3 दिसंबर 1971 को पापिस्तान ने भारत के 11 स्थानों ( 9 एयर बेस और 2 जगह कश्मीर में ) श्रीनगर, पठानकोट, अमृतसर, जोधपुर, आगरा, भुज, हलवारा, आदि ) पर अचानक बमबारी कर युद्ध छेड़ दिया था. भारत पर इस हमले को पापिस्तान ने "आप्रेसन चंगेज खान" नाम दिया था. भारत पर पापिस्तान के इस हमले के मुख्यतः तीन कारण माने जाते हैं.
दुसरी बात - उन दिनों भारत में राजनैतिक नेतृत्व बहुत ढुलमुल था. शास्त्री जी की मौत में बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थी लेकिन ज्यादातर सीनियर कांग्रेसी नेताओं को वो पसंद नहीं थी. कांग्रेस दोफाड़ हो चुकी थी. पापिस्तान के आंतरिक हालत पर इंदिरा गाँधी कोई स्टैंड नहीं ले पा रही थी. पापिस्तान को इससे फायेदे की उम्मीद थी.
तीसरा सबसे बड़ा कारण था, पापिस्तान की जनता का ध्यान पापिस्तान के अंदरूनी हालात से हटाकर भारत की तरफ केन्द्रित करना. पूर्वी पापिस्तान में गृहयुद्ध चल रहा था और वह 26 मार्च 1971 को अपने आपको पापिस्तान से आजाद घोषित कर चुका था. पापिस्तान को लगता था कि भारत से युद्ध होने पर पापिस्तानी अपनी अंदरूनी लड़ाई भूल जायेंगे.
पापिस्तान ने अपने हिसाब से तो बहुत बढ़िया सोंचा था लेकिन उसे भारतीय सैनिको की वीरता का अंदाजा नहीं था. भले ही भारतीय सेना के पास आधुनिक हथियार नही थे और न ही उस समय कोई बहुत कुशल राजनैतिक नेतृत्व था, लेकिन भारतीय सेना में देश की रक्षा के लिए मरने मारने का जो जज्बा था वो दुनिया में शायद कहीं नहीं है.
उन दिनों पापिस्तान में राजनैतिक हालात बहुत खराब थे. पूर्वी पापिस्तान (बांग्लादेश) 26 मार्च 1971 को अपने आपको पापिस्तान से अलग स्वतंत्र देश घोषित कर चूका था. बंगलादेश पर जबरन कब्जा बनाए रखने के लिए पश्चिमी पापिस्तान बांग्लादेश की जनता पर बेतहाशा जुल्म कर रहा था. बहुत सारे बांग्लादेशी भारत की शरण में आ गए थे.
पूर्वी भारत (खासकर पश्चिमी बंगाल और बिहार) की जनता इंदिरा गांधी से बांग्लादेश में हस्तक्षेप करने को कह रही थी. मगर इंदिरा गांधी का कहना था कि यह पापिस्तान का आंतरिक मामला है हम इसमें कुछ नहीं कर सकते. भारत के इस ढुलमुल रवैये को पापिस्तान भी भारत की कमजोरी और अपनी ताकत समझ रहा था.
बांग्लादेश द्वारा खुद को आजाद देश घोषित किये हुए 8 महीने से ज्यादा हो चुके थे. बांग्लादेश में पापिस्तान का दमन चक्र जारी था, बांग्लादेश की जनता वहां से पलायन कर भारत में आ रही थी. उनकी हालत देखकर भारतीय बंगाली सबसे ज्यादा आक्रोश में थे. ऐसे में 3 दिसंबर 1971 को इंदिरा गांधी कोलकाता में लोगों को समझाने गई हुई थी.
पापिस्तान जल, थल, वायुसेना तीनो ही मामलों में आधुनिक हथियारों की द्रष्टि से भारत से बीस था. उसने भारत की पश्चिमी सीमा पर पैटर्न टैंको से लैस ब्रिग्रेड लगा दी थी. बंगाल की खाड़ी में "गाजी" नाम की पनडुब्बी भेज दी थी. अपने आपको हर तरह से मजबूत करने के बाद पपिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 की शाम को भारत पर हवाई हमला बोल दिया.
इस हवाई हमले (आपरेशन चंगेज खान) के बाद भी इंदिरा गांधी युद्ध का निर्णय नहीं ले पा रही थी. भारतीय सेना का धैर्य जबाब दे रहा था. ऐसे में जनरल मानेकशा ने इंदिरा गांधी से कहा था कि- आप घोषणा करती हैं या फिर मैं खुद युद्ध की घोषणा करू ? तब कोई चारा न देख इंदिरा गांधी को पापिस्तान से युद्ध की घोषणा करनी पडी.
युद्ध की घोषणा के बाद युद्ध की सारी कमान जनरल मानेकशा ने अपने हाथ में ले ली. जनरल मानेकशा ने नेताओं के द्वारा, युद्ध को लेकर कोई बयान तक देने पर रोक लगा दी थी. उस 14 दिन के भीषण युद्ध में भारतीय सेना ने बहुत सीमित संसाधनों के साथ पापिस्तान को शिकस्त देकर आत्मसमर्पण करने को मजबूर कर दिया.
भारत पापिस्तान का यह तीसरा युद्ध कुल 14 दिन तक चला था. पापिस्तान के पास पनडुब्बी. पैटर्न टैक, अमेरिकन लड़ाकू विमान जैसे आधुनिक हथियार थे. लेकिन भारतीय सैनिको के हौशलों आगे उसके सारे आधुनिक अमरीकी हथियार फेल हो गए. 14 दिन के इस युद्ध में भारत ने पापिस्तान को धरती- जल -आकाश हर जगह मात दी.
16 दिसंबर 1971 को पापिस्तान ने भारत से हार मान ली और पापिस्तान की सेना ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. 3 दिसंबर से 16 दिसंबर तक चले उस युद्ध की महत्वपूर घटनाओं को आपके सामने प्रतिदिन प्रस्तुत करने का प्रयास करूँगा. इन्हें पढ़कर आपको भारतीय सेना पर निश्चित रूप से गर्व महेसूस होगा.
इस युद्ध में भारतीय सेना का साथ आम नागरिको और स्वयंसेवकों से लेकर डाकुओं ने तक दिया था. इस श्रंखला को पढने के बाद आपको यह भी पता चल जाएगा कि - भारत पापिस्तान के उस युद्ध की जीत में इंदिरा गांधी का उतना ही योगदान था, जितना भारत को अंग्रेजों आजाद कराने में गांधीजी का था.
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