Tuesday, 19 November 2019

भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी

Image may contain: 8 people"इंदिरा प्रियदर्शनी" का जन्म जन्म 19 नवम्बर 1917 को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली नेहरू परिवार में हुआ था. इनके पिता जवाहरलाल नेहरू और इनकी माता कमला नेहरू थीं. ब्रिटिश राज में जब अधिकांश भारतीय गरीबी का जीवन जी रहे थे, उनका परिवार बिना कोई व्यापार किये ही अत्यंत धनवान था और राजसी जीवन जी रहा था.
इन्दिरा ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात 1934–35 में , शान्तिनिकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित "विश्व-भारती विश्वविद्यालय" में प्रवेश लिया परन्तु वहां मन न लगने के कारण जल्द ही उन्होंने उसे छोड़ दिया। इसके पश्चात वे इंग्लैंड चली गईं और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में बैठीं, परन्तु यह उसमे वे विफल रहीं.
तब उन्होंने ब्रिस्टल के बैडमिंटन स्कूल में कुछ महीने बिताने के पश्चात, 1937 में परीक्षा में सफल होने के बाद, सोमरविल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया। इस समय के दौरान इनकी मुलाक़ात अक्सर फिरोज़ से होती थी, जिन्हे वे प्रयागराज (इलाहाबाद) से जानती थीं और जो लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्ययन कर रहे थे.
Image may contain: 4 people, wedding and indoorउनके बीच प्रेम हो गया और वे एक दूसरे के साथ शादी करने को तैयार हो गए. जब नेहरू को उनके प्रेम के बारे में पता चला तो बहुत नाराज हुए. नेहरू फिरोज के साथ इंदिरा के विवाह को लेकर तैयार नहीं थे, इसका कारण उनका विधर्मी होना था या कोई और यह आजतक स्पष्ट नहीं है. फिरोज पारसी थे या मुस्लिम यह भी एक विवाद है.
कहा जाता है कि- इंदिरा और फिरोज ने इंगलैंड में ही विवाह कर लिया था इसलिए नेहरू जी को भी अंततः विवाह के लिए राजी होना पड़ा. तब गांधी जी ने फिरोज को अपना पुत्र घोषित कर गांधी सरनेम दिया और 16 मार्च 1942 को आनंद भवन, प्रयाग राज (तत्कालीन इलाहाबाद) में एक "आदि धर्म ब्रह्म-वैदिक समारोह" में इनका विवाह फिरोज़ से हुआ.
विवाह के बाद इंदिरा और फिरोज दोनों ने "गांधी" सरनेम को अपना लिया। अब वे इंदिरा प्रियदर्शनी से इंदिरा गांधी हो गई.20 अगस्त 1944 में उन्होंने राजीव गांधी और इसके दो साल बाद 14 दिसंबर 1946 को संजय गाँधी को जन्म दिया। देश आजाद होने के बाद उनके पिता जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बने.
वे अपने पिता के कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में उनके सेवा में रहीं, इससे उनमे भी राजनैतिक समझ पैदा हुई. 1951 में हुए पहले आम चुनाव में उन्होंने अपने पिता और पति दोनों के चुनाव प्रचार का प्रबंधन किया, जिसमे दोनों ही विजयी हुए. परन्तु अब नेहरू और फिरोज के मनमुटाव भी उभरकर सामने आने लगे.
फिरोज अपनी ही सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर करने लगे. जीप घोटाले और मूंदड़ा काण्ड को उजागर करने के कारण फिरोज गांधी की इमेज पार्टी के भीतर ही एक विपक्षी नेता की बन गई. इसका असर फिरोज और इंदिरा के दाम्पत्य जीवन पर भी पड़ा. यह मनमुटाव इतना बढ़ा कि वे दोनों अलग अलग रहने लगे.
Image may contain: Atul K Mehta, eyeglasses, sunglasses and closeup1959-60 के दौरान इंदिरा चुनाव लड़ीं और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं. वे केवल अपने पिता के कारण चुनी गई थी और लोग उन्हें गूंगी गुड़िया कहते थे. उनका कार्यकाल घटना विहीन रहा और वे अपनी कोई छाप छोड़ने में नाकाम रहीं. 8 सितम्बर, 1960 को जब इंदिरा अपने पिता के साथ विदेश दौरे पर गयीं थीं, फिरोज़ की मृत्यु हो गई.
