गोवा भारत के दक्षिण / पश्चिम क्षेत्र में स्थित छोटा सा राज्य है. सम्पूर्ण भारत के लोग इसे पर्यटन के स्वर्ग के रूप में मानते हैं. लेकिन देश के बहुत सारे लोगों को शायद यह मालूम नहीं है कि - अंग्रेजी शासन से भारत की आजादी के 14 साल के बाद गोवा पुर्तगाली शासन से आजाद हुआ और भारत का अभिन्न अंग बना.
गोवा का प्रथम वर्णन रामायण काल में मिलता है. सरस्वति नदी के सूख जाने पर उन लोगों को बसाने के लिए भगवान् परशुराम में कोंकण क्षेत्र को बसाया था. कोंकण का दक्षिणी क्षेत्र गोपपुरी कहलाता था. इस क्षेत्र के ब्राह्मण आज भी सारस्वत ब्राह्मण कहलाते हैं. यहां मौर्य, शुंग, चालुक्य, शाक्य, कदम्ब वंशो का शासन रहा.
सन 1483-84 में गोवा मुस्लिम शासक युशुफ आदिल खान के अधिकार में आ गया. लगभग 27 वर्ष के मुस्लिम शासन रहने के बाद सन 1510 में पुर्तगाली "अलफांसो द अल्बुबर्क" ने यहाँ आक्रमण कर अधिकार कर लिया. तब से यहाँ पुर्तगालियों का कब्ज़ा हो गया. गोवा के सामरिक महत्व को देखते हुए पुर्तगाल ने यहाँ बहुत धन खर्च किया.
1809 - 1815 के बीच नेपोलियन ने पुर्तगाल पर कब्ज़ा कर लिया और एंग्लो पुर्तगाली गठबंधन के बाद गोवा स्वतः ही अंग्रेजी अधिकार क्षेत्र में आ गया.1815 से 1947 तक गोवा में अंग्रेजो का शासन रहा. 1947 में भारत से अपना नाजायज कब्जा छोड़ते समय अंग्रेजों ने "गोवा, दमन, द्वीव, दादरा और नगर हवेली" को पुर्तगाल को सौंप दिया.
जब भारत से ब्रिटिश शासन को उठाने की बात चल रही थी तब ही अंग्रेजों ने "गोवा, दमन, द्वीव, दादरा और नगर हवेली" को पुर्तगाल को सौंपने की बात शुरू कर दी थी. 18 जून 1946 को डा. राम मनोहर लोहिया ने इन सबको भी साथ ही आजाद करने की मांग की, लेकिन गांधी और नेहरु ने इस पर रहस्यमयी खामोशी बनाय रखी.
भारत में ब्रिटिश शासन ख़त्म हो जाने के बाद पुर्तगाल ने "गोवा, दमन, द्वीव, दादरा और नगर हवेली" का जमकर शोषण करना प्रारम्भ कर दिया था. क्षेत्र में छोटे होने तथा गुजरात के बीच में होने के कारण दादरा और नगर हवेली में सबसे पहले राष्ट्रवाद का उदय होना सुरु हुआ तथा पुर्तगाली शासन से आजादी की मांग उठानी शुरू की.
1953 में गोवा सरकार के एक बैंक कर्मचारी अप्पासाहेब कर्मलकर ने नेशनल लिबरेशन मूवमेंट संगठन (NLMO) शुरू की. उन्होंने नेहरु से इस कार्य के लिए मदद मांगी मगर नेहरु ने इसमें कोई रूचि नहीं ली. तब उन्होंने इसके लिए "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" से मदद मांगी. संघ का शीर्ष नेतृत्व इसके लिए तैयार हो गया.
20 जुलाई 1954 को पुणे से सैकड़ो संघ कार्यकर्त्ताओं का पहला जत्था वापी को निकला. संघ के स्वयंसेवको ने आज़ाद गोमान्तक दल के साथ मिलकर 2 अगस्त 1954 को दादरा और नगर हवेली को आजाद करा लिया. स्वतंत्र होने के बावजूद, दादरा-नगर हवेली को पुर्तगाली संपत्ति के रूप में माना जाता रहा.
