
इसलिए यह पोस्ट लिखकर जबाब दे रहा हूँ. अगर आपको कहीं कोई ये वीडियो डालकर सवाल करे, तो आप उसका जबाब दे सकें. सबसे पहले तो अपने आपको पूर्व संघी बताने वाले इन महाशय से ये पूंछना चाहता हूँ कि - वे कब से कब तक संघ में थे और आपके पास संघ का कौन सा दायित्व था ? मुझे पता है वे इस पहले सवाल का भी जबाब नहीं दे पाएंगे.
अब मैं वीडियो में उनके द्वारा कही गई हर बात को सत्य मानते हुए, केवल उनकी बताई बातों का ही जबाब देना चाहता हूँ. इस व्यक्ति ने अपनी बात शुरू की थी फिरोज खान नाम के विद्वान व्यक्ति द्वारा संस्कृत भाषा के पढ़ाने को लेकर हुए बिरोध को लेकर. तो इसका जबाब ये हैं कि - ये बिरोध कालेज के विद्यार्थियों ने किया था न कि आरएसएस ने.
कालेज में भी फिरोज खान के संस्कृत भाषा या संस्कृत साहित्य पढ़ाने का किसी ने बिरोध नहीं किया था. दरअसल फ़िरोज खान की नियुक्ति संस्कृत भाषा एवं साहित्य विभाग में हुई थी और वे वैदिक धर्म शास्त्र और अनुष्ठान पर क्लास लेने लगे थे. कालेज के धर्मशास्त्र के विद्यार्थियों ने उनकी केवल इस बात का बिरोध किया था.
इस व्यक्ति का दूसरा आरोप है कि- इस संगठन का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक सघ है लेकिन राष्ट्र के सभी जाति या धर्म के लोग इसके सदस्य क्यों नहीं है ? तो इसका जबाब ये है कि संघ का स्वयंसेवक बनाने का कोई फार्म वगैरह नहीं भरना पड़ता है और न कोई सदस्य्ता लेनी होती है और न ही इसके लिए कोई विशष योग्यता निर्धारित है.
खुले पार्क में संघ की शाखा लगती है जहाँ योग, व्यायाम, खेलकूद और देशभक्ति के गीत होते हैं. कोई भी व्यक्ति इसमें शामिल हो सकता है. जैसे जैसे आप शाखा में जाना नियमित करते हैं और पुराने हो जाते है तथा कोई जिम्मेदारी उठाने की इच्छा प्रकट करते है, तो आपकी योग्यता और समय देने की क्षमता के अनुसार आपको दायित्व दिया जाता है.

अब इनकी मुख्य बात पर आते हैं जिसके कारण ये संघ को छोड़ने का दावा कर रहे हैं. इनका कहना है कि - 1991 में जब राजस्थान में बीजेपी की सरकार थी तो इनके शहर में राम मंदिर के समर्थन में यात्रा निकाली गई थी. प्रशासन ने इस यात्रा को मस्जिद से दूर या नमाज के बाद वहां से निकालने को कहा लेकिन ये उसे जबरन मस्जिद के पास लेकर गए.
यहाँ मैं इनके ही शब्दों पर ध्यान दिलाना चाहता हूँ. इनका कहना है कि-
प्रशासन का कहना था कि यात्रा को मस्जिद के नीचे से न निकालें या नमाज के बाद निकाले लेकिन हमने कहा कि - एक तो हमारी सरकार है और ऊपर से गुलमंडी क्या पापिस्तान में है, हम तो मस्जिद के पास से ही निकलेंगे और नमाज के समय में ही निकलेंगे.
प्रशासन का कहना था कि यात्रा को मस्जिद के नीचे से न निकालें या नमाज के बाद निकाले लेकिन हमने कहा कि - एक तो हमारी सरकार है और ऊपर से गुलमंडी क्या पापिस्तान में है, हम तो मस्जिद के पास से ही निकलेंगे और नमाज के समय में ही निकलेंगे.
