Friday, 14 February 2020

महाराजा जवाहर सिंह और गन्ना बेगम की प्रेम कहानी

Image may contain: 1 personअवध के सुजाजुद्दौला नबाब के यहाँ एक दरबारी था "अलीबेग कुली खान". कुली खान ईरान के शाही वंश से सम्बंध रखता था. उसकी बेटी चाँद बेगम बहुत ही सुंदर थी. सुंदर शरीर और मीठी बोली के कारण अवध के नबाब सुजाजुद्दौला ने तारीफ़ करते हुए कह दिया कि - कुली खान तुम्हारी बेटी तो गन्ने की तरह लम्बी और मीठी है.
उसके बाद सभी लोग चाँद बेगम को गन्ना बेगम कहने लगे. उन पर लिखी हुई कहानियों में लिखा गया है कि - गन्ना बेगम उस समय की विश्व सुंदरी थी. कहते है कि - जब वह पान खाती थी तो उसके गले में पान की लालिमा साफ दिखाई पड़ती थी. उस समय के तमाम नबाब और शहजादे गन्ना बेगम से निकाह करना चाहते थे.
उन दिनों भरतपुर में महाराजा सूरजमल का राज था. उनके पुत्र युवराज जवाहर सिंह भी बहुत बड़े योद्धा थे. उनकी बहादुरी के किस्से दूर दूर तक मशहूर थे. एक बार एक समारोह में गन्ना बेगम ने युवराज जवाहर सिंह को देखा तो वह उनको पहली ही नजर में ही दिल दे बैठी. जब जवाहर सिंह की नजर उन पर पड़ी तो वे भी गन्ना के हुस्न पर मोहित हो गए.
दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगे. जिस गन्ना को पाने के ख्वाब अनेकों नबाब और शहजादे देखते थे वह गन्ना एक हिन्दू युवराज से प्रेम करने लगी तो गन्ना से एक तरफ़ा प्रेम करने वाले आशिक भी युवराज जवाहर सिंह से जलने लगे. लोगों ने उनके प्रेम के किस्सों को बढ़ा चढ़ाकर बताकर अली बेग और नबाब सिराजुद्दौला के कान भरे.
नबाब सुजाजुद्दौला भी गन्ना बेगम को पसंद करता था लेकिन वह उससे उम्र में बहुत कम थी इसलिए कभी उससे मोहब्बत का इजहार नहीं कर सका था. लेकिन जब गन्ना और जवाहर के प्रेम को लेकर अलीबेग खान से चर्चा हुई तो उसने कहा कि - गन्ना का निकाह किसी मुस्लमान से ही होना चाहिए और अपने साथ निकाह का प्रस्ताव रख दिया.
नबाब सिराजुद्दौला की शान ओ शौकत से प्रभावित गन्ना के पिता अलीबेग खान ने भी नबाब का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. गन्ना के पिता लखनऊ में थे और गन्ना अपनी माँ और भाई बहनो के साथ आगरा में रहती थी. गन्ना के पिता ने उनको लखनऊ आने का सन्देश भेजा. जब गन्ना को इसका पता चला तो उसने जवाहर सिंह से मुलाकात की.
सब कुछ सही चल रहा था लेकिन तभी मौके पर महाराजा सूरजमल वहां पहुंच गए. उन्हें किसी ने खबर दी थी कि युवराज जवाहर सिंह किसी काफिले पर हमला कर उनका धन और औरतों को लूटने के लिए निकला है. महाराज ने जवाहर सिंह को डांटा कि राहगीरों को लूटना और किसी स्त्री का अपहरण करना हिन्दू वीरों का काम नहीं है.
अपने पिता का भगवान् की तरह सम्मान करने वाले जवाहर सिंह सर झुकाये डाँट खाते रहे लेकिन यह नहीं कह सके कि - वो धन या स्त्री को लूटने नहीं बल्कि अपनी प्रेमिका को पाने के लिए ये कर रहे थे. महाराज सूरजमल ने गन्ना सहित सभी राहगीरों को सुरक्षा का इंतजाम किया और उन्हें सकुशल अपने गंतव्य की ओर जाने का आदेश दिया.
जवाहर सिंह अपने पिता के साथ, चुपचाप निराशा में डूबे हुए घोड़े पर चढ़कर वापिस भरतपुर की ओर चल पड़े. गन्ना की आंखों से आंसू बह रहे थे. लेकिन इसी बीच नवाब का निकाह उम्दा बेगम से हो चुका था. दरअसल अहमद शाह अब्दाली से सम्बन्ध बनाने की खातिर सुजाजुद्दौला को अब्दाली की बहन से निकाह करना पड़ा था.
