Wednesday, 9 May 2018

अंग्रेजी शासन के बफादार कौन थे ? कांग्रेसी या हिन्दू महासभाई

लन्दन के बकिंघम पैलेस में, ब्रिटेन की महारानी / महाराजा से ‘नाइटहुड’ (सर) की उपाधि लेने की प्रक्रिया अत्यन्त अपमानजनक है. यह उपाधि लेनेवाले व्यक्ति को ब्रिटेन के प्रति वफादारी की शपथ लेनी पड़ती है और इसके पश्चात् उसे महारानी / महाराजा के समक्ष सिर झुकाकर अपना दायाँ घुटना टिकाना पड़ता है.
ठीक इसी समय महारानी / महाराजा उपाधि लेनेवाले व्यक्ति की गरदन के पास दोनों कन्धों पर नंगी तलवार से स्पर्श करते हैं. उसके बाद महारानी / महाराजा उपाधि लेने वाले व्यक्ति को ‘नाइटहुड’ पदक देकर बधाई देते हैं. यह प्रक्रिया सैकड़ों वर्ष पुरानी है और भारत में जिस जिसको यह उपाधि मिली वो सभी ‘सर’ इस प्रक्रिया से गुजरे थे.
ब्रिटेन अपने देश और अपने उपनिवेशों में अपने चाटुकारों को ब्रिटेन के प्रति निष्ठवान बनाने के लिए ऐसी अनेक उपाधियाँ देता रहा है. नाइटहुड (सर) की उपाधि उनमें सर्वोच्च होती थी.अनेको राजा-महाराजा, सेठ-साहूकार, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद् आदि ब्रिटेन के प्रति वफादार रहने की शपथ लेने के बाद ही ‘नाइटहुड’ से सम्मानित किए गए थे.
ब्रिटिश हुकूमत उसी को नाइटहुड (सर) की उपाधि से सम्मानित करती थी जिसे वो अपना वफादार मानती थी. हालांकि औपचारिक रूप से कहा यह जाता था कि व्यक्ति को अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए यह उपाधि दी जाती है. इसीलिए कभी कभी दिखावे के लिए कुछ वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, शिक्षाविदों को भी यह उपाधि दे देते थे.
जैसा कि- सभी जानते हैं कि एक अंग्रेज कलक्टर "ए. ऑ; ह्युम" ने रिटायर होने के बाद कुछ अंग्रेजो और कुछ अंग्रेज टाइप भारतीयों को लेकर एक पार्टी "कांग्रेस" का गठन किया था. इसका मकसद था अंग्रेजों और भारतीयों के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करना. इसने इतना जबरदस्त काम किया कि - अगले बीस साल तक क्रान्ति की कोई घटना नहीं हुई.
इस बजह से ब्रिटिश सरकार ने अनेकों कांग्रेसियों को सर की उपाधि से विभूषित किया. 1890 में कांग्रेस अध्यक्ष रहे "फिरोजशाह मेहता" को 1904 नाइटहुड (सर) की उपाधि दे गई. 1900 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे "नारायण गणेश चंदावरकर" को पहले 1901 में बोम्बे हाईकोर्ट का जज बनाया गया. उन्होंने जज रहते हुए क्रांतिकारियों को खूब सजाये सुनाई.
"नारायण गणेश चंदावरकर" के फैसलों का सबसे ज्यादा शिकार बने थे "अभिनव भारत" दल के कार्यकर्ता. नाशिक के कलक्टर "जैक्शन" की हत्या के मामले उन्होंने बहुत ज्यादा इंटरेस्ट लिया. इस मामले में अनेकों क्रांतिकारियों को फांसी, कालापानी से लेकर 3 से 7 साल की सजा दी गई थी, इससे खुश होकर 1910 में उन्हें सर की उपाधि दी गई.
1907 और 1908 में लगातार दो बार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. रासबिहारी घोष (रास बिहारी बोस नहीं) को भी सन 1915 में नाइटहुड (सर) की उपाधि से सम्मानित किया था. 1897 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे "चेत्तूर संकरन नायर" को अंग्रेजों ने 1904 में "कम्पेनियन ऑफ इंडियन एम्पायर" की उपाधि दी.
इसके अलाबा "चेत्तूर संकरन नायर" को मद्रास हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया और 1912 में उनको भी नाइटहुड (सर) की उपाधि दी. अंग्रेज राजा "जार्ज पंचम" के भारत आने पर उसकी तारीफ़ में जन -गन - मन लिखने वाले "रविन्द्र नाथ टैगोर" को तो नाइटहुड (सर) के अलाबा "नोबेल पुरुष्कार" तक दिया गया था.
यह तो हुए बड़े नाम और बड़े पुरष्कार. अंग्रेजों ने इससे कुछ छोटे स्तर की उपाधिया और पुरस्कार भी बनाए थे जैसे - खान साहिब, खान बहादुर, राय बहादुर, आदि. जिन लोगों को ऐसे पुरस्कार मिले थे. तमाम नबाब, राजाओं, जमीदारों, आदि को खान बहादुर, राय बहादुर की उपाधि दे गई. आजाद भारत में "नेहरु" " ने भी उनको बड़े पद दिए थे
ऐसा ही एक नाम है "फजल अली". अंग्रेजों ने पहले इसे खान साहिब, फिर खान बहादुर की उपाधि दी. इसने "अंग्रेजों भारत छोड़ो" आन्दोलन में मुसलमानों से आन्दोलन में शामिल न होने की अपील की थी, जिसके इनाम में इसे भी नाइटहुड (सर) से सम्मानित किया गया. आजादी के बाद नेहरु ने इन्हें पहले उड़ीसा का फिर असम का गवर्नर बनाया.
"एन. गोपालस्वामी अय्यंगर" नाम के एक नौकरशाह को अंग्रेजो ने 1941 में नाइटहुड (सर) की उपाधि के अलावा दीवान बहादुर, आर्डर ऑफ दी इंडियन एम्पायर, कम्पेनियन ऑफ दी ऑर्डर ऑफ दी स्टार ऑफ इंडिया आदि 7 अन्य उपाधियों दी थीं, आजादी मिलते ही नेहरु ने उसे पहले बिना विभाग का मंत्री बनकर अपनी कैबिनेट में जगह दी.
उसके बाद फिर "अय्यंगर" को 1948 से 1952 तक देश का पहला रेलमंत्री नियुक्त किया और 1952 में उसे देश के रक्षामंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद दिया. यह तो बस कुछेक उदाहरण हैं, अंग्रेजों के बफादारों को ब्रिटिश शासन में ऐसी उपाधियाँ मिलना तथा नेहरु के राज में उनको बड़े पद मिलना आम बात थी. ऐसे लोगों की संख्या हजारों में है.
अंग्रेजी राज में किसी का भी शासन के प्रति बफादार होना, भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के प्रति गद्दार माना जाना चाहिए. इसके बाबजूद सत्ता के दम पर अपने आपको क्रांतिकारी तथा हिन्दू महासभा / आरएसएस को अंग्रेजो का चापलूस कहकर प्रचारित किया. क्या कोई कांग्रेसी बतायेगा कि- किस हिन्दू महासभाई / संघी को ऐसे पुरस्कार दिए गए ?

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