जैसा कि सभी जानते है "भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस" की स्थापना एक अंग्रेज "ए ओ ह्युम" ने की थी. उसके बारे में अलग से विस्तार से लिखा है. वह 1857 की क्रान्ति के समय इटावा का कलक्टर था और क्रान्तिकारियो के प्रति बहुत क्रूर था.
Tuesday, 18 October 2022
अंग्रेजों के राज में कांग्रेसी अध्यक्षों को कैसे-कैसे ईनाम और पद मिला करते थे ?
देश का राष्ट्रगान, राष्ट्रभक्ति से भरा होना चाहिए
किसी भी देश का "राष्ट्रगान" कोई ऐसा गीत होता है, जिसको प्रतिदिन गाने से देश वाशियों में राष्ट्रवाद की भावना प्रबल हो. आज आवश्यकता है कि - लोग जागरूक हों और यह सवाल उठायें कि - आखिर इस गीत में ऐसा क्या है, जो इसे हमारा राष्ट्रगान बनाया गया है ?
जन गण मन
1857 से 1905 वाले काल खंड की. 1857 की क्रान्ति को अंग्रेजो ने ग़दर तथा क्रांतिकारियों को राजद्रोही कहकर प्रचारित किया था. हालाँकि स्वाधीनता संग्राम के बाद भी पंजाब में गाय की रक्षा के लिए, कूकों का विद्रोह तथा बिहार में विरसा मुंडा का आन्दोलन अवश्य हुआ, लेकिन व्यापक रूप से सरे देश में कोई बड़ी क्रान्ति नहीं हुई.
1857 में क्रातिकारियों से छुपकर जान बचाने वाले इटावा के कलक्टर, "ए. ओ. ह्युम" ने रिटायरमेंट के बाद 1885 में अंग्रेज टाइप भारतीयों का एक संगठन "कांग्रेस" बनाया, जिसका उद्देश्य अंग्रेजों और भारतीयों के बीच एक कड़ी के रूप में काम करना था. ये लोग अंग्रेजों और आम जनता के बीच मध्यस्थ का काम करते थे.
यह संगठन अपने उद्देश्य में काफी हद तक सफल भी रहा. इन लोगों के प्रयास से देश के ज्यादातर लोगो ने अंग्रेजों को अपना मालिक मान लिया. इसके बनने के लगभग 20 साल तक देश में कोई क्रांतिकारी घटना नहीं हुई. 1905 के आसपास बंगाल में "युगांतर", "अनुशीलन समिति" तथा महाराष्ट्र में "अभिनव भारत" ने कुछ प्रयास अवश्य शुरू किये.
1904 के बाद में "युगांतर", "अनुशीलन समिति" तथा "अभिनव भारत" ने, रोष प्रदर्शन तथा विदेशी कपड़ों की होली, आदि जैसे कुछ आन्दोलन अवश्य किये लेकिन उनका प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर न होकर स्थानीय ही था. देश में क्रान्ति का ज्वालामुखी फूटा, 1907 में जब स्वातंत्र्यवीर सावरकर का ग्रन्थ "1857- प्रथम स्वतंत्र समर" जनता के सामने आया.
सावरकर ने 1907 में, "1857- प्रथम स्वतंत्र समर" नामक ग्रन्थ लिखा. जिसमे उन्होंने 50 साल से गदर के रूप में प्रचारित घटना को "प्रथम स्वतंत्र्य समर" लिखा. जिन लोगों को "गद्दार" कहकर अपमानित किया जाता था, सावरकर उनको स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया. इसके अलावा उन्होंने 10 मई 1907 को प्रथम स्वाधीनता संग्राम की स्वर्ण जयंती मनाई.
इसके बाद तो जैसे देश मे क्रान्ति का ज्वार आ गया. देश के युवा अग्रेजों से देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष करने लगे. अंग्रेजों ने ग्रन्थ पर प्रतिबन्ध लगा दिया लेकिन मैडम कामा, हरदयाल शारदा, आदि जैसे देशभक्त इसको चोरी छुपे छपवाते और प्रसारित करते रहे. बाद में भी सुखदेव, भगत सिंह, आदि जैसे क्रांतिकारियों ने भी इस ग्रन्थ का प्रचार प्रसार किया.
