Wednesday, 14 December 2022

क्या है "मैं पठान का बच्चा हूं, मैं सच्चा बोलता हूं, सच्चा करता हूं" का सच

अंध विरोधियों द्वारा सोशल मीडिया पर मोदी के भाषण की एक 9 सेकण्ड की क्लिप वायरल की जा रही है जिसमे मोदीजी कह रहे हैं कि - मैं पठान का बच्चा हूं, मैं सच्चा बोलता हूं सच्चा करता हूं. 9 सेकण्ड की इस वीडियो क्लिप के जरिए अंधविरोधी खासकर मुसलमान मोदी जी का मजाक बनाने में लगे है और बिना सच जाने इसे आगे बढ़ा रहे हैं.

दरअसल यह वीडियों मोदीजी की टोंक रैली के आधे घंटे से ज्यादा लम्बे भाषण में से काटकर निकाला गया 9 सेकण्ड का हिस्सा है. इसमें मोदी जी जिक्र कर रहे हैं कि इमरान खान के पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने पर मैंने इमरान को बधाई दी थी तब उन्होंने इमरान से भारत के बजाय गरीबी ,अशिक्षा के खिलाफ लड़ने का जिक्र किया था जिस पर इमरान खान ने जवाब में बोला था कि मैं पठान का बच्चा हूं, मैं सच्चा बोलता हूं सच्चा करता हूं.
मोदी ने टोंक रैली में यह बोला था - "पाकिस्तान में नई सरकार बनी, तो स्वाभाविक है, जो नए प्रधानमंत्री बने थे, प्रोटोकॉल के तहत मैंने उनको फोन करके बधाई दी थी, पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री, क्रिकेटर के रूप में लोग उनको जानते हैं, मैंने उनसे कहा था बहुत लड़ लिया हिंदुस्तान पाकिस्तान ने, पाकिस्तान ने कुछ नहीं पाया, हर लड़ाई हमारे वीर जीत चुके हैं और ये सिलसिला आगे भी जारी रहेगा, और मैंने उनसे कहा था कि अब आप तो राजनीति में आए हो, खेल की दुनिया से आए हो, आओ भारत और पाकिस्तान मिलकर के हम गरीबी के खिलाफ लड़ें, अशिक्षा के खिलाफ लड़ें, ये बात मैंने उनको उस दिन कही थी, और उन्होंने मुझे बोला - मोदी जी मैं पठान का बच्चा हूं, मैं सच्चा बोलता हूं, सच्चा करता हूं "
शरारती तत्वों ने इस पूरे भाषण में से इमरान का जिक्र हटाकर केवल आखिरी लाइन को बार बार चलाना शुरू कर दिया - मैं पठान का बच्चा हूं, मैं सच्चा बोलता हूं, सच्चा करता हूं। उन मूर्खों ने यह जानने की भी कोशिश नहीं की कि - क्या यह बात सही हो सकती है. मोदी विरोधी इसीलिए बार बार मुँह की खाते हैं
मैंने भी पोस्ट का टाइटल जानबूझकर यही रहा है - मैं पठान का बच्चा हूं, मैं सच्चा बोलता हूं, सच्चा करता हूं. अब आप इसका स्क्रीन शॉट लेकर बाक़ी सारा काटकर केवल इतना रखिये और वायरल कीजिये

Friday, 9 December 2022

महान क्रांतिकारी "पं.राम प्रसाद विस्मिल"

महान क्रांतिकारी रामप्रसाद विस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था. नाम में पंडित शब्द लगा होने से उनके ब्राह्मण होने का भ्रम होता है. उनके दादा जी नारायण लाल तोमर जाति के क्षत्रिय थे किन्तु उनके आचार-विचार, सत्यनिष्ठा व धार्मिक प्रवृत्ति से कारण उन्हें "पण्डित जी" ही कहकर सम्बोधित करते थे.

"विस्मिल" स्वतन्त्रता सेनानी के साथ साथ कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे. वे लेखन में अपना नाम विस्मिल, अज्ञात, विजय और राम नाम का इस्तेमाल किया करते थे. 11 वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला, उससे उन्होंने हथियार खरीदे.
रामप्रसाद जब आठवीं कक्षा के छात्र थे तभी संयोग से स्वामी सोमदेव का आर्य समाज भवन में आगमन हुआ. मुंशी इन्द्रजीत ने रामप्रसाद को स्वामीजी की सेवा में नियुक्त कर दिया. यहीं से उनके जीवन की दशा और दिशा दोनों में परिवर्तन प्रारम्भ हुआ.स्वामी सोमदेव के साथ खुली चर्चा से उनके मन में देश-प्रेम की भावना जागृत हुई.
सन् 1916 के कांग्रेस अधिवेशन में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की लखनऊ में विशाल शोभायात्रा निकालने के बाद युवाओं एवं नेताओं का ध्यान उनकी दृढता की ओर गया. अधिवेशन के दौरान उनका परिचय केशव बलिराम हेडगेवार (छ्द्मनाम: केशव चक्रवर्ती), सोमदेव शर्मा व मुकुन्दीलाल आदि से हुआ.
राम प्रसाद बिस्मिल ने शचींद्रनाथ सान्याल, यदु गोपाल मुखर्जी, योगेश चन्द्र चटर्जी आदि के साथ मिलकर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन नाम की पार्टी बनाई. उन्होंने गान्धी जी की नीतियों का मजाक बनाते हुए यह प्रश्न भी किया था कि - "जो व्यक्ति स्वयं को आध्यात्मिक कहता है वह अँग्रेजों से खुलकर बात करने में डरता क्यों है ?"
उन्होंने देश के नौजवानों को ऐसे छद्मवेषी महात्मा के बहकावे में न आने की सलाह देते हुए, क्रान्तिकारी पार्टी में शामिल हो कर अँग्रेजों से टक्कर लेने का खुला आवाहन किया था. जिसमे बाद आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त आदि उनके साथ जुड़ गए. हथियार खरीदने के लिए उन्होंने सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई.
पार्टी की ओर से पहली डकैती 25 दिसम्बर 1924 को बमरौली में डाली गयी. 9 अगस्त 1925 को उन्होंने अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी, चन्द्रशेखर आजाद, शचीन्द्रनाथ बख्शी, मन्मथनाथ गुप्त, मुकुन्दी लाल, केशव चक्रवर्ती, मुरारी शर्मा (मुरारी लाल गुप्त) तथा बनवारी लाल आदि के साथ मिलकर काकोरी ट्रेन काण्ड को अंजाम दिया.
बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी पार्टी "हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन" के कुल 40 क्रान्तिकारियों पर "अंग्रेज सम्राट" के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया . जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल तथा अशफाक उल्ला खाँ को मृत्यु-दण्ड (फाँसी की सजा) सुनायी गयी.
इस मुकदमे में "जवाहर नेहरु" के साले "जगतनारायण मुल्ला" ने क्रांतिकारियों के खिलाफ सरकारी पक्ष रखने का काम किया था, जबकि क्रान्तिकारियों की ओर से के०सी० दत्त, जय करण नाथ मिश्र व कृपाशंकर हजेला ने क्रमशः राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह व अशफाक उल्ला खाँ की पैरवी की . राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने अपनी पैरवी खुद की .
19 -दिसंबर - 1927 को - राम प्रसाद विस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी पर लटका दिया गया था.

