Friday, 14 February 2020

तड़ीपार

Image may contain: Sanjay Kumar Tripathi, smiling, beardअक्सर देखा गया है कि - बीजेपी से नफरत करने वाले अंधबिरोधी लोग अमित शाह को अपमानित करने के लिए तड़ीपार शब्द का प्रयोग करते हैं. हमें इसको समझने के लिए पहले यह समझना होगा कि - तड़ीपार होता क्या है और अमितशाह को क्यों किया गया था.
सबसे पहले तो यह समझ ले कि - वह मामला क्या है जिसमे अमित शाह को अदालत ने तड़ीपार किया था. जैसा कि सभी जानते है कि - गुजरात एक संपन्न राज्य है और सम्पन्न राज्य में अपराध, गुंडागर्दी और अवैद्ध बसूली करने वाले भी अक्सर पैदा हो जाते है.
यही हाल गुजरात का था. गुजरात में जगह जगह ऐसे गिरोह बन गए थे जो व्यापारियों और उद्योगपतियों को धमकाकर उनसे जबरन बसूली करते थे. 7 अक्तूबर 2001 को नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने. उन्होंने इस समस्या के हल पर बहुत जोर दिया.
उन्होंने अमित शाह को राज्य का गृहमंत्री बनाया. मोदी-अमित की टीम ने अपराधियों को गिरफ्तार कर उनपर केस चलाने के बजाये इनकाउंटर करने पर ज्यादा जोर दिया. इस तरीके से बहुत सारे अपराधी कम हुए और काफी गुजरात छोड़कर राज्य से बाहर भाग गए.
उन दिनों सोहराबुद्दीन और उसके साथी तुलसी प्रजापति का भी एक बड़ा गिरोह था जो मार्बल व्यापारियों को धमकाकर अवैध बसूली करता था. पुराने बदमाश "हामिद लाला" की हत्या करने के बाद सोहराबुद्दीन का मार्बल व्यापार पर एकछत्र राज हो गया था.
2004 में सोहराबुद्दीन ने राजस्थान के "आरके मार्बल्स" के मालिक "पटनी ब्रदर्स" को उगाही के लिए फोन किया था. उसने गुजरात सरकार को इसकी शिकायत की. मार्बल लॉबी की शिकायत पर गुजरात सरकार ने "डीजी बंजारा" को कार्रवाई के निर्देश दिए गए.
26 नवंबर 2005 को अहमदाबाद सर्किल और विशाला सर्किल के टोल प्वाइंट पर सुबह तड़के 4 बजे सोहराबुद्दीन का एनकाउंटर कर दिया गया. एक साल एक माह बाद 26 दिसंबर 2006 को उसके साथी तुलसीराम प्रजापति को भी एनकाउंटर में मार गिराया गया.
"सोहराबुद्दीन" के भाई "रुबाबुद्दीन" ने आरोप लगाया कि उसके भाई को महारष्ट्र से पकड़कर, गुजरात ले जाकर मारा है. इसके बाद तो तत्कालीन UPA सरकार और फर्जी मानवाधिकारवादी संगठन गुजरात सरकार और अमित शाह के पीछे पड़ गए.
उन तथाकथित मानवाधिकारवादियों को गुंडों द्वारा व्यापारियों को लूटना और मारना कभी दिखाई नहीं दिया लेकिन गुंडों के मरने पर विलाप करने लगे. UPA सरकार ने भी तेजी दिखाते हुए उन गुंडों की की मौत का केस फ़टाफ़ट सीबीआई को सौंप दिया.
सीबीआई कोर्ट द्वारा भी यह मामला जज "आफताब आलम" की कोर्ट में भेजा गया. "जज आफताब आलम" सीबीआई ने कहां कि- अमित शाह के राज्य में रहने से जांच प्रभावित होगी इसलिए अमित शाह को राज्य बाहर (तडीपार) रखा जाए.
अमित शाह ने इस फैसले को स्वीकार किया और कोर्ट के निर्देश पर 2010 से 2012 के बीच कुछ समय के लिए राज्य से बाहर (तडीपार) रहे. इसके बाबजूद सीबीआई की जांच में अमित शाह और डीजी बंजारा सहित सभी 22 आरोपी निर्दोष पाए गए.
Image may contain: 2 people, possible text that says 'आखिर कौन थे सोहराबुद्दीन और तुलसी कैसे आए थे पकड़ में पत्रिका RAJASTHA'तो आप खुद बताइये कि - अमित शाह के लिए ऐसा कुछ बोलना क्या सही है ? अमित शाह के राज्य बदर (तडीपार) रहने के बाद भी अगर वो सब सीबीआई जांच में निर्दोष साबित हुए तो क्या आरोप लगाने वाले और तडीपार करने वाले ही गलत साबित नहीं हुए ?
यहाँ यह भी ध्यान देना चाहिए कि - 2005 से 2014 तक केंद्र में UPA की सरकार थी और सीबीआई केंद्र सरकार के अधीन कार्य करती है.उम्मीद करता हूँ कि - अमित शाह और तडीपार मामले की सच्चाई आपको ठीक से समझ आ गई होगी.

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