कांग्रेस के द्वारा जोर शोर से किये गए प्रचार के कारण बहुत से लोग यह समझते हैं कि- बंगलादेश को अलग करने का काम इंदिरा गांधी ने किया था, जबकि वास्तविकता यह है कि- पूर्वी पपिस्तान, पापिस्तानियों के पूर्वी पपिस्तान के प्रति सौतेले के कारण पापिस्तान से अलग हुआ था. इसका बहुत बड़ा कारण "बंगला" भाषा पर "उर्दू" थोपना भी था.
भारत पापिस्तान का युद्ध 3 दिसंबर 1971 से 16 दिसंबर 1971 तक चला था जबकि बंगलादेश अपने आपको 26 मार्च 1971 को ही पापिस्तान से अलग करने की घोषणा कर चूका था. इसीलिये बंगलादेश में 26 मार्च को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है. बंगलादेश के निर्माण का कारण समझने के लिए हमें पहले सारे घटनाक्रम को समझना होगा.
बांग्लादेश, भारत के बंगाल का वह हिस्सा है, जिसको अंग्रेजों ने हिन्दू / मुस्लिम जनसँख्या के आधार पर सबसे पहले विभाजित किया था. अंग्रेजों ने बंगाल को दो भागों में बांटा दिया था पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल. पूर्वी बंगाल में मुसलमानों की संख्या ज्यादा थी और पश्चिमी बंगाल.में हिन्दुओं की जनसख्या अधिक थी.
1947 में अंग्रेजों राज से से आजादी के समय, मुस्लिम बहुल होने के कारण पूर्वी बंगाल ने पपिस्तान के साथ जाना उचित समझा और वह पापिस्तान का हिस्सा बन गया. उसको पूर्वी पापिस्तान कहा जाता था. आजादी के बाद से ही पापिस्तान की राजनीति में पश्चिमी पापिस्तान का प्रभुत्व रहा और पूर्वी पापिस्तान को दुसरे दर्जे का समझा जाता रहा.
पूर्वी हिस्सा देश की सत्ता में कभी भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं पा सका एवं हमेशा राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा. इसी नाराजगी का राजनैतिक लाभ लेने के लिए बांग्लादेश के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया और पाकिस्तान के अंदर ही और स्वायत्तता की मांग की. और इसी मुद्दे पर 1970 का आम चुनाव लड़ा.
चुनाव में मुजीब-उर-रहमान की अवामी लीग को जबरदस्त जीत मिली लेकिन उनको प्रधानमंत्री बनाने के बजाय जेल में डाल दिया गया. उस समय पापिस्तान में जनरल याह्या खान राष्ट्रपति थे और उन्होंने पूर्व में फैली नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी. टिक्का खान ने पूर्वी पापितान में जुल्म करना शुरू कर दिए.
टिक्का खान ने बंगाली सैनिको को हटा दिया और पश्चिमी पापिस्तानी सैनिको को पूर्वी पापिस्तान में लगा दिया. टिक्का खान ने 25 मार्च 1971आपरेशन "सर्चलाईट" शुरू कर बांग्लादेशियों पर बेतहाशा जुल्म शुरू कर दिए. इस जुल्म का बिरोध करने के लिए "मुक्ति वाहिनी" खड़ी हो गई और बंगाली मूल के सैनिक भी वगावत करके इसके साथ आ गए.
पपिस्तानी सेना और मुक्तिवाहिनी के बीच जंग शुरू हो गई. 26 मार्च 1971 को मुक्ति वाहिनी और अवामी लीग ने, पापिस्तान से अलग होने की घोषणा कर अपने आपको एक स्वतंत्र देश "बँगलादेश" घोषित कर दिया. इसके बाद पापिस्तानी सेना ने बंगलादेश की आम जनता पर जुल्म करने शुरू कर दिये, जिनमे हत्या और बलात्कार सबसे प्रमुख था.