Saturday, 3 December 2022

आपरेशन ट्राइडेंट

पापिस्तान ने 3 दिसंबर 1971. को भारत पर हमला किया था. लेकिन अगले ही दिन 4 दिसंबर को भारत ने पापिस्तान को घुटनों पर ला दिया. 4 दिसंबर को थलसेना ने लोंगोवाला में पापिस्तान की टैंक ब्रिगेड की कब्रगाह बना दी थी और 5 दिसंबर की सुबह भारतीय वायु सेना ने बची हुई टैंक ब्रिगेड को तबाह कर पापिस्तान में दहशत फैला दी थी.

4 दिसंबर को ही बंगाल की खाड़ी में भारतीय युद्धपोत "आईएनएस राजपूत" ने पपिस्तान के सबसे खतरनाक हथियार "PNS गाजी" पनडुब्बी को डुबो दिया था. हालांकि "PNS गाजी" से अमेरिका की प्रतिष्ठा जुडी होने के कारण भारत ने इसका आधिकारिक जिक्र नहीं किया लेकिन भारतीय नौ सेना दिवस चुनने में इस घटना का बहुत बड़ा नह्त्व है..

4 दिसंबर को भारत का नौसेना दिवस है. नौसेना दिवस के लिए 4 दिसंबर की तारीख को चुनने की एक ख़ास बजह और है. 4 दिसंबर 1971 को भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह पर स्थित, नौसेना मुख्यालय पर हमला कर, उसे तवाह कर पापिस्तानी नौसेना की कमर तोड़ दी थी. यह भारतीय नौसेना का अब तक का सबसे खतरनाक हमला था.

भारतीय नेवी ने पाकिस्तान नेवी के कराची बंदरगाह स्थित मुख्यालय को निशाना बनाकर हमला बोला था. नौसेना के इस हमले को "आप्रेसन ट्राइडेंट" का नाम दिया गया था. ट्राइडेंट का मतलब होता है त्रिशूल. इसमें 3 मिसाइल बोट्स का इस्तेमाल किया गया था, जिनके नाम थे- "आईएनएस निपट", "आईएनएस निर्घट" और "आईएनएस वीर".

नौसेना प्रमुख एडमिरल "एस.एम.नंदा" के नेतृत्व में ऑपरेशन ट्राइडेंट का प्लान बनाया गया था. इस टास्क की जिम्मेदारी 25वीं स्क्वॉर्डन कमांडर "बब्रभान यादव" को दी गई थी. आपरेशन के दौरान बब्रभान यादव खुद भी "आईएनएस निपट" पर मौजूद रहे. इस यु्द्ध में पहली बार जहाज पर मार करने वाली एंटी शिप मिसाइल से हमला किया गया था.

4 दिसंबर 1971,रात 9 बजे, भारतीय नौसेना ने कराची की तरफ बढ़ना शुरू किया. रात 10:30 पर कराची बंदरगाह पर पहली मिसाइल दागी गई. 90 मिनट के भीतर पाकिस्तान के 3 नेवी शिप ( पी.एन.एस. खैबर, पीएनएस चैलेंजर और पीएनएस मुहाफिज ) डूब गए और 2 बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए. कराची तेल डिपो आग शोलों में घिर गया था.

सफल हमले के बाद कमांडर बब्रभान यादव ने अपने उच्च अधिकारी "विजय जेरथ" को संदेश भेजा कि- "इससे अच्छी दिवाली हमने आज तक नहीं देखी". इस पुरे हमले में भारत को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं हुआ. इसे भारतीय नौसेना का सबसे सफल हमला माना जाता है. इसलिए इस जीत की याद में 4- दिसंबर को नौसेना दिवस मनाया जाता हैं.

लोंगोवाला युद्ध

राजस्थान के जैसलमेर जिले में, लोंगोवाला पोस्ट पर हुआ भारत - पापिस्तान का युद्ध, दुनिया के दुर्लभ युद्दों में गिना जाता है. इस लड़ाई में पापिस्तान के 3,000 सैनिकों वाली टैंक ब्रिगेड को, भारतीय सेना के 123 जवानो ने नेस्तनाबूत कर दिया था. इसी घटना पर निर्माता निर्देशक "जे पी दत्ता" ने एक भव्य फिल्म "बार्डर" का निर्माण भी किया था.


पापिस्तान सरकार ने विरोधी नेता "शेख मुजीब्र्रह्मान" को गिरफ्तार पूर्वी पापिस्तान में दमनचक्र चला रखा था. बेकसूरों को मारा जा रहा था महिलाओं का बलात्कार किया जा रहा था, ऐसे में सेना का बिरोध करने वहां "मुक्तिवाहिनी" खड़ी हुई. इसमें बंगाली सैनिक भी शामिल हो गए. भारत सरकार ने भी मुक्तिवाहिनी को अपना समर्थन दे दिया.

भारत को रोकने के लिए पापिस्तान ने भारत को पश्चिम में उलझाना चाहा और 3 दिसंबर 1971 को अचानक भारत के कुछ सैन्य हवाई अड्डों (श्रीनगर, पठानकोट, अम्रतसर, जोधपुर, आगरा, आदि ) पर हवाई हमला कर बम गिराने शुरू कर दिए. इंदिरागांधी ने इसे पापिस्तान का भारत पर आक्रमण घोषित कर, जबाबी युद्ध का ऐलान कर दिया.

पापिस्तान के पास ख़ुफ़िया खबर थी कि - पश्चिम में भारतीय सेना कम है. ऐसे में उसने जैसलमेर पर कब्जा करने की रणनीति बनाई और 4 दिसंबर 1971 की रात को 3,000 सैनिको और टैंक ब्रिगेड के साथ लोंगोवाला चौकी पर हमला बोल दिया. उस समय लोंगोवाला में केवल 123 सैनिक ( 120 पंजाब रेजीमेंट के तथा 3 जवान BSF) मौजूद थे.

लोंगोवाल चौकी के इंचार्ज मेजर "कुलदीप चादपुरी" ने इस हमले की खबर हेडक्वार्टर को दी, तो उनको निर्देश दिया कि- 6 घंटे (सुबह) से पहले हवाई मदद नहीं मिल सकती. आप चाहो तो किसी तरह उनको रोको, नहीं तो वहां से निकलकर रामगढ़ आ जाओ. उन 123 जवानो ने पीठ दिखाकर भागने के बजाय, मुकाबला करने का निर्णय लिया.

