नीच, ऐय्यास, समलैंगिक, लुटेरे, खिलजी वंश के अंत की कहानी के बद हम वापस "चित्तौडगढ़" पर आते हैं. जैसा कि पिछली पोस्ट्स में आप पढ़ चुके हैं कि-1303 में चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी का कब्ज़ा हो गया था और और उसने अपने बेटे खिज्र खान को चित्तौड़ का राजा बनाकर, चित्तौडगढ़ का नाम "खिजराबाद" रख दिया.
खिज्रखान ने, खिजराबाद (चित्तौड़गढ़) को अपनी स्थानीय राजधानी बनाकर राजस्थान पर बेतहाशा जुल्म किये. खिलजी के सैनिक आम जनता के धन और स्त्रियों पर अपना हक़ मानते थे. इस जुल्म के खिलाफ अनेकों राजपूतों / किसानो / मजदूरों ने खिलजी से लगातार टक्कर ली मगर छोटी सफलताओं के आलावा ज्यादा कुछ नहीं हुआ.
1320 में खिलजी वंश का अंत हो गया था और दिल्ली की सत्ता में उथल पुथल चल रही थी. चित्तौड़गढ़ पर खिलजियों के चापलूस राजपूत मालदेव का कब्जा था. ऐसे में राजपूत पुनः मेवाड़ को आजाद कराने के लिए सक्रिय होने लगे. लोगों ने अपने आपको स्वतंत्र मान लिया और जगह जगह खिलजी के सैनिको पर हमला होने लगा.
खिलजी के सैनिको ( जिनमे मुसलमान और राजपूत दोनों शामिल थे) का खुलेआम निकलना मुश्किल हो चूका था. केवल राजपूत ही नहीं बल्कि किसान, मजदूर, व्यापारी सभी बागी हो गए थे और खिलजी के सैनिको और अधिकारियों से गिन गिन कर जुल्म का बदला ले रहे थे. ऐसे में एक कुशल नेत्रत्व की आवश्यकता थी जिसको सभी स्वीकार करे.
खिजराबाद (चित्तौड़गढ़) के एक मुस्लिम सैनिक को, एक गाँव के कुछ लोगों ने बहुत मारा, वो जाकर अपने कुछ साथियों और अधिकारी को ले आया. मुस्लिम सैन्य अधकारी ने गाँव वालों से सिपाही को पीटने वाले का नाम बताने को कहा. नाम नहीं बताने पर उनको पीटा. फिर उसने गुस्से में गाँव की स्त्रियों को सबके सामने नग्न करने का आदेश दिया.
तभी अचानक क्रांतिकारी युवाओं का एक दल वहां पहुँच गया, जिसका नेत्रत्व एक 12 बर्षीय बालक कर रहा था. उन्होंने सैनिको पर हमला कर दिया. भयानक लड़ाई शुरू हो गई. उन क्रान्तिकारी युवाओं ने सभी सैनिको को मारकर, गाँव वालों को आजाद करा दिया. सभी लोग उस बालक और उसके साथियों की जय जयकार करने लगे.
उस बालक का नाम था हम्मीर सिंह. उसके दादा चित्तौड़गढ़ के रक्षक हुआ करते थे. 1303 में हम्मीर के दादा ने राणा रतन सेन के साथ "शाका" तथा दादी ने रानी पद्मावती के साथ "जौहर" किया था. हम्मीर सिंह के पिता का नाम अरी सिंह और माता का नाम उर्मिला था. शाका और जौहर के समय "अरी सिंह" अपने नाना के यहाँ गाँव में थे.
वे चित्तौड़गढ़ से कुछ देर एक गाँव में रहते थे और चित्तौड़ को आजाद कराने का सपना देखते थे. अरी सिंह गाँव के बच्चों को इकठ्ठा करके, उनको खेलकूद कराते और उनको चित्तौड़ के वीरों / वीरांगनाओं की महानता की कहानिया सुनाते थे और कहते थे कि - हमें केवल चित्तौड़ और मेवाड़ को ही नहीं बल्कि पूरे हिन्दुस्थान को आजाद कराना है.
अरी सिंह की पत्नी "उर्मिला" भी आस-पास की बच्चियों को लेकर, इसी तरह शाखा लगाती और उनको खेलकूद के साथ साथ लड़ना सिखाती. उनको महारानी पद्मावती के जौहर के बारे में बताती और साथ ही कहतीं कि - अगर कोई तुमको परेशान करे तो तुम में उसकी जान लेने की ताकत की भी होनी चाहिए और अपनी जान देने का साहस भी.
(डा. हेडगेवार जी ने आरएसएस की शाखा में यही तरीका अपनाया है) इस प्रकार अरी सिंह ने अनेकों देशभक्त और बहादुर युवाओं की टोलियां तैयार कर दीं. वे लोग जगह जगह खिलजी के अत्याचारी सैनिको को टक्कर देने लगे. अरी सिंह का बेटा हम्मीर भी, बचपन से बहादुरी का प्रदर्शन करने लगा और उम्र में अपने से बड़े साथियों का नेत्रत्व करने लगा.
उक्त घटना के बाद जब मेबाड़ के लोगों को "हम्मीर सिंह" और "अरी सिंह" के बारे में पता चला तो, उन्होंने अरी सिंह से उनका नेतृत्व करने को कहा. लेकिन अरी सिंह ने कहा - आप मेरी जगह "हम्मीर सिंह" को अपना नेता बनाये. तब राजपूतों ने 12 बर्षीय हम्मीर सिंह को अपना नेता मान लिया और उनके नेतृत्व में संगठित होने लगे.
मेवाड़ के लोग खिलजियों और मालदेव के अत्याचार से इतना ज्यादा परेशान थे कि - क्रांतिकारियों को उनको अपने साथ लेने में कोई दिक्कत नहीं हुई. संगठित होने के बाद 1326 में राजपूतों ने खिजराबाद (चितौडगढ़) पर बहुत बड़ा हमला किया. चित्तौड़गढ़ की सेना के राजपूत सैनिक भी बागी होकर हम्मीर की सेना के साथ आ गए.
क्रांतिकारियों ने मालदेव तथा खिलजी की सेना को बड़ी आसानी से मार गिराया गया और हम्मीर सिंह को चित्तौड़गढ़ का राजा घोषित किया. मेवाड़ की अन्य रियासतों के राजाओं ने हम्मीर सिंह को "महाराणा" की उपाधि से सुशोभित किया और संकल्प लिया कि- हम अपनी स्वतंत्रता को कायम रखते हुए चित्तौड़गढ़ को अपना प्रमुख मानेगे.
इस प्रकार 23 साल की गुलामी से चित्तौड़गढ़ आजाद हो गया. किसी भी बाहरी शत्रु के आक्रमण के समय समस्त मेबाड़ चित्तौड़गढ़ का निर्देश ही मानता था. इस प्रकार 7 वीं सदी से 1557 तक चित्तौड़ मेवाड़ का नेतृत्व करता रहा. लेकिन वामपंथी इतिहासकार सदियों की जीत का जिक्र करने के बजाय 23 साल की गुलामी का जिक्र ही ज्यादा करते हैं.
मुझे लगता हैं कि - इस श्रंखला से चितौड़गढ़ और खिलजी को लेकर काफी सवालों का जबाब मिल गया होगा. इस कालखंड में खिलजी को हराने वाले दो और राजाओं एक जालोर के कान्हा देव और दुसरे रणथम्भौर के "हम्मीर सिंह चौहान" ( हठी हमीर) पर भी लेख लिखूंगा, उनकी गाथा के बिना मेवाड़ का इतिहास अधुरा माना जाएगा.
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