बंगलादेश के लोग अपनी जान और इज्ज़त बचाने के लिए, बड़ी संख्या में शरणार्थी बनकर भारत में आने लगे. उनकी दुर्दशा देखकर भारतीय (खासकर बंगाली ) भारत सरकार से बंगलादेश में हस्त्क्षेप की मांग करने लगे. लेकिन भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि - यह पापिस्तान का अंदरूनी मामला है और हम इसमें कोई दखल नहीं देगे.
उन दिनों "अमेरिका" और "सोवियंत संघ" में शीतयुद्ध चल रहा था. पापिस्तान अमेरिका के गुट में था. भारत ने अपने आपको गुट निरपेक्ष घोषित किया था मगर अमेरिका भारत को सोवियत संघ का करीबी ही मानता था. इसलिए अमेरिका भारत पर नियन्त्रण रखने के लिए पापिस्तान को आधुनिक हथियारों से लैस कर रहा था.
अमेरिका ने पापिस्तान को अनेकों पनडुब्बी, युद्धपोत, टैंक और लड़ाकू विमान दे रखे थे जिनके दम पर वो अपने आपको, भारत से ज्यादा ताकत्बर समझने लगा था. वह 1948 और 1965की हार का बदला लेना चाहता था. पापिस्तान ने भारत की सीमा पर दबाब बढ़ाना शुरू कर दिया था. इसकी बजह से भारतीय सेना का चिंतित होना स्वाभाविक था.
सेना सरकार से अनुरोध कर रही थी कि- सीमा पर सेना और सैन्य संसाधन बढाए जाए. पूर्वी पापिस्तान में बंगालियों पर पापिस्तानी सेना के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे. बंगाल की जनता भी बार बार सरकार से वहां हस्तक्षेप का अनुरोध कर रही थी लेकिन सरकार किंकर्तव्यविमूढ़ बनी हुई थी. भारत की खामोशी से पापिस्तान के भी हौशले बढ़ गए.
पापिस्तान को लगा कि - भारत, पापिस्तान की सैन्य ताकत से डर रहा है. उसको लगा यह अच्छा मौका है भारत पर हमला करने का. इससे हम 1948 और 1965 की हार का बदला भी ले लेंगे और देश की जनता का ध्यान भी बंगलादेश की घटनाओं से हट जाएगा. इसी सोंच के साथ पापिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को हवाई हमला कर दिया.
इस हमले को पापिस्तान ने नाम दिया था "आपरेशन चंगेज खान". पापिस्तान ने अपनी बहुत सारे बमबर्षको के साथ भारत के कई शहरों में बमबारी की. उस समय इंदिरा गांधी कलकत्ता में थीं और वहां की व्याकुल जनता को समझा रही थी कि - पूर्वी पापिस्तान में जो हो रहा है वो पापिस्तान का आंतरिक मामला है, इसमें हम कुछ नहीं कर सकते.
भारत पर हवाई हमले की खबर मिलते ही इंदिरा गांधी फौरन दिल्ली पहुंची और सेना के प्रमुखों से आपात बैठक की. बैठक में कोई नतीजा न निकलता देखकर जनरल "सैम मानेकशा ने कहा- आप पापिस्तान से युद्ध का ऐलान कीजिए, नहीं तो मैं सत्ता पलट करके युद्ध का ऐलान कर दूंगा. तब मजबूर होकर इंदिरा गांधी ने युद्ध की घोषणा कर दी.
हथियारों की आधुनिकता और उनकी संख्या के आधार पर पापिस्तान भारत से काफी आगे था, लेकिन देश के मरने मारने के जज्बे के मामले में भारतीय सेना के सामने बहुत पीछे थी. भारत की सेना ने पापिस्तान का जो हाल किया वो सारी दुनिया को पता है. सीमित संसाधनों से ही भारतीय सेना ने पापिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.
पापिस्तानी सेना की हार और आत्मसमर्पण के साथ ही मुजीब-उर-रहमान जेल से रिहा हो गए. मुक्ति वाहिनी और अवामी लीग ने सत्ता सम्हाल ली. इस प्रकार एक नए देश बंगलादेश का उदय हुआ जिसके निर्माण में भारतीय सेना ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.