भारत के वीरों ने अपनी कुछ साधारण थ्री नाट थ्री राइफलो, 2 MMG, हैण्ड ग्रेनेड और एंटी टैंक माईन्स की सहायता से पापिस्तान की सेना को धराशाई करना शुरू कर दिया. भारतीय सेना ने पपिस्तानियों का किस तरह से मुकाबला किया, यह तो आप सबने "बार्डर" फिल्म में देखा ही है. सेना ने पापिस्तान के सैकड़ों सैनिक मार दिए और 12 टैंक नष्ट कर दिए.

इसे देखकर पापिस्तान सेना ने अपने हेडक्वार्टर को मैसेज दिया कि- हमारी ख़ुफ़िया रिपोर्ट झूठी है, लगता है यहाँ पर कोई बड़ी ब्रिगेड मौजूद है. सुबह होते ही भारतीय वायुसेना भी पहुँच गई और ताबड़तोड़ हमले कर पापिस्तानियों को अपने टैंक छोधकर भागने पर मजबूर कर दिया. भारतीय वायुसेना ने पापिस्तान सीमा में घुसकर भी तांडव मचाया.

पापिस्तान के ब्रिगेडियर तारिक मीर को अपने टैंको, भारी सेना और ख़ुफ़िया रिपोर्ट पर इतना भरोसा था कि - उसने अधिकारियों से कहा था कि- हम 24 घंटे में जैसलमेर पर कब्जा कर लेंगे. उसने अपने सनिकों को बोला था "इंशाअल्लाह हम लोग नाश्ता लोंगोवाला में करेंगे, दोपहर का खाना रामगढ़ में खायेंगे और रात का खाना जैसलमेर में खायेंगे.

हालांकि उसके इस डायलाग को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए फिल्म में कहा गया था "सुबह का नाश्ता जैसलमेर में, दोपहर का खाना जयपुर में और रात का खाना दिल्ली में". इस युद्ध में पापिस्तान के 34 टैंक ( 12 थलसेना द्वारा और 22 वायुसेना द्वारा) सहित 200 वाहन नष्ट हो गए और 500 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे.

सारी दुनिया में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जहाँ इतने कम सैनिको द्वारा इतने सारे टैंक नष्ट किये गए हों. पापिस्तान ने तीन दिसंबर को पहला हमला किया था और भारतीय सेना ने 4 दिसंबर को ही लोंगोवाला में करारी मात दी, दुसरी तरफ उसी दिन नौ सेना ने बंगाल की खाड़ी में पापिस्तानी पनडुब्बी "गाजी" को डूबोकर पापिस्तान की कमर तोड़ दी.

4 दिसंबर 1971 : सेना के तीनो अंगों लिए गौरव का दिन

3 दिसंबर 1971 को पापिस्तान ने भारत के कई शहरों पर अचानक हवाई हमला कर दिया था , जिसको उसने नाम दिया था "आपरेशन चंगेज खान" इस हमले के बाद भारत ने भी पापिस्तान से युद्ध करने की घोषणा कर दी और जबाबी हमले के लिए तैयार हो गया. भारतीय सेना तो पहले से ही तैयार थी उसे तो केवल आदेश का इन्तजार था.

युद्ध की घोषणा के अगले ही दिन 4 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना के तीनो ही अंगों ( जल सेना, थल सेना और वायु सेना) ने अपने कारनामो से पापिस्तान को बैकफुट पर धकेल दिया. दुष्ट पापिस्तान जो अमेरिकी हथियारों के दम पर फुला हुआ था, युद्ध के पहले ही दिन भारतीय सेना ने उसकी हवा निकाल दी.
पापिस्तान जिस अमेरिकी पनडुब्बी "पीएनएस गाजी" को अपनी सबसे बड़ी ताकत मान रहा था उस पनडुब्बी को भारतीय सेना के साधारण युद्धपोत "आईएनएस राजपूत" ने 4 दिसंबर 1971 को ही ध्वस्त कर दिया. यह भारत की बहुत बड़ी जीत थी क्योंकि उस समय भारत के पास कोई पनडुब्बी नहीं थी जो उसका मुकाबला करती.
4 दिसंबर 1971 की रात को ही पापिस्तान ने अपनी 3,000 सानिको वाली टैंक ब्रिग्रेड के साथ भारत की पश्चिमी सीमा पर "लोंगोवाला पोस्ट" पर हमला बोल दिया. उस चौकी पर भारत के मात्र 123 सैनिक मौजूद थे जिनके पास हथियारों के नाम पर 2 MMG, कुछ एंटी टैंक माइंस, कुछ हैण्ड ग्रेनेड और बाक़ी थ्री नाट थ्री रायफलें थी.
पापिस्तानी सेना के मुकाबले सैनिक तो बहुत कम थे ही साथ ही उन भारतीय सैनिको के पास जो हथियार थे वो पापिस्तानी सेना के हथियारों के सामने खिलौने के समान थे.लेकिन उन भारतीय सैनिको ने इसकी परवाह किये बिना पापिस्तानी सेना का मुकाबला किया और रात में ही पापिस्तानी सेना के 12 टैंक नष्ट कर दिये.
रातभर वो सैनिक "लोंगोवाला" में पापिस्तानियो को रोके रहे और सुबह होते ही भारतीय वायुसेना अपने "हंटर विमानों" के साथ उनकी मदद को पहुँच गई. हंटर विमानों ने अपनी बमवारी से बाक़ी बचे 22 टैंको को ध्वस्त कर दिया. (लोगोंवाला की इस लड़ाई में थल सेना और वायु सेना का कारनामा, आप फिल्म बार्डर में देख चुके हैं)
हंटर विमानों ने केवल लोंगोंवाला में पापिस्तानी टैंको पर ही बमबारी नहीं की बल्कि पपिस्तान में काफी अन्दर तक घुसकर बमबारी की. हंटर विमानों ने पापिस्तान के उस क्षेत्र में तबाही मचा दी. मजे की बात यह कि - उस हमले के समय पापिस्तानी केवल अपना बचाव ही करते नजर आये जबकि उनके पास हंटर से ज्यादा ताकतवर विमान थे.
4 दिसंबर 1971 की रात को ही भारतीय नौसेना नेे पापिस्तान के कराची बंदरगाह पर हमला बोल दिया. इस हमले को भारतीय नौसेना ने नाम दिया "आप्रेसन ट्राइडेंट". इस हमले में भारतीय नौसेना ने "कराची बंदरगाह" को पूरी तरह से तवाह कर दिया और उसके 3 युद्धपोत डुबो दिए और बाक़ी के युद्धपोत भी किसी काम लायक नहीं छोड़े.
युद्ध के पहले ही दिन भारतीय सेना की वीरता और पापिस्तान की तवाही देखकर, केवल पापिस्तान ही नहीं अमेरिका भी भौचक्का रह गया था. उसको उम्मीद नहीं थी कि - उसकी डायल्बो पनडुब्बी (गाजी), पैटर्न टैंक, और खतरनाक युद्धपोतों का भारतीय सेना यह हाल करेगी. इस प्रकार पहले ही दिन भारतीय सेना पापिस्तान पर हावी हो गई.
इस पोस्ट में जिन घटनाओं का जिक्र किया गया है यह सभी घटनाएं बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. इसलिए उन सभी घटनाओं पर अलग अलग पोस्ट लिख रहा हूँ. आप सभी से निवेदन है कि उन सभी पोस्ट्स को खुद भी पढ़िए और अपने मित्रों को भी पढ़ाइये. जिससे सभी भारतीय अपनी सेना की वीरता के बारे में जानकर उस पर गर्व कर सकें