दादरा / नगर हवेली के आजाद होने के बाद गोवा, दमन और द्वीव में भी आजादी की मांग उठने लगी. 15 अगस्त 1955 में गोवा को पुर्तगाल शासन से मुक्त करने के लिये 3000 सत्याग्रहियों ने आन्दोलन शुरू किया जिस पर पुर्तगाली सरकार ने गोली चलवा दी जिसमे लगभग 30 अहिंसक प्रदर्शनकारी मारे गए.
इसके बाद वहां जगह जगह प्रदर्शन होने लगे. गोवा की जनता भारत सरकार से मदद मांग रही थी लेकिन अमेरिका के भय से भारत सरकार सैन्य कार्यवाही करने से डर रही थी. इस बीच महाराष्ट्र और गुजरात के राष्ट्रवादी हिन्दुओं का वहां काफी प्रभाव हो चूका था. देश की जनता का सरकार पर लगातार दवाव बढ़ता जा रहा था.
नेहरु सरकार गोवा में किसी भी हस्तक्षेप के खिलाफ थी. वहां की हिन्दू जनता पर अत्याचार हो रहे थे. उनको जबरन गौमांस खाने को बाध्य किया जा रहा था. घर में तुलसी का पौधा होना भी गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त कारण माना जाता था. भारत की जनता और सेना भी गोवा को सैन्य कार्यवाही कर आजाद कराना चाहती थी.
दादरा / नगर हवेली को पुर्तगालियों से आजाद कराने के कारण, गोवा / दमन / द्वीव के हिन्दूओ ने भी "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" से मदद मांगी. संघ के स्वयंसेवकों ने उनकी मदद का आश्वासन दिया. महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक के स्वयंसेवको ने गोवा का प्रवास करना प्रारम्भ कर दिया. देखते ही देखते वहां अनेकों स्थान पर शाखा लगने लगी.
पुर्तगाली सरकार ने संघ की शाखा पर प्रतिबन्ध लगा दिया और संघ से जुड़े गोवा वाशियों को गिरफ्तार कर जेल में डालना शुरू कर दिया. भारत सरकार ने भी इसके लिए संघ को मना किया. इसी बीच 24 नवम्बर 1961 को पुर्तगाली सेनाओं ने एक भारतीय नौसैनिक जहाज पर हमला कर दिया. अब भारत के पास हमले की बजह भी थी
भारत ने गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त करने के लिए आपरेशन विजय शुरू किया जिसकी जिम्मेदारी सेना की दक्षिणी कमान को सौंपी गई. भारतीय सेना ने चारो ओर से, जल थल एवं वायु सेना की उस समय की आधुनिकतम तैयारियों के साथ, दिसम्बर 17-18 की रात में ऑपरेशन विजय के अंतर्गत सैनिक कार्यवाही शुरू कर दी.
युद्ध में थल सेना की कमान मेजर जनरल के.पी. कैंथ को दी गयी. 40 घंटे की लड़ाई के बाद गोवा की पुर्तगाली सेना ने, भारतीय सेना के सामने हथियार डाल दिए. 2 सिख लाइट इन्फैंट्री ने 19 दिसम्बर 1961 की सुबह पणजी के सचिवालय भवन पर तिरंगा फहरा दिया. भारतीय सेना गोवा पर 450 साल से चले आ रहे पुर्तगाली शासन का अंत कर दिया.
दूसरी तरफ गुजरात के संघ के स्वयंसेवक भारी संख्या में तिरंगा लेकर ने दमन और द्वीव में घुस गए. वहां की जनता ने भी उनका स्वागत किया. पुर्तगाली अधिकारियों ने बिना बिरोध के समर्पण कर दिया.और इस प्रकार गोवा के साथ साथ दमन, दीव, दादरा और नगर हवेली का भी आधिकारिक तौर पर भारत में विलय हो गया.
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