उनको सोंचना चाहिए कि - क्या कोई ट्रेन पटरी छोड़कर रास्ता बदल सकती है ? क्या कोई ट्रेन वास्तव में रास्ता भटक सकती है ? क्या कोई एक व्यक्ति अपनी मर्जी से ट्रेन को कहीं लेजा सकता है ? ट्रेन चलाने का आदेश देने के अलावा क्या मंत्रालय का इसमें कोई हस्तक्षेप रहता है ?
इस समय तो कोई यात्री गलती से भी किसी गलत ट्रेन में नहीं बैठ सकता है क्योंकि स्टेशन पर एक समय में केवल एक ही ट्रेन खड़ी होती है और वही यात्री उनमे बैठते हैं जिनको अनुमति मिली होती है. उनको भी ट्रेन में बैठे से पहले बहुत लम्बी प्रिक्रिया से गुजरना पड़ता है.
मेरा एक परिचित लुधियाना से मझोला (पीलीभीत) गया. उसने ऑन लाइन बुकिंग कराई थी, जिसमे कोई पैसे नहीं लगे. 21 मई को सुचना मिली कि- 23 मई को ट्रेन जायेगी और इसके लिए पहले लुधियाना के "स्प्रिंग डेल" स्कूल पहुंचना है. वे लोग निश्चित समय पर वहां पहुंचे.
वहां उनको आवश्यक निर्देश दिए गए, सैनिटाइज किया गया और बस में बिठाकर "गुरु नानक स्टेडियम" भेज दिया गया. वहां उनकी स्कैनिंग हुई, उनको टिकट दी गई (बिना पैसे के), खाना दिया गया, पानी की बोतल दी गई. उसके बाद उन्हें रेलवे स्टेशन पहुंचा दिया गया.
एक एक यात्री का नाम पता नोट कर उनको वहां पर पहले से खड़ी ट्रेन में बिठाया गया. ट्रेन चली अम्बाला, सहारनपुर, मुरादाबाद रुकी लेकिन न किसी सवारी को वहां उतरने की इजाजत थी और न चढ़ने की, सिर्फ प्लेटफार्म से पानी , चिप्स आदि खरीद सकते थे.
ट्रेन को सीतापुर रोक कर सवारियां उतारी गइ. बरेली / शाहजहांपुर वालों को भी सीतापुर में ही उतारा गया जबकि ट्रेन वहां से होकर ही आई थी. सीतापुर में अलग अलग जिलों की बस लगी हुई थी, जिनमे बिठाकर उनको बरेली, शाहजहांपुर, लखीमपुर, पीलीभीत, आदि भेजा गया.
पीलीभीत में बस उनको लेकर "ड्रमंड राजकीय इंटर कालेज" में ले गई. वहां उनकी सारी जानकारी लेकर नोट की गई और उनको खाना / पानी दिया गया और उनके हाथ पर होम कोरन्टाइन की मोहर लगा दी. वहां कुछ समय रुकने के बाद एक बस द्वारा मझोला उनके घर भेज दिया गया.
क्या ऐसी व्यवस्था में आपको लगता है कि - कोई ट्रेन रास्ता भटक सकती है या कोई यात्री किसी गलत दिशा में जाने वाली ट्रेन में बैठ सकता है ? दरअसल अंधबिरोधियों ने यह भ्रम ट्रेन पर लगी हुई तख्तियों को लेकर फैलाया है, जिस पर ट्रेन का रूट लिखा होता है.
किसी विशेष मौके पर जो स्पेशल ट्रेन चलाई गई हैं वो वही रैक (रेलगाड़ियां) हैं जो पहले किसी न किसी अन्य रूट पर चलते थे. उनमे उनके वास्तविक रूट की तख्तियां लगी हुई हैं. ट्रेन की तख्तियों को अक्सर ही नहीं उतारा जाता है. इसी को लेकर अंधबिरोधी ऐसे भ्रम पैदा करते हैं
जैसे कोई ट्रेन लुधियाना से सीतापुर गई हो और उसके डिब्बों पर तख्ती अमृतसर से दिल्ली की लगी हुई थी और अंधबिरोधी पत्तलकार हल्ला मचाने लग जाए कि - अमृतसर से दिल्ली जाने वाली ट्रेन रास्ता भटककर सीतापुर पहुँच गई. जबकि उसका रास्ता बिलकुल सही था.
माना कि - आपको भाजपा या मोदी पसंद नहीं है लेकिन इसका अर्थ ये तो नहीं कि आप झूठी अफवाहें फैलाकर देश में भ्रम की स्थिति पैदा करें. इससे रेलमंत्री प्रधानमंत्री का कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि उन्होंने केवल ट्रेन चलाने का आदेश दिया है, वो ट्रेन नहीं चला रहे है.
रेल मंत्रालय द्वारा केवल यह आदेश दिया गया है कि - कहाँ से कहाँ को ट्रेन भेजनी है. उसके बाद कौन सा रैक जाएगा, किस रूट से जाएगा, कहाँ कहाँ ड्राइवर / गार्ड बदलने होंगे, कहाँ फ्यूल लेना होगा, कहाँ बीच में बोगियों में पानी भरा जाएगा, आदि देखना रेल प्रचालन विभाग का काम है.
जिस रूट से ट्रेन गुजरती है उस रूट पर हर स्टेशन मास्टर के पास सूचना होती है, हर ट्रेन के गुजरने की पूर्व सुचना होती है और ट्रेन गुजरने का रिकार्ड रखा जाता है. रास्ते में पड़ने वाले फाटकों को बंद करना / खोलना पड़ता है. लाइन क्लियर होने पर ही वह ट्रेन को आगे जाने का सिग्नल देता है
ट्रेन का स्टीयरिंग ड्राइवर के हाथ में नहीं होता है बल्कि रेलवे स्टेशन पैड बदलकर रास्ता बदलते हैं. किसी भी स्तर पर गलती होने पर ट्रेन ज्यादा से ज्यादा एक दो स्टेशन पार कर सकती है. किसी ट्रेन द्वारा 1500 किलोमीटर की दूरी पार करने में तो सैकड़ों लोग इन्वाल्व रहते हैं.
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