Thursday, 28 November 2019

विवाह के लिए जाति, गोत्र, अल्ल, कुंडली आदि का महत्त्व

भारत में जाति (खानदानी व्यवसाय), गोत्र (वंश परम्परा), अल्ल (मूल गाँव ) , कुण्डली (ज्योतिषीय गणना), इत्यादि को देखने के बाद बच्चों की शादी कराई जाती थी, शायद इसीलिए भारत में कभी तलाक जैसे प्रावधान की जरूरत नहीं पडी थी. इन बातों को एक दम से गलत कहकर खारिज करने के बजाय इनको पहले अच्छे से समझना होगा.
जैसा कि सभी जानते है कि - विभिन्न प्रकार के व्यवसाय करने वालों के अपने कार्य की आवश्यकता के हिसाब से अलग अलग दिनचर्या और स्वभाव बन जाते हैं. पुरोहित का कार्य करने वाले की दिनचर्या सैनिक के परिवार की दिनचर्या से अलग होगी. दूकान पर बैठने वाले की दिनचर्या खेत में काम करने वाले से अलग होगी.
ड्राइवर की दिनचर्या पशुपालनक की दिनचर्या से अलग होगी. विवाह के बाद लड़की जब अपनी ससुराल जाए तो उसे अपने मायके और ससुराल के रहन सहन में ज्यादा फर्क न लगे इसलिए कोशिश की जाती थी कि विवाह समान व्यवसाय वालों में किया जाए. जिससे लड़की मायके के जिस माहौल की आदी है ससुराल में भी वैसा ही माहौल मिले.
आज भी आप देखते होंगे कि - डॉक्टर की कोशिश होती है कि लड़की भी डॉक्टर हो, राजनतिक परिवार के लड़के की शादी भी ज्यादातर किसी नेता की बेटी से ही होती है. सैन्य अधिकारी अपने बच्चों की शादी के लिए सैन्य परिवार ही चुनना पसंद करते है. जिससे दम्पत्ति और समधी दोनों को एक दुसरे के रहन सहन से कोई दिक्कत न हो.
इसी प्रकार से गोत्र और अल्ल को देखने का मुख्य मकसद यह है कि - लड़के और लड़की की वंश परम्परा (डीएनए) क्या है. कहीं वे दोनों वंश परम्परा के हिसाब से भाई बहन तो नहीं है. अब जिनके यहाँ भाई बहन (कजन) की ही आपस में शादी करा दी जाती हो उनको उनको यह नहीं समझ आएगा कि - सगोत्र विवाह अनुचित क्यों है.
भारत में यह हमेशा ध्यान रखा जाता रहा है कि - किसी भी प्रकार से भाई बहन की शादी न होने पाए. जिस खानदान की लड़की अपने खानदान में आई है उस खानदान में अपनी लड़की न दी जाए. आधुनिक संविधान के अनुसार भी पिता के खानदान की 5 पीढ़ी और माता के खानदान की 3 पीढी से भाई बहन हो तो विवाह अनुचित कहा गया है.
भारत में ज्योतिषीय गणनाओं द्वारा भविष्य का कुछ कुछ अनुमान लगा लेने की मान्यता रही है, बहुत हद तक यह अक्सर सही भी बैठती हैं. अनेको दम्पत्तियों के जीवन को देखकर और उनकी गृह दशा के अनुसार आये परिणामो को देखकर, ऐसे ज्योतिषीय सिद्धांत बनाए गए जिनसे पता चलता है कि कैसा संयोग शुभ होगा और कैसा अशुभ.
इसी प्रकार क्षेत्रीय विविधिता का भी ध्यान रखा जाता था क्योंकि पहाड़ पर रहने वाले और समुद्र् के किनारे रहने वाला का खानपान और रहन सहन तथा रेगिस्तानी इलाके में रहने वाला का और नदी किनारे रहने वाले का खानपान और रहन सहन भी भी बिलकुल अलग अलग ही होगा. इसलिए कोशिश की जाती थी कि विवाह एक जैसे माहौल में हो.
इन सब चीजों को देखना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन अगर कहीं कोई लड़का / लड़की विपरीत परिस्तिथियों के बाबजूद, सब कुछ जानते हुए एक दुसरे के साथ एडजस्ट करने को तैयार हों तो उनका विवाह भी करा दिया जाता है. भारतीयों की इन अच्छाइयों को विधर्मियों और विदेशियों के शासन काल में बुराई कह कर प्रचारित किया गया था.
जहाँ दो जीते जागते स्वतंत्र सोंच वाले इंसानों (लड़का और लड़की) में विवाह करना हो वहां उनके सफल दाम्पत्य जीवन के लिए बहुत कुछ देखना होता है. लेकिन जहाँ लड़की को केवल बच्चे पैदा करने वाली मशीन समझा जाता हो या घर की चार दीवारी में बंद रहकर, घर का काम करने वाली गुलाम समझा जाता हो, वो कुछ भी कर सकते हैं.

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