Sunday, 4 February 2018

चित्तौड़गढ़ : भाग-1 (भूमिका)

हमारे देश के सरकारी इतिहासकारों ने यह तो लिखा है कि- चित्तौड़ को तीन बार मुसलमानों द्वारा राजपूतों से जीता गया. बताया जाता है कि -1303 में अलाउद्दीन खिलजी ने राणा रतनसेन से जीता, 1535 में बहादुर शाह ने बिक्रमजीत सिंह को पराजित किया और 1557 में अकबर ने महाराणा उदयसिंह को पराजित किया था.
लेकिन यह नहीं बताया जाता है कि - जब एक बार मुस्लिम आक्रमणकारी ने जीत लिया तब कुछ साल बाद वहां दुसरे मुस्लिम आक्रमणकारी ने वहां किसी राजपूत राजा को कैसे हराया? उस समय अगर वहां पर फिर से राजपूतों का राज था तो जाहिर सी बात है कि - किसी राजपूत राजा ने उस मुस्लिम हमलावर को हराकर फिर से किला जीत लिया होगा.
अगर राजपूतों ने उन मुस्लमान हम्लावारो को हराकर वहां से खदेड़ा नहीं था तो उनका दोबारा वहां पर कब्ज़ा कैसे हो गया. दरअसल इन वामपंथी इतिहासकारों का उद्देश्य ही यही है कि - वे भारतीयों की हार और विदेशी हमलावरों की जीत का जिक्र करके, भारतीयों के मन में हीन भावना भरते रहें और भारतीयों अपने अतीत पर गर्व न करने दें.
यह हाल केवल चित्तौडगढ़ को लेकर ही नहीं है बल्कि सम्पूर्ण भारत के इतिहास को लेकर ही है. पूरे भारत पर मुघलों का कब्जा भी बताया जाता है और साथ ही समय समय पर भारतीय राजाओं से मुघलों के युद्ध का भी जिक्र होता है, अगर सारे भारत पर ही मुघलों का राज था तो जिन हिन्दू राजाओं से उनके युद्ध हुए वो क्या मंगल गृह पर रहा करते थे ?
मैं हमेशा ही ऐसी गाथाओं को सामने लाने का प्रयास करता रहा हूँ जिनसे भारत के महान लोगों की महानता का पता चलता है. अपनी अगली कुछ पोस्ट्स में मैं चित्तौड़गढ़ के इतिहास पर लिखने का प्रयास करूँगा. यह गढ़ कब और किसने बनाया. यहां किस हमलावर ने कब्ज़ा किया और किस भारतीय ने उसको हराकर फिर अपना कब्ज़ा वहाल किया.

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