
एक उच्च संस्कारी व्यक्ति हमेशा अच्छा काम ही करेगा लेकिन यह कोई आवश्यक नहीं है कि एक उच्च शिक्षित व्यति भी हमेशा अच्छे काम ही करेगा. एक उच्च शिक्षित व्यक्ति अगर गलत काम करता है तो वह और भी ज्यादा खतरनाक होता है. ओसामा बिन लादेन और अफजल गुरू जैसे सारे आतंकवादी उच्च शिक्षित ही हैं,
एक अनपढ़ डाकू "गब्बर सिंह" अगर डाका डालने जाता है तो वह घोडा, बंदूक और बहुत सारे साथियों को साथ लेकर जाता है और अपनी जान जोखिम में डालकर अनाज और पैसे लूटकर लाता है, लेकिन अगर एक उच्च शिक्षित और प्रशिक्षित डाक्टर अगर अपराध का रास्ता अपनाता है तो वह गरीबो की किडनी, आँख, लीवर तक चुरा लेता है.
इलाज के नाम पर लूटने वाले डाक्टर, स्कूलों में शिक्षा बेचने के नाम पर लूटने वाले टीचर, अधिक पैसे लेकर घटिया निर्माण करने वाले इंजीनियर, पैसे की खातिर अपराधियों को बचाने वाले वकील और जज, विभिन्न सरकारी विभागों के रिश्वतखोर अधिकारी / कर्मचारी, कमीशन लेकर लोन बांटने वाले बैंक कर्मी, आदि सभी उच्च शिक्षित हैं.
अनपढ़ चोर / डाकू को तो फिर भी जान जोखिम में डालकर बड़ी मुस्किल से कुछ हजार की लूट करते थे लेकिन हरिदास मूंदड़ा, हर्षद मेहता, अब्दुल रहेमान अंतुले, विजय माल्या, अब्दुल करीम तेलगी, नीरव मोदी, सुरेश कलमाड़ी, लालू यादव, ए.राजा, हसन अली, आदि जैसे पढ़े लिखे लोग तो अपने आफिस में बैठे बैठे ही करोड़ों की लूट कर लेते हैं.
अगर क्रान्ति का इतिहास उठाकर देखेंगे तो पता चलेगा कि - जितने मंगल पांडे, खुदीराम बोस, आजाद आदि ज्यादातर सभी क्रांतिकारी अल्पशिक्षित थे. जबकि उस जमाने में जो ज्यादा पढ़े लिखे लोग थे वो अंग्रेजों के विभिन्न महकमों में नौकरी करते थे और अंग्रेजों के बफादार थे. वो पढ़े लिखे लोग क्रांतिकारियों को गलत बताया करते थे.

इसलिए शिक्षा से ज्यादा महत्व अच्छे संस्कारों का है. किसी दूर दराज के गाँव का रहने वाला संस्कारी अनपढ़ व्यक्ति भी बोलता है "भारत माता की जय" और "वन्दे मातरम" लेकिन AMU और JNU जैसे बड़े शिक्षण संस्थानों के उच्च शिक्षित संस्कार विहीन छात्र नारे लगाते हैं " भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह, इंशाअल्लाह"
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