अपने चाचा जलालुद्दीन की आज्ञा से अलाउद्दीन ने देवगिरी और भिलसा पर हमला किया और वहां भयानक मारकाट मचाकर अपार सम्पत्ति लूटकर लाया. इससे जलालुद्दीन अपने भतीजे से बहुत खुश हुआ.. अपने चाचा की सल्तनत का जायज वारिस बनने के लिए, उसने अपने चाचा जलालुद्दीन की बदसुरत बेटी मेरुन्निशा से विवाह किया.
22 अक्टूबर 1296 को अपने चाचा और ससुर से गले मिलते हुए, उसने धोखे से अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या कर दी और खुद दिल्ली का सुलतान बन गया. अपनी सत्ता को स्थाई बनाने के उद्देश्य से उसने अपने चचेरे भाइयों, भतीजों और भांजों की भी हत्या कर दी. वह अपने हर संभावित दुश्मन को ख़त्म करता चलता था.
अलाउद्दीन ख़िलजी ने 1299 ई. में गुजरात के सफल अभियान के बाद, धन के बंटवारे में हुए विवाद के बाद, नुसरत ख़ाँ के द्वारा ‘नवी मुसलमानों’ को मरवा दिया. अलाउद्दीन के भतीजे "अकत ख़ाँ" ने अपने मंगोल रिश्तेदारों के सहयोग से अलाउद्दीन पर प्राण घातक हमला किया, अलाउद्दीन ने उसको पकड़ लिया और उसकी भी हत्या कर दी.
तीसरा विद्रोह अलाउद्दीन की चचेरी बहन (जिसका विवाह चंगेज खान के मगोल नाती से हुआ था), के बेटों (मलिक उमर एवं मंगू ख़ाँ) की भी हत्या करने में अलाउद्दीन कामयाब रहा. चौथा विद्रोह जलालुद्दींन के पुराने बफादार दिल्ली के हाजी मौला द्वारा किया गया, जिसका दमन अलाउद्दींन के सेनापति "सरकार हमीदुद्दीन" ने कर दिया.
इस प्रकार जिन मंगोलों का दमन करने का जिक्र करके, इतिहासकारों द्वारा अलाउद्दीन खिलजी को बार बार महान बताने का प्रयास किया जाता है वो मंगोल भी कोई और नहीं बल्कि उसके बहनोई और भांजे ही थे. इसके आलावा वो मंगोल थे जो इस्लाम को कबुलकर "नवी मुसलमान" बन चुके थे.

No comments:

Post a Comment