आपरेशन चंगेज खान

3 दिसंबर 1971 को पापिस्तान ने भारत के 11 स्थानों ( 9 एयर बेस और 2 जगह कश्मीर में ) श्रीनगर, पठानकोट, अमृतसर, जोधपुर, आगरा, भुज, हलवारा, आदि ) पर अचानक बमबारी कर युद्ध छेड़ दिया था. भारत पर इस हमले को पापिस्तान ने "आप्रेसन चंगेज खान" नाम दिया था. भारत पर पापिस्तान के इस हमले के मुख्यतः तीन कारण माने जाते हैं.

पहली बात यह कि- पापिस्तान को यह लगता था कि उसके पास भारत से ज्यादा खतरनाक हथियार और ताकतवर सेना है. साथ ही उसके पास अमेरिका का समर्थन और अमेरिकी हथियार प्राप्त है. जिनके द्वारा वह वह भारत को आसानी से हराकर, भारत से 1948 और 1965 की हार का बदला ले लेगा और कश्मीर भी छीन लेगा.
दुसरी बात - उन दिनों भारत में राजनैतिक नेतृत्व बहुत ढुलमुल था. शास्त्री जी की मौत में बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थी लेकिन ज्यादातर सीनियर कांग्रेसी नेताओं को वो पसंद नहीं थी. कांग्रेस दोफाड़ हो चुकी थी. पापिस्तान के आंतरिक हालत पर इंदिरा गाँधी कोई स्टैंड नहीं ले पा रही थी. पापिस्तान को इससे फायेदे की उम्मीद थी.
तीसरा सबसे बड़ा कारण था, पापिस्तान की जनता का ध्यान पापिस्तान के अंदरूनी हालात से हटाकर भारत की तरफ केन्द्रित करना. पूर्वी पापिस्तान में गृहयुद्ध चल रहा था और वह 26 मार्च 1971 को अपने आपको पापिस्तान से आजाद घोषित कर चुका था. पापिस्तान को लगता था कि भारत से युद्ध होने पर पापिस्तानी अपनी अंदरूनी लड़ाई भूल जायेंगे.
पापिस्तान ने अपने हिसाब से तो बहुत बढ़िया सोंचा था लेकिन उसे भारतीय सैनिको की वीरता का अंदाजा नहीं था. भले ही भारतीय सेना के पास आधुनिक हथियार नही थे और न ही उस समय कोई बहुत कुशल राजनैतिक नेतृत्व था, लेकिन भारतीय सेना में देश की रक्षा के लिए मरने मारने का जो जज्बा था वो दुनिया में शायद कहीं नहीं है.
उन दिनों पापिस्तान में राजनैतिक हालात बहुत खराब थे. पूर्वी पापिस्तान (बांग्लादेश) 26 मार्च 1971 को अपने आपको पापिस्तान से अलग स्वतंत्र देश घोषित कर चूका था. बंगलादेश पर जबरन कब्जा बनाए रखने के लिए पश्चिमी पापिस्तान बांग्लादेश की जनता पर बेतहाशा जुल्म कर रहा था. बहुत सारे बांग्लादेशी भारत की शरण में आ गए थे.
पूर्वी भारत (खासकर पश्चिमी बंगाल और बिहार) की जनता इंदिरा गांधी से बांग्लादेश में हस्तक्षेप करने को कह रही थी. मगर इंदिरा गांधी का कहना था कि यह पापिस्तान का आंतरिक मामला है हम इसमें कुछ नहीं कर सकते. भारत के इस ढुलमुल रवैये को पापिस्तान भी भारत की कमजोरी और अपनी ताकत समझ रहा था.
बांग्लादेश द्वारा खुद को आजाद देश घोषित किये हुए 8 महीने से ज्यादा हो चुके थे. बांग्लादेश में पापिस्तान का दमन चक्र जारी था, बांग्लादेश की जनता वहां से पलायन कर भारत में आ रही थी. उनकी हालत देखकर भारतीय बंगाली सबसे ज्यादा आक्रोश में थे. ऐसे में 3 दिसंबर 1971 को इंदिरा गांधी कोलकाता में लोगों को समझाने गई हुई थी.
पापिस्तान जल, थल, वायुसेना तीनो ही मामलों में आधुनिक हथियारों की द्रष्टि से भारत से बीस था. उसने भारत की पश्चिमी सीमा पर पैटर्न टैंको से लैस ब्रिग्रेड लगा दी थी. बंगाल की खाड़ी में "गाजी" नाम की पनडुब्बी भेज दी थी. अपने आपको हर तरह से मजबूत करने के बाद पपिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 की शाम को भारत पर हवाई हमला बोल दिया.
इस हवाई हमले (आपरेशन चंगेज खान) के बाद भी इंदिरा गांधी युद्ध का निर्णय नहीं ले पा रही थी. भारतीय सेना का धैर्य जबाब दे रहा था. ऐसे में जनरल मानेकशा ने इंदिरा गांधी से कहा था कि- आप घोषणा करती हैं या फिर मैं खुद युद्ध की घोषणा करू ? तब कोई चारा न देख इंदिरा गांधी को पापिस्तान से युद्ध की घोषणा करनी पडी.
युद्ध की घोषणा के बाद युद्ध की सारी कमान जनरल मानेकशा ने अपने हाथ में ले ली. जनरल मानेकशा ने नेताओं के द्वारा, युद्ध को लेकर कोई बयान तक देने पर रोक लगा दी थी. उस 14 दिन के भीषण युद्ध में भारतीय सेना ने बहुत सीमित संसाधनों के साथ पापिस्तान को शिकस्त देकर आत्मसमर्पण करने को मजबूर कर दिया.
भारत पापिस्तान का यह तीसरा युद्ध कुल 14 दिन तक चला था. पापिस्तान के पास पनडुब्बी. पैटर्न टैक, अमेरिकन लड़ाकू विमान जैसे आधुनिक हथियार थे. लेकिन भारतीय सैनिको के हौशलों आगे उसके सारे आधुनिक अमरीकी हथियार फेल हो गए. 14 दिन के इस युद्ध में भारत ने पापिस्तान को धरती- जल -आकाश हर जगह मात दी.
16 दिसंबर 1971 को पापिस्तान ने भारत से हार मान ली और पापिस्तान की सेना ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. 3 दिसंबर से 16 दिसंबर तक चले उस युद्ध की महत्वपूर घटनाओं को आपके सामने प्रतिदिन प्रस्तुत करने का प्रयास करूँगा. इन्हें पढ़कर आपको भारतीय सेना पर निश्चित रूप से गर्व महेसूस होगा.
इस युद्ध में भारतीय सेना का साथ आम नागरिको और स्वयंसेवकों से लेकर डाकुओं ने तक दिया था. इस श्रंखला को पढने के बाद आपको यह भी पता चल जाएगा कि - भारत पापिस्तान के उस युद्ध की जीत में इंदिरा गांधी का उतना ही योगदान था, जितना भारत को अंग्रेजों आजाद कराने में गांधीजी का था.