अब इंदिरा गांधी भी अपना अधिक समय अपने पिता के साथ राजनीति को देने लगीं. 27 मई 1964 को नेहरू जी की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री जी प्रधनमंत्री बने. उन्होंने इंदिरा गांधी को राजयसभा में भेजा और अपने मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया. इसी बीच "हिंदी" को राष्ट्रभाषा बनाने के मुद्दे को लेकर दक्षिण भारत में दंगे हो गए.
उस समय बिना सरकार की मंजूरी के वे चेन्नई गई और अधिकारियों और स्थानीय नेताओं से मिली. शास्त्रीजी एवं वरिष्ठ मंत्रीगण उनके इस तरह के प्रयासों के कारण काफी शर्मिंदा थे परन्तु अब कांग्रेस में दो गुट बनने लगे. एक गुट सरकार के साथ था और दूसरा गुट पार्टी के अध्यक्ष के. कामराज के नेतृत्व में इंदिरा गांधी को प्रोमोट करने लगा.
अब कांग्रेस दो गुटों में विभाजित हो चुकी थी. श्रीमती गांधी के नेतृत्व वाले गुट को "इंडिकेट" कहा जाता था जो समाजवादी बिचारधारा वाला था और मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाले गट को "सिंडीकेट" कहा जाता था जो दक्षिणपंथी बिचारधारा वाला था. 1967 के चुनाव में भी कांग्रेस विजयी रही लेकिन पहले से लगभग 60 सीटें कम आईं.
1969 में देसाई के साथ अनेक मुददों पर असहमति के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस विभाजित हो गयी. लेकिन वे समाजवादियों एवं साम्यवादी दलों से समर्थन से अगले दो वर्षों तक शासन चलाती रहीं.1971 में भारत पापिस्तान का युद्ध हुआ जिसे भारतीय सेना ने बहुत ही काम संशाधन होने के बाबजूद बहुत बहादुरी से लड़ा और जीता।
इस युद्ध का निर्णय लेने में ढुलमुल रवैया अपनाने और युद्ध के बाद शिमला समझौते में बिना कुछ पापिस्तान से बिना कुछ लिए पापिस्तान को सब कुछ वापस कर देने के विवादास्पद फैसले के बाबजूद पार्टी उनकी छवि आयरन लेडी की बनाने में कामयाब रही. 1971 की लड़ाई को जीतने का सारा श्रेय सेना के बजाय इंदिरा गांधी को दे दिया गया
लेकिन 1971 के चुनाव में जीतने में धांधली के आरोप लगे और विपक्षी नेताओं ने उनके खिलाफ अदालत में केस कर दिए. 1975 में अदालत से इंदिरा गाँधी के खिलाफ फैसला आया. लेकिन इंदिरा गांधी ने अदालत के फैसले को मानने के बजाय देश में आपातकाल लगा दिया और सभी विपक्षी नेताओं को जेल में बंद कर प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
आपातकाल में विपक्षी नेताओ पर बहुत जुल्म किये गए, प्रेस की स्व्तंबत्रता ख़त्म कर दी गई, जबरन नसबन्दियाँ की गई, अनेको हत्याएं हुई. इसके जबाब में विपक्ष भी एकजुट हुआ और 1977 में एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा जिसमे कांग्रेस पार्टी की बहुत बुरी तरह हार हुई और इंदिरा गांधी तथा उनका पुत्र संजय गांधी भी अपनी सीटें बचाने में नाकाम रहे.
1977 में मोरारजी देसाई के नेत्रत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी. आजादी के बाद यह पहला दौर था जब यह विशेष परिवार सत्ता से बाहर था. तब जनता पार्टी में फूट डालने की नीयत से उन्होंने कुछ ऐसे काम किये जो कांग्रेस क बिरोधी पार्टी को नुकशान पहुँचाने वाले थे लेकिन साथ साथ देश को भी बहुत नुकशान होने वाला था.
पंजाब में जनसंघ और अकाली दल के गठबंधन को कमजोर करने के लिए उन्होंने कट्टर धार्मिक सिक्ख नेता भिंडरावाला को सपोर्ट दिया. भिंडरावाला अपने भाषण में ऐसी बाते कहता था जिनको काटना अकाली दल के लिए और झेलना जनसंघ के लिए मुश्किल होता था. लेकिन बाद यह यह नीति खुद इंदिरा गांधी जी के लिए भी घातक साबित हुई.
क्रमशः

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