Wednesday, 2 May 2018

धर्म रक्षक महान सम्राट राजा सुहेल देव पासी

यह सत्य है कि- भारत में अधिकाँश समय और अधिकाँश स्थानों पर क्षत्रियों का राज रहा है लेकिन यह भी सत्य है कि - इसका कारण उनकी क्षमता थी न कि उनका क्षत्रीय होना. अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने पर यहाँ ब्राह्मणों, वैश्यों ने ही नही बल्कि शूद्र कहे जाने वाले समुदाय के लोगों ने भी राज किया है और सभी ने उनको पूरा सम्मान भी दिया है.
चन्द्रगुप्त मौर्य भी तथाकथित शुद्र जाति के थे जिन्होंने ब्राह्मण "चाणक्य" के मार्गदर्शन में एक शातिशाली साम्राज्य खडा किया था. मौर्य वंश के बाद "शुंग वंश" का शासन हुआ जो कि ब्राह्मण थे, राजा हेमचन्द्र विक्रमादित्य वैश्य थे. हिन्दूराष्ट्र का सपना साकार करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज भी कुर्मी (ओबीसी) थे जिनके अधीन पेशवा ब्राह्मण थे.
कुल मिलाकर कह सकते हैं कि- किसी व्यक्ति में राज करने क्षमता हो तो जाति इसमें कोई बाधा नहीं आती है. 1027 ई. से 1077 तक पूर्वी उत्तर प्रदेश में साजा सुहेलदेव पासी का साम्राज्य रहा है. आज के हिसाब से उनकी जाति अतिदलित कही जाती है. राजा सुहेलदेव पासी को इस क्षेत्र में जो सम्मान प्राप्त है वो इस क्षेत्र में आज तक किसी को नहीं है.
राजा सुहेलदेव पासी का अपने समय में इतना प्रभाव था कि - अयोध्या विध्वंश को आये गजनी के भतीजे "सालार मसूद" को रोकने के लिए हुई लड़ाई के समय में क्षेत्र के 17 अन्य राजाओं ने उनके नेत्रत्व में संयुक्त लड़ाई लड़ी थी. इस लड़ाई में सालार मसूद सहित उसकी सारी सेना को काट कर फेंक दिया गया था और किसी को भी वापस नहीं जाने दिया था.
इतिहास के अनुसार श्रावस्ती नरेश राजा प्रसेनजित ने बहराइच राज्य की स्थापना की थी. महाराजा प्रसेनजित को माघ मांह की बसंत पंचमी के दिन 990 ई. को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम सुहेलदेव रखा गया. ऐ वे जाति के पासी थे, महाराजा सुहेलदेव का साम्राज्य पूर्व में गोरखपुर तथा पश्चिम में सीतापुर तक फैला हुआ था.
राजा सुहेलदेव के प्रताप और धर्मपरायणता को देखते हुए, गोंडा, लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, उन्नाव, गोला व लखीमपुर आदि के राजाओं ने उनको अपना महाराजा मान लिया था. राजा सुहेल देव के दो भाई भी थे "बहरदेव" व "मल्लदेव". वे दोनों भी थे जो अपने बड़े भाई के समान वीर थे तथा अपने भाई का पिता की भांति सम्मान करते थे.
"महमूद गजनवी" गुजरात और मध्यप्रदेश पर हमला कर लूटा था और यहाँ के मंदिरों ( सोमनाथ, भोजशाला, आदि) का विध्वंश किया था और गाजी की उपाधि हाशिल की थी. "महमूद गजनवी" की मृत्य के पश्चात् उसके भतीजे "सैयद सालार मसूद" ने "गाजी" कहलवाने के लिए भारत पर हमला कर "अयोध्या" को विध्वंश करने का मंसूबा बनाया.
उसने दिल्ली पर आक्रमण किया. दिल्ली के राजा राय महीपाल व उनके भाई राय हरगोपाल ने उसको कड़ी टक्कर दी. लड़ाई के दौरान राय हरगोपाल ने अपनी गदा से मसूद पर प्रहार किया जिससे उसकी आंख पर गंभीर चोट आई तथा उसके दो दाँत टूट गए थे. मसूद हारकर लौटने ही वाला था कि - गजनी से उसके साथी बड़ी घुड़सवार सेना के साथ आ गए.