इससे पता चलता है कि - भाजपा की सरकार कोई टकराव नहीं चाहती थी जबकि इसके जैसे व्यक्ति जानबूझकर लोगों को भड़काकर मस्जिद के पास ले गए. वहां यात्रा पर पथराव हुआ और गोली चली जिसमे दो हिन्दू मारे गये. इसी वीडियों में वो ये दावा भी कर रहा है कि - उसके पिता कांग्रेसी हैं और आरएसएस के कट्टर बिरोधी है.
वह कट्टर आरएसएस बिरोधी परिवार का लड़का जानबूझ कर संघ में शामिल हुआ और उस दिन की रैली में लोगों को भड़काकर जानबूझकर नमाज के टाइम पर मस्जिद के पास लेकर गया और वहां रैली पर पथराव और गोली बाजी हुई. जाहिर सी बात है कि ये इसी की साजिश थी, क्योंकि यात्रा तो मस्जिद के पास से निकलनी ही नहीं थी.
इनका आखिरी आरोप है जातिवाद और छुआछूत को लेकर. इनका खुद का कहना है कि - जब इन्होने कुछ लोगों को अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया तो संघ के स्वयंसेवक "नन्द लाल"जी ने कहा कि - हम तो आपके यहाँ एक थाली में भी खा लेंगे लेकिन जो बाहर से साधू संत आये हैं उनको आपके यहाँ खाना कहने में दिक्कत हो सकती है.
तो इसमें कौन सी गलत बात कही है ? संघ के स्वयंसेवक जातिवाद और छुआछूत को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं. साथ भोजन करते और साथ में शिविरों में रहते हैं लेकिन बड़े-बड़े साधुसंतों को बदलने का प्रयास नहीं करते है. जैसे मैं अपने बच्चों को तो जातिवाद से दूर रहने को कहता हूँ लेकिन अपने दादाजी को थोड़े ही मना कर सकता था.
ये खुद कह रहे हैं कि- जब पिताजी ने कहा कि- वो साधू संत हमारे घर में नही खाएंगे तो मैंने पिताजी से कहा कि - आप संघ को जानते नहीं है, हम जातिवाद को नहीं मानते हैं हम तो सबके यहाँ जाते हैं और सब के यहाँ खाते हैं. इसका मतलब ये भी 5 साल तक सभी के यहाँ आते / जाते और खाते / खिलाते रहे होंगे और कभी भेदभाव नहीं देखा होगा.
अब अगर कोई साधू संत इन बातों से परहेज भी करता है तो इसके लिए संघ जिम्मेदार नहीं है. संघ तो केवल सामजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयास कर रहा है जिसमे काफी हद तक सफल भी हुआ है. ये खुद कह रहे हैं कि- संघ के स्वयं सेवक को इसके साथ खाना खाने पर ऐतराज नहीं था. अब साधू - संत तो संघ के स्वयंसेवक नहीं है न.
आखिर में इनका ये कहना कि - इनके घर से आया हुआ खाना बीच चौराहे पर फेंक दिया गया था और इसका जबाब भी खुद ही दे रहे हैं कि- उन्होंने जब ये पूंछा कि खाना चौराहे पर क्यों फेंका, तो उनको बताया गया कि - जीप के टर्न लेते समय जीप के पीछे बैठे व्यक्ति के हाथ से गिर गया. अब इस दुर्घटना को लेकर प्रपंच करना कांग्रेसी का ही काम है.

उन पैकट पर न कोई नाम लिखा होता है और न कोई ऐसा चिन्ह लगा होता है जिससे पता चले कि - कौन सा पैकेट किस घर से आया है. उन पैकेट को खोलकर एक साथ मिला दिया जाता है. अब किस के हिस्से में किसके घर का आया खाना मिला होगा ये कोई बता भी नहीं सकता है. इसलिए ऐसे झूठे और प्रपंचियों से जरूर बचकर रहें.
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