जब अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली में लूटमार और कत्लेआम किया तब दिल्ली के हजारों लोगो ने भरतपुर में शरण ली. गन्ना बेगम भी किसी तरह उन शरणार्थियों में शामिल होकर भरतपुर पहुँच गई. वहां गन्ना की मुलाक़ात फिर युवराज जवाहर सिंह के साथ हुई, उनका प्रेम फिर जाग उठा लेकिन लोकलाज के भय से परवान नहीं चढ़ सका.
पिता महाराजा सूरजमल के सम्मान के कारण युवराज जवाहर सिंह ने भी गन्ना को पाने का ख्वाब छोड़ दिया. इधर अब्दाली का आतंक समाप्त हो जाने के बाद अन्य सभी शरणार्थियों की तरह गन्ना बेगम भी अपने घर वापस चली गई. लेकिन कुछ समय बाद, एक बार फिर गन्ना बेगम मौका देखकर अवध से भाग निकली और जवाहर सिंह से मिली.
परन्तु उस समय गाजियाबाद में महाराज सूरजमल की हत्या हो चुकी थी और जवाहर सिंह अपने पिता के मृत्युशोक में डूबे थे और दिल्ली पर हमला करने की तैयारी कर रहे थे. महाराज जवाहर सिंह ने गन्ना से कहा कि - वह इन परिस्तिथियों में प्रेम अथवा विवाह के बारे में सोंच भी नहीं सकते तो गन्ना जवाहर सिंह से नाराज होकर ग्वालियर चली गयी.
वहां गन्ना सिख का भेष बनाकर रहने लगी और अपना नाम गुनी सिंह रख लिया. उसने महादजी सिंधिया के जासूस के रूप में काम किया. वह एक अच्छी यौद्धा भी थी उसने महादजी की एक युद्ध में भी सहायता भी की. इसके अलावा वह एक अच्छी शायरा भी थी. एक दिन उसकी पोल खुल गयी और उसे देखकर महादजी भी उसके आशिक हो गए.
परन्तु गन्ना अब भी सिर्फ जवाहर सिंह से प्रेम करती थी उसने महादजी को यह बात स्पष्ट बता दी. उसकी भावनाओं का सम्मान करते हुए महादजी ने भी गन्ना की असली पहचान दुनिया के सामने नहीं खोली और वह गुनी सिंह के रूप में ही काम करती रही. ग्वालियर की रियायत उस समय मध्य भारत की मजबूत रियासत थी.
पानीपत की 1761 की लड़ाई के बाद जब अब्दाली अफगानिस्तान वापस चला गया तो अवध का नबाब सुजाजुद्दौला हिन्दुस्थान का शहंशाह बनने का ख्वाब देखने लगा था. उसने अपने जासूसों को फकीरों के भेष में चारो तरफ फैला रखा था. एक बार वह फकीर जासूसों के साथ खुद भी ग्वालियर से 35 km दूर नूराबाद तक पहुँच गया.
महादजी सिंधिया को इसका पता चला तो उन्होंने गन्ना बेगम से इसका जिक्र किया. जिस मस्जिद में सुजाजुद्दौला अपने फ़कीर बने जासूसों के साथ मीटिंग कर रहा था वहां गन्ना भी भेष बदलकर पहुँच गई. लेकिन नबाब ने गन्ना को पहचान लिया और पकड़ लिया. नबाब ने उसकी इज्जत लूटनी चाही तो गन्ना ने अंगूठी में रखे जहर को चाटकर अपनी जान देदी.
No photo description available.कहा जाता है कि - जहरभरी हीरे की वह अगूठी गन्ना को जवाहर सिंह ने ही दी थी. महादजी ने भी अपना प्रेम निभाया और उसकी एक मजार बनवाई जो ग्वालियर से 35 km दूर नुराबाद में है. उन्होंने गन्ना मजार पर गन्ना की मातृ भाषा फ़ारसी में लिखवाया "आह गम ए गन्ना". इस प्रकार जवाहर सिंह और गन्ना की प्रेम कहानी का दुखद अंत हो गया.
गन्ना बेगम जवाहर सिंह से प्रेम करने के बाद भगवान् श्री कृष्ण की भक्त बन गई थी क्योंकि जवाहर सिंह भगवान् श्री कृष्ण को अपना पूर्वज मानते थे. यह कहानी जवाहर सिंह की पितृभक्ति के बारे में भी बताती है. वे अपने पिता की इतनी इज्जत करते थे कि- उन्होंने कभी उनके सामने ये बात अपनी जुबान से नहीं निकाली.
हिन्दू वीर शिरोमणि महाराजा जवाहर सिंह की जय, कृष्ण भक्त गन्ना बेगम की जय

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