Thursday, 13 February 2020

ये संयोग नही प्रयोग है

Image result for शाहीन बाग़अगर हमारे शरीर में बीमारी फैलाने वाला कोई वायरस प्रवेश करता है, तो हमारे शरीर में थकान, दर्द, बुखार, जी मिचलाना, आँख -नाक से पानी आना, आदि जैसे बीमारी के कुछ लक्षण दिखाई देने लग जाते हैं, उस समय हम थोड़ा सा परहेज कर ले और साथ में दवा भी ले लें तो वह वायरस बहुत जल्द समाप्त हो जाता है और हम बीमार होने से बच जाते हैं.
लक्षण दिखने के बाद भी अगर थोड़ी सी लापरवाही भी करते हैं लेकिन बीमार होते ही, डॉक्टर से दवा ले लेते हैं तो भी जल्दी ही स्वस्थ हो जाते है और ज्यादा बीमार होने से बच जाते हैं. लेकिन अगर बीमार होने के बाद भी न परहेज करते है और न ही दवा लेते हैं, तो बीमारी का वायरस मजबूत होता जाता है और शरीर की प्रतिरोध क्षमता ख़त्म होती जाती है.
तब वह बीमारी जानलेवा बन जाती है और शमशान पहुंचाने के बाद ही ख़त्म होती है. देश को भी ऐसा ही एक शरीर समझना चाहिए और देश में होने वाली अराजकता, दंगा, फसाद, आदि को बीमारी का लक्षण, जिसका कारण देशद्रोही रूपी वायरस होता है. अगरसमय रहते इसको काबू न किया जाए तो इसकी परिणति देश के टूटने के रूप में होती है.
भारत माता के ऊपर सैकड़ों साल से ही ऐसे ही अनेकों वायरस ने हमले किये और ज्यादातर बार हम लापरवाह बने रहे, जब बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ गई तो हम ने इलाज किया जिसमे भारत माता को काफी तकलीफे सहनी पड़ीं. कई बार तो बीमारी इतनी बढ़ी कि सर्जरी करके भारत माता के कैंसर ग्रस्त अंगो को काटने को मजबूर होना पड़ा है.
पुरानी बातों को छोड़कर अगर केवल पिछले सौ साल की बात करे तो पता चलता है कि - सौ साल पहले खिलाफत के रूप में एक लक्षण दिखाई दिया था. ये खिलाफत आंदोलन तुर्की के खलीफा के लिए था, परन्तु हमारे देश के ज्यादातर लोग उसे स्वाधीनता संग्राम समझ बैठे और इसका नतीजा मालाबार, मुल्तान, कोहाट, आदि के दंगे के रूप में सामने आया.
मालाबार, मुल्तान, कोहाट, दंगे भी कोई संयोग नहीं थे बल्कि एक प्रयोग थे हिन्दुओं की मानशिकता को समझने के. उन दंगों में हजारों हिन्दुओं के मारे जाने के बाद भी जब शेष भारत के हिन्दुओं ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उनको समझ आ गया कि - प्रयोग सफल रहा है और अब देश को तोड़कर एक हिस्सा अलग करने का प्रयास करना शुरू कर दिया गया.
1946 में डायरेक्ट एक्शन के रूप में एक और बड़ा परीक्षण किया गया और उसमे सफल होने के बाद उन्होंने भारत के दो टुकड़े कर एक हिस्से पर तो पूरा कब्ज़ा कर लिए और साथ ही दूसरे हिस्से से भी कब्ज़ा नहीं छोड़ा। यह भी उनका एक ही प्रयोग था हिन्दुओं की सहनशीलता ( चूतियापे ) को परखने का. उनका यह प्रयोग भी सफल रहा.
छोटे छोटे दंगे रूपी कई प्रयोग करने 1990 में कश्मीर में एक बड़ा हमला किया गया और वहां से हिन्दुओं को मार भगाया गया. उसके बाद फिर शांत होकर देखा गया कि शेष भारत के हिन्दू क्या करते हैं. कुछ समय में उनको समझ आ गया कि उनका यह प्रयोग भी सफल रहा. अब वे और भी बड़ी कार्यवाहियों की खातिर छोटे छोटे प्रयोग करने लगे हैं.
देश विरोधी नारे, हिंदुओं को खत्म करने की प्रतिज्ञा, नार्थ-ईस्ट को भारत से तोड़ने की प्लानिंग, CAA का बिरोध, जेहादियों का समर्था, यह सब उनका प्रयोग ही है और ये भारत माता के ऊपर गंभीर बीमारी वाले वायरस का हमला ही है. अगर इसके लक्षणों को पहचान कर अभी से इलाज शुरू नहीं किया तो यह कैंसर की तरह सारे देश में फ़ैल जाएगा.
वायरस खतरनाक है, लक्षण अच्छे नहीं है, समय रहते इन संकेतों को समझिये. ऐसी बीमारियों से छोटे स्तर पर निपट चुका, एक अनुभवी डॉक्टर महामारी की आशंका को देखते हुए, वायरस को नाकाम करने के लिए जी-जान से लगा हुआ है. 370 , 35a, CAA, NPR, आदि जैसी मेडिसन दे रहा है और NRC और UCC जैसा टीका लगाने की बात कर रहा है.
आज जरूरत है कि - हम भारत माता पर हमला करने वाले इस वायरस को पहचाने और इसे नाकाम करें. जो डॉक्टर इलाज करना चाह रहा है उसका साथ दें. उसको भी NRC, NPR , कॉमन सिविल कोड , जनसंख्या नियंत्रण, आदि जैसी उच्च कोटि की दवाओं का प्रयोग करने दें. वरना ऐसी हालत हो जाएगी कि - बाद में इलाज भी नहीं हो सकेगा..

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