क्या गांधी की हत्या के बाद गोडसे ने खुद को मुसलमान बताया था ?

 नाथूराम गोडसे को लेकर आजकल कांग्रेसियों और शांतिधूर्तों ने एक नई झूठी कहानी कहनी शुरू की है कि - गांधी को मारने के बाद नाथूराम गोडसे अपने आपको मुस्लमान साबित करना चाहता था और इसके लिए उसने अपना खतना तक करा रखा था, जिससे कि गांधी को मारने का आरोप मुसलमानो पर डाला जा सके.

पहली बात तो यह कि यह बात सिरे से झूठ है और अभी हाल ही में बनाई गई है क्योंकि अब से कुछ समय पहले तक ऐसा किसी ने नही कहा था. गांधी की हत्या के बाद गोडसे ने न भागने की कोशिश की थी और न ही अपनी पहचान को छुपाया था और गोडसे के चितपावन ब्राह्मण होने के कारण ही कांग्रेसियों ने चितपावन ब्राह्मणो के खिलाफ दंगा किया था
वैसे भी नाथूराम कोई ऐसा नया व्यक्ति नहीं था जिसे कोई जानता न हो. गोडसे सार्वजनिक जीवन जीता था और उसके बारे में सभी जानते थे कि वह एक कट्टर हिंदुत्ववादी है. नाथूराम गोडसे का जन्म 1910 में हुआ था और वह 1930 में कुछ समय संघ का स्वयंसेवक बना. संघ उस समय छोटा और नया संगठन था इसलिए जल्दी ही वह हिन्दू सभा में चला गया.
मुस्लिम लीग द्वारा अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग के बाद , वह 1932 में हिन्दू महासभा का सक्रीय सदस्य बन गया. 1940 में हैदराबाद के निजाम ने हैदराबाद में हिन्दुओं पर "जजिया कर" लगाया, जिसका हिन्दू महासभा ने विरोध किया. हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं का पहला जत्था नाथूराम गोडसे के नेतृत्व में ही हैदराबाद गया था.
उस समय निजाम ने नाथूराम को उसके साथियों के साथ बन्दी बनाया था. 1942 में उसने अपना खुद का एक नया संगठन "हिंदू राष्ट्र दल" बनाया था. हालांकि जब वह उसे आगे बढ़ा पाने में सफल नहीं हुआ तो फिर से हिंदू महासभा में सक्रीय हो गया. द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जब गांधी द्वारा अंग्रेजो का साथ देने के आव्हान किया गया तो उसने बिरोध किया था.
वह एक लेखक और पत्रकार भी था. 1946 में जब मुसलमानो ने डायरेक्ट एक्शन के नाम पर हिन्दुओं के खिलाफ दंगे किये थे, उस समय हिन्दू महासभा के नेता डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और निर्मल चंद्र चटर्जी आदि ने गोपाल पाठा नाम के बाहुवली के साथ मिलकर दंगाइयों से मुकाबला किया था तब भी गोडसे ने उनके समर्थन में लेख लिखे थे
आजादी के बाद हुए बंटवारे के कारण जो हिन्दू पाकिस्तान से भारत आये थे उनके रहने / खाने / कम्बल आदि की व्यवस्था में भी वह लगा रहता था, अर्थात ऐसे कार्यों में भी वह सबकी नजर में रहा होगा. कुल मिलाकर वह लगभग 18 साल से सार्वजनिक जीवन जी रहा था और उसके बारे में ज्यादातर लोग जानते थे कि वह हिन्दू है.
क्या ऐसा व्यक्ति अपनी पहचान छुपा सकता है, जिसकी पहचान को बर्षों से लोग जानते हों ? इसलिए कांग्रेसियों और शांतिधूर्तों की इस नई कहानी के झांसे में आने की जरूरत नहीं है. आप गांधी की हत्या के लिए गोडसे को कोस जरूर सकते हैं लेकिन यह आरोप नहीं गाँधी की हत्या के बाद गोडसे ने अपनी कोई मुस्लिम पहचान बताई थी

Friday, 2 December 2022

यूरेशिया

 यूरेशिया किसी एक छोटे से देश का नाम नहीं है बल्कि "यूरेशिया" का अर्थ है सारा यूरोप और सारा एशिया. उस जमाने में सारे यूरोप और एशिया पर ही आर्यों (हिन्दुओ) का राज था. सारा यूरोप और सारा एशिया मिलकर यूरेशिया कहलाता था. अतः इसमें कोई संदेह नहीं है कि आर्य (हिन्दू ) यूरेशिया के मूल निवाशी हैं.

पहले हमारा भारत बहुत विशाल था. सारा यूरोप और एशिया हमारा आर्यावर्त (भारत) था, जिसे जम्बू दीप कहते थे. पिछली सदी में पापिस्तान, बंगलादेश, भूटान, म्यामार, लंका, आदि भारत से अलग हुए, उससे पहले की सदी में अफगानिस्तान, तिब्बत अलग हुए थे, उससे कई सदी पहले कम्बोडिया, मलेशिया, इंडोनेशिया, आदि भारत से अलग हुए.
समस्त यूरोप और एशिया (जंबू दीप) में, भारतीय (आर्य) संस्कृति ही थी. इन सभी देशों में आज भी जगह जगह मंदिरों के अवशेष मिलते हैं. समय समय पर एक एक व्यक्तियों द्वारा समुदाय और पंथ बनते गए इन्होने हमारी भारतीय संस्क्रती को नुकशान पहुंचाया लेकिन हम लापरवाह बने रहे. इसी का परिणाम है कि - भारत इतना छोटा रह गया है.
आज भी भारत पर लगातार अन्दर और बाहर से हमला हो रहा है. आसुरी शक्तियां को भारत को तोडना चाहती है अभी भी अगर लापरवाह बने रहे तो वह दिन दूर नहीं जब भारत और छोटा अथवा ख़त्म हो जाएगा और यहाँ आसुरी शक्तियों का राज होगा. हम हिन्दुओ को अपने धर्म की रक्षा करनी है धर्म बचेगा तो देश बचेगा.
अब सारे यूरोप और एशिया में ही नहीं बल्कि समस्त विश्व में दैवीय भारतीय संस्कृति को फैलाना होगा और आसुरी शक्तियों को परास्त करना होगा, अमेरिका जो हमारी धरती के बिलकूल नीचे (अर्थात -पीछे ) है वह पाताल लोक था तथा प्राचीन साहित्य में बातये गए डराबने और काले रंग के लोग संभवतः अफ्रीका के लोग रहे होंगे.