इसी बीच 6 मई 1910 को इंग्लैण्ड के राजा एडवर्ड सप्तम का देहांत हो गया और जार्ज पंचम राजा बन गए. अंग्रेजों और उनकेचापलूसों ने सोंचा कि- यदि ऐसे में इंगलैंड के राजा जार्ज पंचम भारत आते हैं तो देश की जनता में राजा को लेकर उत्साह पैदा होगा तथा क्रांतिकारियों का असर ख़त्म हो जाएगा. दिसंबर 1911 में जार्ज पंचम का भारत आना तय हो गया.
अंग्रेज चाहते थे कि - जार्ज पंचम की भारत यात्रा से पहले सावरकर जैसे भड़काऊ लोगो को गिरफ्तार कर, फांसी या कालापानी जैसी कोई कड़ी सजा दी जाए. लेकिन किताब लिखना कोई इतना बड़ा गुनाह नहीं था कि - ऐसी सजा दी जा सके. इसी बीच सावरकर के समर्थक "अभिनव भारत" के सदस्यों ने "नाशिक" के कलक्टर "जैक्सन" का वध कर दिया.
तब अंग्रेजों ने जैक्सन की ह्त्या का षड्यंत्र करने का आरोप लगाकर, सावरकर को गिरफ्तार कर लिया. अपने आपको न्याय का देवता बताने वाले अंग्रेजों ने बिना जुर्म साबित हुए ही, 4 जुलाई 1911 को "सावरकर" को कालापानी भेज दिया. उस कालखंड में बहुत सारे क्रांतिकार बिना प्रापर सुनबाई किये, फांसी चढ़ा दिए गए या कालापानी जेल भेज दिए गए.
अंग्रेज चाहते थे कि - राजा रानी के स्वागत और स्तुति में, कोई ऐसा गीत लिखा जाए, जो प्रत्येक भारतीय की जुबान पर चढ़ जाए और लोग सावरकर के ग्रन्थ "1857- प्रथम स्वतंत्र समर" को भूल जाएँ. इसके लिए अग्रेजो के साथ साझेदारी में व्यापार करने वाले परिवार के, व्यापारी / कवि / लेखक रविन्द्रनाथ टैगोर की सेवा ली गई.
अंग्रेज राजा जार्ज पंचम और रानी मेरी दिनांक 2 दिसंबर 1911 में भारत आये, उनके स्वागत में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने एक गीत लिखा था. "जन-गण-मन" . जिसको 2 दिसंबर 1911 को भारत आये अंग्रेज राजा "जार्ज पंचम" की स्तुति के रूप में गाया गया. इसी गीत को 27 दिसंबर 1911 को अपने अधिवेशन में गाकर कांग्रेस ने अपनी राजभक्ति का परिचय दिया था. प्रस्तुत है पूरा गीत
जनगणमन-अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलजलधितरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे,
गाहे तव जयगाथा।
जनगणमंगलदायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
अहरह तव आह्वान प्रचारित, शुनि तव उदार बाणी
हिन्दु बौद्ध शिख जैन पारसिक मुसलमान खृष्टानी
पूरब पश्चिम आसे तव सिंहासन-पाशे
प्रेमहार हय गाँथा।
जनगण-ऐक्य-विधायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
पतन-अभ्युदय-वन्धुर पन्था, युग युग धावित यात्री।
हे चिरसारथि, तव रथचक्रे मुखरित पथ दिनरात्रि।
दारुण विप्लव-माझे तव शंखध्वनि बाजे
संकटदुःखत्राता।
जनगणपथपरिचायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
घोरतिमिरघन निविड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल नतनयने अनिमेषे।
दुःस्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके
स्नेहमयी तुमि माता।
जनगणदुःखत्रायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि पूर्व-उदयगिरिभाले –
गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवनरस ढाले।
