फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों के शहीदी दिवस (14 दिसम्बर) पर सदर नमन
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1971 का भारत पापिस्तान युद्ध अपने अंतिम चरण में पहुँच चूका था. भारत ने पापिस्तान को हर क्षेत्र में मात दी थी. पूर्वी पापिस्तान में हमारी थलसेना और मुक्तिवाहिनी ने मिलकर पापिस्तानी सेना के हौशले पश्त कर दिए थे, पापिस्तनी पंजाब और सिंध के बड़े क्षेत्र भारतीय सेना के कब्जे में आ चुके थे.
कराची बंदरगाह तबाह हो चूका था और भारतीय नौसेना ने उसे घेर रखा था. ऐसे में पापिस्तान को लगा कि - अब किसी तरह कश्मीर को शेष भारत से अलग थलग किया जाए. उनको पता था कि - अगर कश्मीर को हवाई मदद बंद हो जाए तो दुर्गम क्षेत्र होने के कारण पापिस्तानी थलसेना वहां पर ज्यादा प्रभावी रहेगी.
पापिस्तान को यह भी पता था कि - संयुक्त राष्ट्र समझौते के कारण कश्मीर के चेत्र में कोई भारतीय लड़ाकू विमान नहीं रहते और न ही वहां पर रडार लगाए गए हैं. पापिस्तान को भी उस क्षेत्र के आसपास लड़ाकू विमान उड़ाने की इजाजत नहीं थी. भारत को खबर लग चुकी थी कि पापिस्तान वहा हवाई हमला अवश्य करेगा.
3 दिसंबर 1971 को भारत पापिस्तान युद्ध शुरू होने के बाद, भारतीय वायुसेना ने, अहतियात के तौर पर, अम्बाला से चार Gnats लड़ाकू विमान श्री नगर भेज दिए गए थे. इन्हें स्कैरडन लीडर "पठानिया", फ्लाईट लेफ्टीनेंट "बोप्य्या", फ्लाईट लेफ्टीनेंट "घुम्मन" और युवा फ़्लाइंग आफिसर निर्मलजीत सेखो उड़ा रहे थे.
पापिस्तान ने श्रीनगर एयरपोर्ट को नष्ट करने की योजना बनाई. 14 दिसम्बर 1971 को श्रीनगर एयरफील्ड पर पाकिस्तान के छह सैबर जेट विमानों ने हमला किया था. जैसे ही यह 6 पापिस्तानी जेट भारतीय सीमा में दाखिल हुए डोडा सेक्टर की चौकी से चेताबनी जारी की गई कि- पापिस्तानी हम्लाबर विमान श्रीनगर की तरह बढ़ रहे हैं.
सुबह 8 बजकर 2 मिनट पर चेताबनी मिली. उस समय फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों और फ्लाइंग लैफ्टिनेंट घुम्मन अपने अपने Gnats के साथ थे. बिना किसी आदेश की प्रतीक्षा किये वे दोनों अपने अपने फाइटर में सवार हो गए. उन्होंने उड़ान भरने का संकेत दिया और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये 10 सेकण्ड बाद उड़ान भर दी.
उनकी तेजी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि - 8 बजकर 2 मिनट पर चेताबनी मिली थी और 8 बजकर 4 मिनट पर वे दोनों आसमान में थे. पहले लैफ्टिनेंट घुम्मन के जेट ने उड़ान भरी और उसके तुरंत बाद निर्मल जीत सेखों ने. घुम्मन ने अपना जहाज दुश्मन के पीछे लगा दिया. उनके रन वे छोड़ते ही एक बम ठीक उनके पीछे आकर गिरा.
उस बम के कारण सारी एयर फील्ड धुएं से भर गई और निर्मलजीत का संपर्क घुम्मन से टूट गया. पापिस्तानी जेट निर्मल जीत के सामने थे .पापिस्तान के 5 सेवर जेटों ने उनको एक तरह से घेर लिया था. घुम्मन का जहाज काफी आगे निकल चूका था. घुम्मन ने अपने जहाज को गोता लगाकर पलटा और निर्मलजीत की मदद के लिए बढे.
इससे पहले की घुम्मन उनकी मदद को पहुँच पाते, पापिस्तानी जहाज़ों ने निर्मलजीत के जेट को नष्ट करने की तैयारी कर ली. दुश्मन के इरादे को जानकार निर्मलजीत ने आत्मघाती गोता लगाते हुए दुशमन पर फायर कर दिए, दो दुश्मन जहाजो को उनके निशाने बिलकुल ठीक जगह पर लगे और तीसरे से उनका जहाज जा टकराया.
इस प्रकार उन्होंने दूश्मन के तीन जहाज नष्ट कर दिए और इस काम को करते हुए खुद भी देश के लिए शहीद हो गए. इधर लेफ्टीनेंट घुम्मन भी पलट कर आ चुके थे और तब तक स्कैरडन लीडर "पठानिया" तथा फ्लाईट लेफ्टीनेंट "बोप्य्या" ने भी उड़ान भर ली थी. उनको आते देख तीनो बचे हुए पापिस्तानी जहाज वापस भाग निकले.
हवाई हमलो में सारा खेल मात्र कुछ सेकंड्स का होता है और तुरंत लिए निर्णय ही जीत / हार का कारण बनते हैं. उन दोनों ने अगर चेताबनी मिलते ही तुरंत तेजी न दिखाई होती तो वो पापिस्तानी जहाज निश्चित रूप से हवाई अड्डे को नष्ट कर देते और तब कश्मीर में भारत को निश्चित रूप से बहुत मुश्किल आनी थी.
पहाडी दुर्गम क्षेत्र होने के कारण कभी भी उनकी लाश नहीं मिल सकी. युद्ध की समाप्ति के बाद फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों को युद्ध में असाधारण बहादुरी दिखाने के लिए मरणोपरांत "परमवीर चक्र" प्रदान किया गया. आजतक के सैन्य इतिहास में परमवीर चक्र पाने वाले " निर्मलजीत सिंह सेखों" एकमात्र वायु सैनिक हैं.
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