बंगलादेश का निर्माण और उसमे इंदिरा गांधी की भूमिका

कांग्रेस के द्वारा जोर शोर से किये गए प्रचार के कारण बहुत से लोग यह समझते हैं कि- बंगलादेश को अलग करने का काम इंदिरा गांधी ने किया था, जबकि वास्तविकता यह है कि- पूर्वी पपिस्तान, पापिस्तानियों के पूर्वी पपिस्तान के प्रति सौतेले के कारण पापिस्तान से अलग हुआ था. इसका बहुत बड़ा कारण "बंगला" भाषा पर "उर्दू" थोपना भी था.

भारत पापिस्तान का युद्ध 3 दिसंबर 1971 से 16 दिसंबर 1971 तक चला था जबकि बंगलादेश अपने आपको 26 मार्च 1971 को ही पापिस्तान से अलग करने की घोषणा कर चूका था. इसीलिये बंगलादेश में 26 मार्च को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है. बंगलादेश के निर्माण का कारण समझने के लिए हमें पहले सारे घटनाक्रम को समझना होगा.

बांग्लादेश, भारत के बंगाल का वह हिस्सा है, जिसको अंग्रेजों ने हिन्दू / मुस्लिम जनसँख्या के आधार पर सबसे पहले विभाजित किया था. अंग्रेजों ने बंगाल को दो भागों में बांटा दिया था पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल. पूर्वी बंगाल में मुसलमानों की संख्या ज्यादा थी और पश्चिमी बंगाल.में हिन्दुओं की जनसख्या अधिक थी.
1947 में अंग्रेजों राज से से आजादी के समय, मुस्लिम बहुल होने के कारण पूर्वी बंगाल ने पपिस्तान के साथ जाना उचित समझा और वह पापिस्तान का हिस्सा बन गया. उसको पूर्वी पापिस्तान कहा जाता था. आजादी के बाद से ही पापिस्तान की राजनीति में पश्चिमी पापिस्तान का प्रभुत्व रहा और पूर्वी पापिस्तान को दुसरे दर्जे का समझा जाता रहा.
पूर्वी हिस्सा देश की सत्ता में कभी भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं पा सका एवं हमेशा राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा. इसी नाराजगी का राजनैतिक लाभ लेने के लिए बांग्लादेश के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया और पाकिस्तान के अंदर ही और स्वायत्तता की मांग की. और इसी मुद्दे पर 1970 का आम चुनाव लड़ा.
चुनाव में मुजीब-उर-रहमान की अवामी लीग को जबरदस्त जीत मिली लेकिन उनको प्रधानमंत्री बनाने के बजाय जेल में डाल दिया गया. उस समय पापिस्तान में जनरल याह्या खान राष्ट्रपति थे और उन्होंने पूर्व में फैली नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी. टिक्का खान ने पूर्वी पापितान में जुल्म करना शुरू कर दिए.
टिक्का खान ने बंगाली सैनिको को हटा दिया और पश्चिमी पापिस्तानी सैनिको को पूर्वी पापिस्तान में लगा दिया. टिक्का खान ने 25 मार्च 1971आपरेशन "सर्चलाईट" शुरू कर बांग्लादेशियों पर बेतहाशा जुल्म शुरू कर दिए. इस जुल्म का बिरोध करने के लिए "मुक्ति वाहिनी" खड़ी हो गई और बंगाली मूल के सैनिक भी वगावत करके इसके साथ आ गए.
पपिस्तानी सेना और मुक्तिवाहिनी के बीच जंग शुरू हो गई. 26 मार्च 1971 को मुक्ति वाहिनी और अवामी लीग ने, पापिस्तान से अलग होने की घोषणा कर अपने आपको एक स्वतंत्र देश "बँगलादेश" घोषित कर दिया. इसके बाद पापिस्तानी सेना ने बंगलादेश की आम जनता पर जुल्म करने शुरू कर दिये, जिनमे हत्या और बलात्कार सबसे प्रमुख था.
बंगलादेश के लोग अपनी जान और इज्ज़त बचाने के लिए, बड़ी संख्या में शरणार्थी बनकर भारत में आने लगे. उनकी दुर्दशा देखकर भारतीय (खासकर बंगाली ) भारत सरकार से बंगलादेश में हस्त्क्षेप की मांग करने लगे. लेकिन भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि - यह पापिस्तान का अंदरूनी मामला है और हम इसमें कोई दखल नहीं देगे.
उन दिनों "अमेरिका" और "सोवियंत संघ" में शीतयुद्ध चल रहा था. पापिस्तान अमेरिका के गुट में था. भारत ने अपने आपको गुट निरपेक्ष घोषित किया था मगर अमेरिका भारत को सोवियत संघ का करीबी ही मानता था. इसलिए अमेरिका भारत पर नियन्त्रण रखने के लिए पापिस्तान को आधुनिक हथियारों से लैस कर रहा था.
अमेरिका ने पापिस्तान को अनेकों पनडुब्बी, युद्धपोत, टैंक और लड़ाकू विमान दे रखे थे जिनके दम पर वो अपने आपको, भारत से ज्यादा ताकत्बर समझने लगा था. वह 1948 और 1965की हार का बदला लेना चाहता था. पापिस्तान ने भारत की सीमा पर दबाब बढ़ाना शुरू कर दिया था. इसकी बजह से भारतीय सेना का चिंतित होना स्वाभाविक था.
सेना सरकार से अनुरोध कर रही थी कि- सीमा पर सेना और सैन्य संसाधन बढाए जाए. पूर्वी पापिस्तान में बंगालियों पर पापिस्तानी सेना के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे. बंगाल की जनता भी बार बार सरकार से वहां हस्तक्षेप का अनुरोध कर रही थी लेकिन सरकार किंकर्तव्यविमूढ़ बनी हुई थी. भारत की खामोशी से पापिस्तान के भी हौशले बढ़ गए.
पापिस्तान को लगा कि - भारत, पापिस्तान की सैन्य ताकत से डर रहा है. उसको लगा यह अच्छा मौका है भारत पर हमला करने का. इससे हम 1948 और 1965 की हार का बदला भी ले लेंगे और देश की जनता का ध्यान भी बंगलादेश की घटनाओं से हट जाएगा. इसी सोंच के साथ पापिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को हवाई हमला कर दिया.
इस हमले को पापिस्तान ने नाम दिया था "आपरेशन चंगेज खान". पापिस्तान ने अपनी बहुत सारे बमबर्षको के साथ भारत के कई शहरों में बमबारी की. उस समय इंदिरा गांधी कलकत्ता में थीं और वहां की व्याकुल जनता को समझा रही थी कि - पूर्वी पापिस्तान में जो हो रहा है वो पापिस्तान का आंतरिक मामला है, इसमें हम कुछ नहीं कर सकते.
भारत पर हवाई हमले की खबर मिलते ही इंदिरा गांधी फौरन दिल्ली पहुंची और सेना के प्रमुखों से आपात बैठक की. बैठक में कोई नतीजा न निकलता देखकर जनरल "सैम मानेकशा ने कहा- आप पापिस्तान से युद्ध का ऐलान कीजिए, नहीं तो मैं सत्ता पलट करके युद्ध का ऐलान कर दूंगा. तब मजबूर होकर इंदिरा गांधी ने युद्ध की घोषणा कर दी.
हथियारों की आधुनिकता और उनकी संख्या के आधार पर पापिस्तान भारत से काफी आगे था, लेकिन देश के मरने मारने के जज्बे के मामले में भारतीय सेना के सामने बहुत पीछे थी. भारत की सेना ने पापिस्तान का जो हाल किया वो सारी दुनिया को पता है. सीमित संसाधनों से ही भारतीय सेना ने पापिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.
पापिस्तानी सेना की हार और आत्मसमर्पण के साथ ही मुजीब-उर-रहमान जेल से रिहा हो गए. मुक्ति वाहिनी और अवामी लीग ने सत्ता सम्हाल ली. इस प्रकार एक नए देश बंगलादेश का उदय हुआ जिसके निर्माण में भारतीय सेना ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

