Tuesday, 12 November 2019

ले जनरल सगत सिंह

Image may contain: 1 person, textहमारे देश के वीर सैनिको ने अनेको बार अपनी बहादुरी और साहस का प्रदर्शन करते हुए, अपनी जान की बाजी लगाकर देश की रक्षा की है. लेकिन पता नहीं हमारे देश में ऐसे वीर सैनिकों की वीर गाथाओं को आम जनता तक पहुँचने नहीं दिया जाता है. कहीं इसका उद्देश्य यह तो नहीं कि नेताओं को डर हो कि- जनता सेना को उनसे ज्यादा महत्त्व देने लग जाए?
मोदी सरकार में मंत्री और पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल (सेवानिवृत्त) वी के सिंह जी ने एक किताब लिखी थी, "लीडरशिप इन द इंडियन आर्मी". उसमे भारतीय सैनिको की अनेकों शौर्य गाथां का जिक्र है. उसमें सिक्किम - तिब्बत (चीन) सीमा पर हुई 11 सितबर 1967 की एक घटना का जिक्र है मेरा ख़याल है इसको आम जनता को जानना चाहिए.
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि - भारत तिब्बत सीमा पर पहाडी इलाके में ऐसे बहुत सारे स्थान हैं जहाँ "सीमा" की स्थिति स्पष्ट नहीं है. दोनों ही देश उनपर अपना दावा करते हैं. सिक्किम में नाथुला दर्रे में ऐसे ही एक स्थान पर जहाँ भारत का कब्ज़ा है, चीनी सैनिको ने भारी संख्या में घुसपैठ कर दी और भारतीय सीमा में अपना बंकर बनाने लगे.
जब भारतीय सैनिक उनको रोकने आगे बढे तो चीनी सैनिको ने भारतीय सैनिकों को चेतावनी देते हुए कहा कि- पीछे हट जाओ अन्यथा 1962 की तरह कुचले जाओगे. चीन ने एक तरह से अल्टीमेटम दिया था कि - भारत नाथु-ला और जेलप-ला चौकियों को फौरन खाली कर दे. भारत पापिस्तान में तनाव का लाभ चीन उठाना चाहता था.
चीनियों की ताकत देखते हुए कोर मुख्यालय के प्रमुख जनरल "बेवूर" ने लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौर को इस पर अमल करने का आदेश भी दे दिया. परन्तु ले.जनरल सगत सिंह राठौर ने अपने जनरल से कहा कि नाथु-ला ऊँचाई पर हैं, इसे खाली करने का मतलब यह है कि- चीन सिक्किम पर नजर रख सकता है.
जनरल "बेवूर" ने कहा वहां हमारे पास सैनिक और संसाधन चीन से बहुत कम है इसके अलावा जिस तरह से चीन की सरकार अपने सैनिको के पीछे खडी होती है, हमारे साथ वह स्थिति नहीं है. इस पर ले.जनरल सगत सिंह ने कहा कि - आपने पहले ही कहा था की नाथु-ला की जिम्मेदारी मेरी है, तो मैं जिम्मेदारी लेते हुए इसे खाली नही कर रहा हूँ .
लेकिन दुर्भाग्यवश उधर 27 माउंटेन डिवीजन ने "जेलप-ला" चौकी को खाली कर दिया, जिस पर फौरन चीन ने कब्जा कर लिया. बार बार की घुसपैठ को रोकने के लिए लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह ने वाहना लोहे की कँटीली बाड़ लगाने का फैसला किया. इस पर चीन भड़क गया और उसने अपने एक अंग्रेजी जान्ने वाले प्रतिनिधि को बात करने भेजा.
उस प्रतिनिधि से साथ बातचीत थोड़ी ही देर में धक्कामुक्की में बदल गई. एक भारतीय सैनिक के धक्के से उस प्रतिनिधि का संतुलन बिगड़ गया और वह गिर पड़ा और गिरने से उसका चश्मा टूट गया. उनकी बातचीत विफल हो गई. उसके बाद भारतीय सैनिकों ने फिर से बाड़ लगाना शुरू किया. इस बात सेे बौखलाए चीनियों ने फायरिंग शुरू कर दी.
जितने भी भारतीय सैनिक बाड़ लगाने के लिए खुले में खड़े थे वह अचानक इस हमले से सम्हल नही पाये और मारे गए. मारे गए सैनिकों की संख्या 67 थी. 67 भारतीय सैनिको लाश देख कर अपने उच्चाधिकारियों से तोप का इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी. उस समय सीमांत मामलो में तोप के इस्तेमाल की इजाजत प्रधानमंत्री से लेना होती थी.
उस समय प्रधानमंत्री थीं इंदिरा गांधी. ऊपर से कोई अनुमति नही आने पर सगत सिंह राठौर ने अपनी सर्विस की परवाह न करते हुए तोप का इस्तेमाल करने का हुक्म दे दिया. भारतीय सैनिको ने अपनी तोप से सटीक निशाने लगाकर चीनियों को उडाना शुरू कर दिया. भरत की इस जबाबी कार्यवाही में चीन के लगभग चार सौ सैनिक मारे गए.
हमारे देश की तत्कालीन राजनीतिक मजबूती / कमजोरी को इस बात से समझा जा सकता है कि - इस जीत के लिए ले.जनरल सांगत सिंह को अवार्ड देने के बजाय उस पोस्ट से ही हटा दिया गया था. हमारे देश के सैनिको ने एक बार नहीं बल्कि अनेकों बार चीन को पराजित किया है लेकिन मीडिया उसकी कभी चर्चा नहीं करता है.
हमारे देश का मीडिया बार बार चीन के हाथो हुई 1962 की हार का जिक्र करके सैनिको का मनोवल तोड़ने का प्रयास करता रहता है. जबकि 1962 की उस लड़ाई में बिना पर्याप्त संसाधनों के ही भारतीय सेना ने कई मोर्चो पर चीन को शिकस्त दी थी. 11 सितबर 1967 की घटना को भी वामी मीडिया ने भारतीय सेना की गलती बताया था.
Image may contain: 7 people, including Ruldu Ram Sarpanchपूरी घटनाक्रम आपके सामने प्रस्तुत कर दिया गया है. अब यह आपकी मर्जी है . आप चाहे तो भारत के स्वाभिमान की रक्षा करने वाले ले. जनरल संगत सिह को सैल्यूट करें या वामपंथी मीडिया की तरह इस लड़ाई को संगत सिंह की गलती बताते हुए तत्कालीन सरकार द्वारा उनको मोर्चे से हटाने का समर्थन करें.
कोई भी निर्णय लेने से पहले "पुष्यमित्र शुंग" के उस कथन को अवश्य ध्यान में रखना कि - "जब राष्ट्र संकट में हो तो राष्ट्रभक्त किसी निमंत्रण पत्र की प्रतीक्षा नहीं करते" .
यहां एक बात यह भी बताते चलते हैं कि - 1971 के युद्ध में भी ले. जनरल सगत सिंह ने बड़ी भूमिका निभाई थी. पाकिस्तानी जनरल नियाजी द्वारा जगदीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण के प्रपत्र पर हस्ताक्षर करते हुए चित्र में इनके ठीक (बायें से दायें) 
नीलकान्त कृष्णन, हरि चन्द दीवान, ले जनरल सगत सिंह, तथा जनरल जैकब भी खड़े हैं.

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