बख्तियार साहू, सालार सैफुद्ीन, अमीर सैयद एजाजुद्वीन, मलिक दौलत मिया, रजव सालार और अमीर सैयद नसरूल्लाह आदि की धुड़सवार सेना का साथ मिलजाने से मसूद की ताकत बढ़ गई और वह दिल्ली को जीतने में कामयाब रहा. अब उसका लक्ष्य हिन्दू धर्म के केंद्र अयोध्या, सतरिख, वाराणसी, आदि को विध्वंश करना था.
उसकी विशाल सेना को देखकर मेरठ, बुलंदशहर, बदायूं, कन्नौज, आदि के राजाओं ने उससे लड़ने के बजाय संधि कर ली और इस्लाम कबूल लिया. सालार मसूद ने कन्नौज को अपना केंद्र बनाकर हिंदुओं के तीर्थ स्थलों को नष्ट करने हेतु अपनी सेनाएं भेजना प्रारंभ किया. उसने मलिक फैसल को वाराणसी भेजा गया तथा अयोध्या की तरफ चल दिया.
जब मसूद दिल्ली को जीतकर आगे बढ़ा था तब ही "राजा सुहेल देव पासी" के गुप्तचरों ने खबर दे दी थी कि- मसूद का असली लक्ष्य अयोध्या है. सुहेलदेव अपने गुप्तचरों द्वारा "मसूद" की लगातार खबर ले रहे थे. उन्होंने बहराइच के आसपास के सभी राजाओं को समझाकर लामबंद करना शुरू कर दिया.
राजा रायब, राजा सायब, अर्जुन भीखन गंग, शंकर, करन, बीरबर, जयपाल, श्रीपाल, हरपाल, हरख्, जोधारी व नरसिंह महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में लामबंद हो गये. सुहेलदेव ने अपना दूत बाराबंकी और कन्नौज भी भेजा था. बाराबंकी का राजा उनके साथ शामिल नहीं हुआ तथा कन्नौज का राजा बाद में मसूद से मिल गया था.
कन्नौज के राजा ने इस्लाम कबूल करने के बाद मसूद को अयोध्या से पहले बहराइच पर आक्रमण करने के लिए उकसाया. उसने मसूद को समझाया कि- इस क्षेत्र में सबसे बड़ी बाधा "राजा सुहेल देव पासी" ही है. इसलिए अयोध्या से पहले बहराइच पर हमला करना चाहिए. साथ ही उसने सुहेलदेव को अपमानित करने की योजना बनाई.
कन्नौज से सालार मसूद ने अपना दूत सुहेलदेव के पास भेजा और यह सन्देश दिया कि- या तो इस्लाम कबुल कर हमारे साथ आ जाओ, या फिर अपनी पत्नी को मेरे हरम में भेज दो. वरना तुम्हारा सर्वनाश कर दिया जाएगा. कहते हैं कि- इस बात पर क्रोधित होकर सुहेलदेव ने तलवार के एक ही बार से दूत के सर से धड तक दो टुकड़ों में चीर दिया.
इसके बाद सालार मसूद ने पहले बाराबंकी पर हमला किया. बाराबंकी पर हमले की खबर मिलते ही सुहेल्देब ने सभी मित्र राजाओ को एकत्रित होने का सन्देश दिया. ये राजा बहराइच शहर के उत्तर की ओर आठ मील की दूर भकला नदी के किनारे अपनी सेना सहित उपस्थित हुए. कन्नौज के राजा को राजा सुहेलदेव की योजना का पता था.
सुहेलदेव व मित्र राजा अभी योजना बना ही रहे थे कि- मसूद की सेना ने उनकी सोई हुई सेना पर भीषण हमला कर दिया. उनको रात्री आक्रमण का अंदाजा नहीं था क्योंकि भारत में ऐसी कोई परम्परा तब तक नहीं थी. इस अप्रत्याशित आक्रमण में दोनों ओर के अनेक सैनिक मारे गए लेकिन बहराइच की इस पहली लड़ाई मे सालार मसूद बिजयी रहा.
राजा सुहेलदेव ने आव्हान किया कि- यह धर्मयुद्ध है और हर किसी को अपना योगदान देना चाहिए, कहा जाता है कि - सुहेलदेव के आव्हान पर प्रत्येक घर से एक लड़का सेना में शामिल हो गया था. रात्री हमले की संभावना को देखते हुए सुहेलदेव ने मार्ग में जगह जगह बिषबुझी कीले बिछवा दीं, इसका लाभ उनको दूसरे रात्री हमले में मिला.