बांग्लादेश की आजादी और जनसंघ

26 मार्च 1971 को शेख़ मुजीबुर रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान को अलग स्वतंत्र देश "बांग्लादेश" घोषित कर दिया था. पूर्वी पाकिस्तान की बगावत को रोकने के लिए पश्चिमी पापिस्तान (वर्तमान पापिस्तान) की सेना, पूर्वी पापिस्तान ( वर्तमान बांग्लादेश) की जनता पर अमानवीय अत्याचार कर रही थी.

पूर्वी पापिस्तान से लाखों की संख्या में शरणाथी भारत में आ रहे थे, जिनमे प्रताड़ित हिन्दुओ की संख्या बहुत ज्यादा थी. ऐसे में भारत्तीय जनसंघ ने सरकार से आग्रह किया कि- बांग्लादेश को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी जाए, मगर इंदिरा गांधी ने इसे पापिस्तान का आंतरिक मामला कह दिया था.
भारत द्वारा बांग्लादेश को मान्यता देने की मांग को लेकर तब जनसंघ ने आंदोलन किया था. मगर इंदिरा गांधी का मानना था कि यह पाकिस्तान का अंदरूनी मामला है. सरकार पर दबाब बनाने के लिए जनसंघ ने जेल भरो आंदोलन भी चलाया था. जनसंघ के अनेकों कार्यकर्ता तब जेल गए थे.
बांग्लादेश में पाकिस्तान सेना द्वारा चुन चुन कर हिन्दू जनता पर अत्याचार किया जा रहा था लेकिन इसे भारत सरकार मुसलमानो का हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं मान रही थी बल्कि इसे उर्दू भाषियों का बांग्लाभाषियों पर अत्याचार कह रही थी. इस बात को लेकर जनसंघ नाराज था.
प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रोफेसर जे. बास की किताब 'The Blood Telegram: Nixon, Kissinger and a Forgotten Genocide" के मुताबिक भी वह युद्ध मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं के खिलाफ हो रहा था.
कांग्रेसी बखान करते हैं कि- इंदिरा ने पाकिस्तान के दो टुकड़े किये थे जबकि हकीकत यह है कि- बांग्लादेश द्वारा 26 मार्च 1971 को अपने आपको पाकिस्तान से अलग घोषित किये जाने के बाद तब से लेकर 3 दिसंबर 1971 तक इंदिरा गांधी इसे पाकिस्तान का आंतरिक मामला ही मानती थी.
3 दिसंबर 1971 को भी इंदिरा गांधी कलकत्ता में लोगों को यही समझा रहीं थी. वो तो अति उत्साह में आकर पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को भारत के कई शहरों पर एक साथ हवाई हमला (आपरेशन चंगेजखान) कर दिया और इसके कारण की भारत को पाकितान के साथ युद्ध का ऐलान करना पड़ा.
इंदिरा गांधी की सहेली पुपुल जयकर ने तो अपनी किताब में यहाँ तक लिखा है कि - आपरेशन चंगेज खान के बाद भी इंदिरागांधी युद्ध का ऐलान करने में संकोच कर रहीं थी. तब जनरल मानेकशा ने धमकी भरे स्वर में कहा था कि - युद्ध की घोषणा आप करती हैं या फिर मैं करूँ.
अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि हम न केवल मुक्ति संग्राम में जीवन की आहुति देने वालों के साथ हैं बल्कि हम इतिहास को भी एक नई दिशा देने का प्रयत्न कर रहे हैं. नरेंद्र मोदी ने कहा, 'बांग्लादेश की आजादी के लिए संघर्ष में शामिल होना, मेरे जीवन के भी पहले आंदोलनों में से एक था
मोदी जी उस आंदोलन के समय में कब से कब तक जेल में रहे थे ये तो वे या उनका PRO बता सकता है लेकिन यह सत्य है कि - बांग्लादेश को स्वतंत्र देश की मान्यता दिलाने के लिए जनसंघ ने जेल भरो आंदोलन चलाया और उसके अनेकों कार्यकर्ता जेल गए थे.
बांग्लादेश अपना स्वाधीनता दिवस 26 मार्च 1971 को मनाता है. बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने वाला पहला देश भूटान था जबकि भारत ने 6 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश को मान्यता दी थी. पाकिस्तान ने 1974 में स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी थी

