1992 या 93 की बात है, तब मैं बाजपुर (नैनीताल) में जॉब करता था. बाजपुर से लगभग 22 किलोमीटर दूर काशीपुर में "चैती मेला" लगा हुआ था. एक दिन मैं भी वहां मेला देखने और दर्शन करने गया था. उस दिन बहुत ज्यादा भीड़ थी. भीड़ का लाभ उठाकर कुछ असमाजिक तत्व महिलाओं के साथ छेड़छाड़ तथा बदतमीजी कर रहे थे.
भीड़ में लोगों को उन लफंगों से बहुत दिक्कत हो रही थी, लेकिन कोई उनको कुछ बोल नहीं पा रहा था. हमारे नजदीक में एक परिवार था जिसमे दो पुरुष, दो महिलाए और दो युवतियां तथा तथा दो- तीन छोटे बच्चे थे. देखने से लगता था कि - वो थारु जनजाति के लोग थे. वो दस बारह लड़कों का ग्रुप उस परिवार की लड़कियों को ज्यादा तंग कर रहा था.
उस समय नैनीताल जिले के तत्कालीन सांसद बलराज पासीजी भी मेले में आये हुए थे. पासीजी बाजपुर के ही रहने वाले थे और उनसे मेरा अच्छा परिचय था. उनसे कहकर पुलिस पर दबाब डलबाया कि - गुंडों पर सख्त कार्यवाही की जाए. पुलिस ने भी आश्वासन दिया कि- इनको छोड़ा नहीं जाएगा और इनके बाक़ी साथियों को भी पकड़ा जाएगा.
मैंने भारत / नेपाल के बहुत बड़े हिस्से में भ्रमण किया है. सैकड़ों छोटे बड़े मंदिरों में गया हूँ, मुझसे आजतक किसी ने जाति प्रमाणपत्र नहीं माँगा है और न ही मैंने किसी और से मांगते हुए देखा है. किसी के निजी डेरे में ऐसा होता हो तो हम कह नहीं सकते और ऐसे निजी डेरे में हमें जाने की जरूरत ही क्या है ? हम तो खुद उनका बहिष्कार कर देंगे.

मुझे भी गुस्सा आ रहा था, मगर दुसरे शहर में दस बारह लोगों से उलझना आसान नहीं था. तभी मुझे एक स्टाल पर एक व्यक्ति दखाई दिए, मैं उनको बाजपुर में संघ के कार्यक्रम में मिल चुका था. मैं उनके पास गया और बोला कि- यह दस बारह लोग महिलाओं को बहुत तंग कर रहे हैं और खासकर उस बिशेष थारु / बुक्सा परिवार की युवतियों को.
उसके बाद उन्होंने बजरंग दल के कार्यकर्त्ताओ को बुला लिया और गुंडों को घेर लिया. कुछ तो भाग गए लेकिन 6 गुंडे हम लोगों की पकड में आ गए. उनकी अच्छी खासी पिटाई हुई. मेला पुलिस को भी बुला लिया, साथ में उक्त थारु परिवार को भी रोक लिया. इतने लोगों का साथ मिल जाने पर उन लड़कियों ने भी गुंडों की चप्पल से पिटाई की.

उसके बाद दर्शन कर हम काशीपुर से वापस बाजपुर आ गए. उस दिन यह बात काफी चर्चा का बिषय बनी रही क्योंकि पासी जी के साथ बाजपुर के कुछ और लोग भी थे उन्होंने भी सबको बताया था. लेकिन उसके दो दिन बाद एक अखबार ने खबर छापी कि - मेले में दर्शन करने गए दलितों को पीटा गया और उनको मंदिर में नहीं जाने दिया गया .
वो घटना मेरे सामने की थी, इलाके के सांसद बहां मौजूद थे, पुलिस ने पकड़ा था, गुंडों को सबने देखा था, जिन लड़कियों को तंग किया जा रहा था वो भी दलित (ST) थी, जब इसके बाबजूद, अखबार वाले ऐसी खबर लिख सकते हैं, तो ऐसी खबर पर कम से कम मैं तो कभी विशवास नहीं कर सकता कि किसी को जाति के कारण मंदिर जाने से रोका हो.

ज्यादातर यही होता कि किसी धार्मिक कार्यक्रम में यदि कोई असामाजिक तत्व , छेड़छाड़, झगडा या चोरी करते पकड़ा जाता है और यदि वह इत्तेफाक से दलित हो तो, वो अपने आपको बचाने के लिए इसे जातिगत भेदभाव का मुद्दा बताने का प्रयास करता है. मीडिया और नेता भी जानबूझकर विवाद पैदा कर लाभ उठाने की कोशिश करते हैं.
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