तव करुणारुणरागे निद्रित भारत जागे
तव चरणे नत माथा।
जय जय जय हे जय राजेश्वर भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
Thursday, 13 October 2022
सम्राट वीर विक्रमादित्य और उनके नवरत्न
Saturday, 8 October 2022
हाईस्पीड ट्रेन "वन्देभारत" एक्सप्रेस
अंधविरोधी और उनमे भी विशेष रूप से शान्तिधूर्त हमेंशा यही चाहते हैं देश का नुकशान होने की कोई बुरी खबर मिले और उनको सरकार को कोसने का मौका मिले. जब इनको ऐसा कोई बड़ा मौका नहीं मिल पाता है तो वे छोटी छोटी मामूली घटनाओ को ही बड़ा नुकशान बताकर सरकार को कोसने लगते हैं लेकिन ऐसे प्रयास में खुद उनकी ही बदनामी होती है
मैसूर राज्य : वोडेयार वंश और हैदर / टीपू
Monday, 3 October 2022
समीक्षकों और कवियों ने "कर्ण" को जरूरत से ज्यादा महिमामंडित किया है
Sunday, 2 October 2022
कांग्रेस ने केवल चरखे की ही नहीं और भी बहुत कहानिया बना रखीं हैं
आज लाल बहादुर शास्त्री जी की महानता को लेकर एक कहानी पढ़ी जिसमे बताया गया है कि - लाल बहादुर शास्त्री जी जब रेल मंत्री थे तब उन्होंने अपनी माता जी को यह नहीं बताया था कि - वो रेलमंत्री हैं बल्कि ये बताया था कि रेलवे में नौकरी करते हैं.
उस कहानी में यह भी बताया गया है कि - एक बार रेलवे का एक कार्यक्रम था उस कार्यक्रम में शास्त्री जी को पूंछते पूंछते उनकी माँ पहुँच गईं. तब उस कार्यक्रम में शास्त्री जी ने अपनी माँ के सामने भाषण नहीं दिया था.
जब उनसे इसका कारण पूंछा गया तो उन्होंने कहा - मेरी मां को नहीं पता कि मैं मंत्री हूं. अगर उन्हें पता चल जाए तो वह लोगों की सिफारिश करने लगेगी और मैं मना भी नहीं कर पाऊंगा. शास्त्री जी की इस बात को लेकर बहुत प्रशंसा की गई है.
लेकिन मेरे मन में इस कहानी लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं. जैसे कि- जिस किताब या अखबार से यह कहानी ली गई है क्या उस किताब / अखबार में यह भी लिखा था कि- यह कार्यक्रम किस शहर में हुआ था और किस स्तर का कार्यक्रम था ?
जो डर उनको माँ से था कि- वो उनके पास सिफारिस लेकर आने लगेंगी. क्या उनको ऐसा डर अपनी पत्नी और अन्य रिश्तेदारों से नहीं था ? अपनी माँ के बारे में ऐसा सोंचने की उनकी आखिर क्या बजह रही होगी ?
अब रही बात लाल बहादुर शास्त्री जी की नौकरी की, तो उनका जन्म 1904 में हुआ था और उनकी माता जी को भी पता था कि- देश के आजाद होने तक 43 साल की आयु के होने तक उन्होंने कोई नौकरी नहीं थी,
शास्त्री जी लगभग 50 साल की आयु में रेलमंत्री बने थे तो उस समय उनकी माता की आयु भी लगभग 70 साल की तो रही ही होगी. अगर आज रेलवे का कोई कोई कार्यक्रम हो तो क्या कर्मचारी की बूढी माँ ऐसे ही अपने आप उस कार्यक्रम में पहुँच जायेगी ?
आजाद भारत में भी रेल मंत्री बनने से पहले वे सांसद, उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव, गृहमंत्री, आदि जैसे कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके थे. इसलिए ये सोंचना कि उनकी माता को यह पता नहीं था कि- वे रेलवे में नौकरी नहीं करते हैं , मुझे तो बिलकुल झूठ लगता है