Thursday, 1 December 2022

संघ गीत : संगठन गढ़े चलो सुपंथ पर बढे चलो

संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढे चलो।
भला हो जिसमे देश का, वो काम सब किये चलो।।
युग के साथ मिल के सब,
कदम बढ़ाना सिख लो ,
एकता के स्वर में गीत,
गुनगुनाना सिख लो ,
भूल का भी मुख से,
जाति पंथ की न बात हो
भाषा प्रांत के लिए,
कभी न रक्त पात हो ,
फुट का घड़ा भरा है, फोड़ कर बढे चलो।
भला हो जिसमे देश का , वो काम सब किये चलो।
संगठन गढ़े चलो , सुपंथ पर बढे चलो।
भला हो जिसमे देश का , वो काम सब किये चलो।।
आ रही है आज
चारों ओर से यही पुकार
हम करेंगे त्याग
मातृभूमि के लिए अपार
कष्ट जो मिलेगे,
मुस्कुरा के सब सहेंगे हम
देश के लिए सदा,
जियेंगे और मरेंगे हम
देश का ही भाग्य, अपना भाग्य है ये सोच लो।
भला हो जिसमे देश का, वो काम सब किये चलो।
संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढे चलो।
भला हो जिसमे देश का , वो काम सब किये चलो।।

संघ गीत : युगों युगों से यही हमारी, बनी हुई परिपाटी है,

युगों युगों से यही हमारी, बनी हुई परिपाटी है,

खून दिया है मगर नही दी, कभी देश की माटी है,

इस धरती ने जन्म दिया है,
यही पुनीता माता है,
एक प्राण दो देह सरीका,
इससे अपना नाता है,
यह धरती है पार्वती माँ,
यही राष्ट्र शिव शंकर है,
दिगमंडल सापों का कुण्डल,
कण कण रूद्र भयंकर है,
यह पावन माटी ललाट की, ललीत ललाम ललाटी है,
खून दिया है मगर नही दी, कभी देश की माटी है,
युगों युगों से यही हमारी, बनी हुई परिपाटी है,
खून दिया है मगर नही दी, कभी देश की माटी है,
इसी भूमि पुत्री के कारण,
भस्म हुई लंका सारी,
सुई नोक भर भू के पीछे,
हुआ महा भारत भारी,
पानी सा बह उठा लहु था,
पानीपत के प्रांगण में,
बिछा दिये रिपु गण के शव थे,
उसी तरायण के रण मे,
पृष्ठ बाचते इतिहासो के, अब भी हल्दी घाटी है,
खून दिया है मगर नही दी, कभी देश की माटी है,
युगों युगों से यही हमारी, बनी हुई परिपाटी है,
खून दिया है मगर नही दी, कभी देश की माटी है,
सिख मराठे राजपूत क्या,
बंगाली क्या मद्रासी,
इस मंत्र का जाप कर रहे,
युग युग से भारतवासी,
बुन्देले अब भी दोहराते,
यही मंत्र है झाँसी में,
देंगे प्राण ना देंगे माटी,
गूंज रहा है नस नस मे,
शिश चढाया काट गर्दने, या अरी गर्दन काटी है,
खून दिया है मगर नही दी, कभी देश की माटी है,
युगों युगों से यही हमारी, बनी हुई परिपाटी है,
खून दिया है मगर नही दी, कभी देश की माटी है,
इस धरती के कण कण पर है,
चित्र खिचा कुरबानी का,
एक एक कण छंद बोलता,
चढी शहीद जवानी का,
इसके कण है नही किंतु ये,
ज्वाला मुखी के शोले है,
किया किसी ने दावा इनपर,
ये दावा से डोले है,
इन्हें चाटने बढा उसी ने, धूल धरा की चाटी है,
खून दिया है मगर नही दी, कभी देश की माटी है,
युगों युगों से यही हमारी, बनी हुई परिपाटी है,
खून दिया है मगर नही दी, कभी देश की माटी है,

संघ गीत : देश हमें देता है सब कुछ

देश हमें देता है सब कुछ , हम भी तो कुछ देना सीखे
देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखे। ।
सूरज हमें रोशनी देता,
हवा नया जीवन देती है।
भूख मिटाने को हम सब की,
धरती पर होती खेती है
औरों का भी हित हो जिससे, हम ऐसा कुछ करना सीखे
देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखे
गर्मी की तपती दोपहर में,
पेड़ सदा देते हैं छाया
सुमन सुगंध सदा देते हैं,
हम सबको फूलों की माला
त्यागी तरुओं के जीवन से , हम परहित कुछ करना सीखे
देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखे
जो अनपढ़ है उन्हें पढ़ाएं,
जो चुप है उनको वाणी दे
पिछड़ गए जो उन्हें बढ़ाए,
समरसता का भाव जगा दें
हम मेहनत के दीप जलाकर , नया उजाला करना सीखे
देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखे
देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखे
देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखे

संघ गीत : हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार

हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार।

हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार ।।
अर्पित कर दो तन – मन – धन,
मांग रहा बलिदान वतन।
काम ना आया, अगर देश के,
तो जीवन बेकार।
तो जीवन बेकार साथियों,
तो जीवन बेकार ,
हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार।
हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार ।।
सोचने का समय गया,
उठो लिखो इतिहास नया।
बंसी फेंको और उठा लो,
हाथों में हथियार।
हाथों में हथियार साथियों,
हाथों में हथियार।
हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार।
हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार ।।
तूफानी गति रुके नहीं,
शीश कटे पर झुके नहीं।
ठने हुए माथे के सम्मुख ,
ठहर न पाती हार
ठहर न पाती हार साथियों
ठहर न पाती हार
हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार।
हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार ।।
गूंज उठे ये धरती अंबर,
और उठा लो ऊंचा स्वर।
कोटि-कोटि कंठों से गूंजे,
धर्म की जय जयकार।
धर्म की जय जयकार साथियों
धर्म की जय जयकार।
हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार।
हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार ।।

संघ गीत : चन्दन है इस देश की माटी

चन्दन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है॥
हर शरीर मन्दिर सा पावन,
हर मानव उपकारी है।
जहाँ सिंह बन गये खिलौने,
गाय जहाँ माँ प्यारी है।
जहाँ सवेरा शंख बजाता,
लोरी गाती शाम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा,
बच्चा-बच्चा राम है॥
चन्दन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है॥
जहाँ कर्म से भाग्य बदलते,
श्रम निष्ठा कल्याणी है।
त्याग और तप की गाथाएँ,
गाती कवि की वाणी है॥
ज्ञान जहाँ का गंगा जल सा,
निर्मल है अविराम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा,
बच्चा-बच्चा राम है॥
चन्दन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है॥
इसके सैनिक समर भूमि में,
गाया करते गीता हैं।
जहाँ खेत में हल के नीचे,
खेला करती सीता हैं।
जीवन का आदर्श यहाँ पर,
परमेश्वर का धाम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा,
बच्चा-बच्चा राम है ॥
चन्दन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है॥