Sunday, 9 December 2018

शिवाजी महारज की वहू ( रानी तारा बाई )

मुघलों को दक्षिण भारत में बढ़ने से रोकने वाली
राजमाता रानी ताराबाई की पुण्यतिथि पर सादर नमन
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यूं तो विदेशी आक्रमणकारियों के शासन काल में भी अनेको हिन्दू रियासतों ने अपनी स्वतंत्रता को कायम रखा था लेकिन सहीं मायने में हिन्दू साम्राज्य की पुनर्स्थापना का श्रेय छत्रपति शिवाजी महाराज को जाता है. उनके सारे परिवार ने ही देश की आजादी के लिए संघर्ष किया. यह गाथा उनकी बहु "रानी तारा बाई' की है.
"रानी तारा बाई" मराठा सेना के सर सेनापति हम्बीरराव मोहिते की पुत्री तथा छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे "राजाराम महाराज"की पत्नी थी. शिवाजी के बाद 1680 में उनके बड़े पुत्र सँभाजी महाराज ने माराठा साम्राज्य की बागडोर सम्हाली थी. 1689 औरंगजेब द्वारा उनको धोखे से गिराफ्तार कर टुकड़े टुकड़े कर मार डाला गया था.
संभाजी महाराज "शाहू जी" का भी औरंगजेब ने अपहरण कर लिया और अपने हरम में बंद कर दिया. औरंगजेब यह सोचकर खुश था कि अब उसकी विजय निश्चित ही है क्योकि उसने लगभग मराठा साम्राज्य और उसके उत्तराधिकारियों को खत्म कर दिया है. संभाजी के बेटे को अपह्रत करना का उद्देश्य भविष्य में ब्लेकमेल करना भी था.
लेकिन मराठों ने संभाजी महाराज की मृत्यु और उनके पुत्र के अपहरण के बाद शिवाजी महाराज के छोटे बेटे "राजाराम महाराज"को मराठा साम्राज्य का राजा बना दिया. रानी तारा बाई उनकी ही पत्नी थीं. वे बहुत ही बुद्धिमान और शक्तिशाली महिला थीं. देश का दुर्भाग्य की 1700 में राजाराम महाराज की म्रत्यु हो गई.
पति की म्रत्यु हो जाने के बाद रानी ताराबाई ने अपने पुत्र "शिवाजी द्वितीय" को राजा घोषित किया और स्वयं उनके नाम से राज्य का संचालन करने लगीं. जिस समय मराठा साम्राज्य को अच्छे नेतृत्व की जरुरत थी उस समय ताराबाई ने उस नेतृत्व को अच्छे तरीके से निभाया था और मुग़ल सम्राट औरंगजेब का डटकर सामना किया.
रानी ताराबाई ने साम-दाम-दण्ड-भेद हर प्रकार की सभी पद्धतियाँ अपनाते हुए मराठा सरदारों को अपनी तरफ मिलाया और शासन पर अपनी पकड़ मजबूत की और साथ ही राजाराम की दूसरी रानी राजसबाई को जेल में डाल दिया. अगले कुछ वर्षों तक ताराबाई ने शक्तिशाली बादशाह औरंगजेब के खिलाफ अपना युद्ध जारी रखा.
जिस तरह औरंगजेब धन का लालच (रिश्वत) देकर अन्य राज्यों की सेना के राज पता करता था, ताराबाई ने भी उसकी तकनीक अपनाकर, रिश्वत के बलपर कर मुग़ल सेनाओं के कई राज़ मालूम कर लिए. इसी बीच बुंदेलखंड के राजा वीर छत्रसाल के हाथों घायल होने बाद, नासूर की पीड़ा को झेलते हुए 1707 औरंगजेब की मृत्यु हो गई.
औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात मुगलों ने उसके द्वारा अपहृत किये हुए सँभा जी के पुत्र "शाहूजी" को मुक्त कर दिया, ताकि सत्ता संघर्ष के बहाने मराठों में फूट डाली जा सके. मराठों में फूट डालने के लिए मुघलों ने कहना शुरू कर दिया कि - मराठा सत्ता पर शाहू जी का हक़ होना चाहिए, जैसे कि इतने साल तक उन्होंने दे रखे थे.
यह पता चलते ही रानी ताराबाई ने विभिन्न स्थानों पर दरबार लगाकर जनता को यह बताया कि- इतने वर्ष तक औरंगजेब की कैद में रहने और उसकी पुत्री जेबुन्निशा के द्वारा पाले जाने के कारण शाहू अब मुस्लिम बन चुका है, और वह मराठा साम्राज्य का राजा बनने लायक नहीं है. ताराबाई उसे गद्दार घोषित कर दिया.
मुग़ल सेनाओं के सहयोग से शाहू जी महाराज ने 1708 में सातारा पर हमला कर दिया. शिवाजी महाराज का पौत्र और संभाजी महाराज का पुत्र होने के कारण मराठा सैनिको ने भी उनका कोई ख़ास बिरोध नहीं किया. तब रानी ताराबाई को भी उन्हेे राजा घोषित करना पड़ा. परन्तु इसके साथ मराठा राज्य दो भागों में बंट गया.
मराठे आपस में न लड़ें इसके लिए रानी तारारानी ने एक फार्मूला दिया कि- मुघलों के किलों से चौथ बसुलेंगे लेकिन एक दुसरे के रास्ते में नहीं आयेंगे. बाद में शाहू जी महाराज ने एक अत्यंत वीर योद्धा बालाजी विश्वनाथ को अपना “पेशवा” (प्रधानमंत्री) नियुक्त किया. बाला जी विश्वनाथ के बाद उनके पुत्र "बाजीराव प्रथम" ने पेशाबाई सम्हाली.
बाजीराव पेशवा ने कान्होजी आंग्रे के साथ मिलकर 1714 में ताराबाई को पराजित किया तथा उनको उनके पुत्र सहित पन्हाला किले में ही नजरबन्द कर दिया, जहाँ ताराबाई और अगले 16 वर्ष कैद रही. 1730 में शाहूजी महाराज ने पारिवारिक विवाद को सुलझाने के उद्देश्य ने रानी ताराबाई और उनके पुत्र को कोल्हापुर की रियासत देकर रिहा कर दिया.
लेकिन अब तक सेना और सत्ता का मुख्य संचालन राज परिवार के बजाय पेशवाओं के हाथ में आ गया था. इस बीच मराठों का राज्य पंजाब की सीमा तक पहुँच चुका था. गायकवाड़, भोसले, शिंदे, होलकर जैसे कई सेनापति इसे संभालते थे, परन्तु इन सभी की वफादारी पेशवाओं के प्रति अधिक थी. अंततः ताराबाई को पेशवाओं से समझौता करना पड़ा.
मराठा सेनापति, सूबेदार, और सैनिक सभी पेशवाओं के प्रति समर्पित थे अतः ताराबाई को सातारा पर ही संतुष्ट होना पड़ा और मराठाओं की वास्तविक शक्ति पूना में पेशवाओं के पास केंद्रित हो गई. शासन की बागडोर भले ही पेशवाओं के हाथ में थी लेकिन मराठा जनता और सेनानायक उनको भी बरावर सम्मान देते थे.
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि - शिवाजी, सँभाजी और राजाराम जी की म्रत्यु के बाद अगर राजमाता ताराबाई 
ने सत्ता नहीं सम्हाली होती और अलग अलग मोर्चो पर औरंगजेब को कूटनीतिक मात नहीं दी होती तो, दक्षिण में भी मुघलो का राज होता. 9 दिसंबर 1761 को 73 साल की उम्र में राजामाता ताराबाई  का स्वर्गवास हो गया था.

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