जून 1034 में दोनों और की सेनाये खुलकर आमने सामने आ गईं. लड़ाई का क्षेत्र चिंतौरा झील से हठीला और अनारकली झील तक फैला हुआ था. सालार मसूद ने दाहिने पार्श्व (मैमना) की कमान मीरनसरूल्ला को तथा बाये पार्श्व (मैसरा) की कमान सालार रज्जब को सौपि तथा स्वयं केंद्र (कल्ब) की कमान संभाल कर आक्रमण करने का आदेश दिया.
इस बार सुहेलदेव की सेना पूरी तरह से तैयार थी. वे लोग भूखे शेरोन की तरह जेहादियों पर टूट पड़े. 8 जून, 1034 को हुई इस लड़ाई में मीर नसरूल्लाह को बहराइच के उत्तर में बारह मील की दूर स्थित ग्राम "दिकोली" के पास मार दिया गया और मसूद के भांजे सालार रज्जब को बहराइच के पूर्व में स्थित ग्राम शाहपुर जोत मे मार दिया गया.
राजा करण के नेतृत्व में हिन्दू सेना ने इस्लामी सेना के केंद्र पर आक्रमण किया जिसका नेतृत्व सालार मसूद स्वंय कर रहा था. उसने सालार मसूद को धेर लिया. सालार सैफुद्दीन उसकी सहायता को आगे बढ़ा लेकिन राजा करण ने उसे मार गिराया. बहराइच-नानपारा रेलवे लाइन के पास उत्तर बहराइच सैफुद्दीन कीमजार बनी हुई है.
10 जून, 1034 को महाराजा सुहेलदेव पासी के नेतृत्व में हिंदू सेना ने सालार मसूद गाजी की फौज पर तूफानी गति से आक्रमण किया. इस युद्ध में सालार मसूद अधिक देर तक ठहर न सका. राजा सुहेलदेव ने युद्ध शुरू होते ही अपने बिषबुझे बाण का निशाना बना लिया. उसके मरते ही जेहादी सेना में भगदड़ मच गई.
हिन्दू सेना ने जेहादी सेना को गाजर मूली की तरह काटना शुरू कर दिया. दुसरे दिन सालार इब्राहीम ने सुहेलदेव के पास संधि का प्रस्ताव भेजा. मगर सुहेलदेव ने यह कहकर इनकार कर दिया कि- जो लोग सोते हुए सैनिको पर हमला कर सकते हैं, उनपर भरोसा नहीं किया जा सकता. सुहेल देव ने सालार इब्राहीम का भी बध कर दिया.
सुहेलदेव ने घोषणा कर दी कि- मैं भगवान् सूर्य का भक्त हूँ और इन म्लेच्छों ने सूर्यवंशी भगवान राम की नगरी पर गंदी नजर डाली है इसलिए इनको माफ़ नहीं किया जा सकता. अपनी सेना और प्रजा से सुहेलदेव ने आव्हान किया कि- एक भी दुश्मन ज़िंदा वापस नहीं जाना चाहिए. इनको मारकर इनके घोड़े, हथियार और धन छीन लो. .
उसके बाद सारी म्लेच्छ सेना को मारकर उनके हर सामान पर कब्ज़ा कर लिया गया. सुहेलदेव ने कहा म्लेच्छों से प्राप्त धन को वह अपने शाही खजाने में भी नहीं ले जायेंगे. इस धन से केवल जन कल्याण के कार्य किये जायेंगे और दुश्मन को मारकर छीना हुआ घोडा जिस किसी के भी पास है वो उसकी ही संपत्ति माना जाएगा.
सुहेलदेव ने उस धन से, मार्गों, पोखरों और कुओं का निर्माण कराया. इसके अलावा अयोध्या के "कनक भवन" सहित कई मंदिरों को स्वर्ण दान दिया. विजय की यादगार के रूप में वे एक विशाल ”विजय स्तंभ” का निर्माण कराना चाहते थे लेकिन वे इसे पूरा न कर सके. इस स्थान को इकोना-बलरामपुर राजमार्ग पर एक टीले के रूप में देखा जा सकता है.
महांराजा सुहेलदेव पासी "भगवान सूर्य" के उपासक थे. उनकी भावना को ध्यान में रखते हुए वर्तमान योगी सरकार ने बहराइच में, महांराजा सुहेलदेव पासी के नाम पर भव्य "सूर्य अन्दिर" के निर्माण का संकल्प लिया है.साथ ही हमारी मांग है कि- जिस विजय स्तम्भ को महाराज नहीं बनवा सके थे उसका निर्माण भी योगी सरकार करबाए.

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