Friday, 9 December 2022

महान क्रांतिकारी "पं.राम प्रसाद विस्मिल"

महान क्रांतिकारी रामप्रसाद विस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था. नाम में पंडित शब्द लगा होने से उनके ब्राह्मण होने का भ्रम होता है. उनके दादा जी नारायण लाल तोमर जाति के क्षत्रिय थे किन्तु उनके आचार-विचार, सत्यनिष्ठा व धार्मिक प्रवृत्ति से कारण उन्हें "पण्डित जी" ही कहकर सम्बोधित करते थे.

"विस्मिल" स्वतन्त्रता सेनानी के साथ साथ कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे. वे लेखन में अपना नाम विस्मिल, अज्ञात, विजय और राम नाम का इस्तेमाल किया करते थे. 11 वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला, उससे उन्होंने हथियार खरीदे.
रामप्रसाद जब आठवीं कक्षा के छात्र थे तभी संयोग से स्वामी सोमदेव का आर्य समाज भवन में आगमन हुआ. मुंशी इन्द्रजीत ने रामप्रसाद को स्वामीजी की सेवा में नियुक्त कर दिया. यहीं से उनके जीवन की दशा और दिशा दोनों में परिवर्तन प्रारम्भ हुआ.स्वामी सोमदेव के साथ खुली चर्चा से उनके मन में देश-प्रेम की भावना जागृत हुई.
सन् 1916 के कांग्रेस अधिवेशन में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की लखनऊ में विशाल शोभायात्रा निकालने के बाद युवाओं एवं नेताओं का ध्यान उनकी दृढता की ओर गया. अधिवेशन के दौरान उनका परिचय केशव बलिराम हेडगेवार (छ्द्मनाम: केशव चक्रवर्ती), सोमदेव शर्मा व मुकुन्दीलाल आदि से हुआ.
राम प्रसाद बिस्मिल ने शचींद्रनाथ सान्याल, यदु गोपाल मुखर्जी, योगेश चन्द्र चटर्जी आदि के साथ मिलकर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन नाम की पार्टी बनाई. उन्होंने गान्धी जी की नीतियों का मजाक बनाते हुए यह प्रश्न भी किया था कि - "जो व्यक्ति स्वयं को आध्यात्मिक कहता है वह अँग्रेजों से खुलकर बात करने में डरता क्यों है ?"
उन्होंने देश के नौजवानों को ऐसे छद्मवेषी महात्मा के बहकावे में न आने की सलाह देते हुए, क्रान्तिकारी पार्टी में शामिल हो कर अँग्रेजों से टक्कर लेने का खुला आवाहन किया था. जिसमे बाद आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त आदि उनके साथ जुड़ गए. हथियार खरीदने के लिए उन्होंने सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई.
पार्टी की ओर से पहली डकैती 25 दिसम्बर 1924 को बमरौली में डाली गयी. 9 अगस्त 1925 को उन्होंने अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी, चन्द्रशेखर आजाद, शचीन्द्रनाथ बख्शी, मन्मथनाथ गुप्त, मुकुन्दी लाल, केशव चक्रवर्ती, मुरारी शर्मा (मुरारी लाल गुप्त) तथा बनवारी लाल आदि के साथ मिलकर काकोरी ट्रेन काण्ड को अंजाम दिया.
बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी पार्टी "हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन" के कुल 40 क्रान्तिकारियों पर "अंग्रेज सम्राट" के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया . जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल तथा अशफाक उल्ला खाँ को मृत्यु-दण्ड (फाँसी की सजा) सुनायी गयी.
इस मुकदमे में "जवाहर नेहरु" के साले "जगतनारायण मुल्ला" ने क्रांतिकारियों के खिलाफ सरकारी पक्ष रखने का काम किया था, जबकि क्रान्तिकारियों की ओर से के०सी० दत्त, जय करण नाथ मिश्र व कृपाशंकर हजेला ने क्रमशः राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह व अशफाक उल्ला खाँ की पैरवी की . राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने अपनी पैरवी खुद की .
19 -दिसंबर - 1927 को - राम प्रसाद विस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी पर लटका दिया गया था.

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