
1. पहला दिन - युद्ध के पहले दिन पांडव पक्ष को भारी नुकशान हुआ था. युद्ध के पहले दिन ही विराट नरेश के दोनों पुत्र (उत्तर और श्वेत) वीरगति को प्राप्त हुए थे, जिनका बध क्रमशः मद्र नरेश शल्य और पितामह भीष्म ने किया था. पाण्डव सेना की भी भारी क्षति हुई थी. पहला कौरवों के लिए उत्साह बढ़ाने वाला तथा पांडवो के लिए निराशाजनक था.
2. दूसरा दिन :- युद्ध के दूसरे मुकाबला लगभग बराबर का रहा. द्रोणाचार्य और धृष्टधुम्न का कई बार सामना हुआ और हर बार द्रोणाचार्य धृष्टधुम्न पर हावी रहे. भीष्म के वाणों ने भी अर्जुन के साथ साथ श्रीकृष्ण को घायल किया लेकिन फिर भी अर्जुन ने भीष्म को रोके रखा. दूसरी तरफ भीम ने कलिंगराज भानुमान्, केतुमान और निषादराज को उनकी सेना के साथ मार गिराया.
3. तीसरा दिन :- तीसरे दिन भी भीष्म पांडव सेना का काफी नुकशान करते हैं. श्रीकृष्ण द्वारा बार बार उत्साह बढ़ने के बाद भी अर्जुन पूरे मन से युद्ध नहीं लड़ पाते है. तब श्रीकृष्ण भीष्म को मारने के लिए दौड़ पड़ते हैं लेकिन अर्जुन उनको रोक लेते हैं और पूरी क्षमता से न लड़ने के लिए क्षमा मांगते है. दुसरी तरफ भीम और घटोत्कच दुर्योधन को भागने पर मजबूर कर देते हैं.

5. पांचवां दिन :- युद्ध के पांचवें दिन पितामह भीष्म पांडव सेना का बहुत नुक्सान करते है. तब अर्जुन और भीम मिलकर भीष्म को रोकने का प्रयास करते हैं. दूसरी तरफ पांडव सेना के एक योद्धा सात्यकि गुरु द्रोणाचार्य से पूरा दिन युद्ध करते है और पूरा दिन रोके रखते हैं. तब भीष्म द्रोणाचार्य की मदद को आते है और सात्यिकी को भागने पर मजबूर करते हैं.
6. छठा दिन :- युद्ध के छठे दिन भी दोनों पक्षों के बीच भयंकर युद्ध होता है. अर्जुन भीष्म को आगे नही बढ़ने देता है. तब दुर्योधन क्रोधित होकर भीष्म पर फिर पक्षपात का आरोप लगाता है. भीष्म कहते हैं कि - किसी तरह अर्जुन को रोको. तब द्रोणाचार्य अर्जुन को रोकते है और दूसरी तरफ भीष्म पितामह लगभग सारी पांचाल सेना का सफाया कर देते हैं.
7. सातवां दिन :- सातवें दिन अर्जुन फिर कौरव सेना पर हावी हो जाता है. दुसरी तरफ धृष्टधुम्न दुर्योधन को भागने पर मजबूर कर देता है. अर्जुन और नागकन्या अलूपी का पुत्र "इरावान", युद्ध में केकेय राजकुमार "विन्द" और "अनुविन्द" को हरा देता है. परन्तु दिन के अंत होते-होते पितामह भीष्म फिर से पांडव सेना पर हावी हो जाते हैं.

दूसरी तरफ अर्जुन पितामह भीष्म को रोके रखते है हालांकि भीष्म भी पांडव सेना को मुश्किल में डाले रहते हैं. इधर घटोत्कच दुर्योधन को अपनी माया से उलझा के रखता है. लेकिन तब कौरब पक्ष का एक योद्धा भगदत्त आ जाता है और प्रचंड युद्ध करते हुए घटोत्कच, भीम, युधिष्ठिर व अन्य पांडव सैनिकों को पीछे हटने को मजबूर कर देता है.
9. नौवां दिन :- युद्ध के निर्णायक स्तिथि में न पहुँचने से नाराज होकर दुर्योधन भीष्म से कहते है कि - अंगराज कर्ण को भी युद्ध में शामिल करने को कहता है. तब भीष्म उसे आश्वासन देते हैं कि - आज या तो वो श्रीकृष्ण को युद्ध में शस्त्र उठाने के लिए विवश कर देंगे या फिर किसी एक पांडव का वध कर देंगे. नौवे दिन पितामह ने "सर्वतोभद्र व्यूह" की रचना करते है.
आज का दिन बहुत भयानक युद्ध होता है. वीर अभिमन्यु राक्षस अलम्बुष को घायल कर भागने पर मजबूर कर देते है. सात्यिकी अश्वत्थामा को और द्रुपद द्रोणाचार्य को घेर लेते हैं. तब पितामह भीष्म भीषण युद्ध करते हुए पांडव सेना का संहार करते हुए आगे बढ़ते है. भीष्म का रौद्ररूप देखकर भगवान् श्रीकृष्ण भीष्म के ऊपर चक्र उठा लेते है.

शिखंडी की आड़ लेकर अर्जुन पितामह भीष्म पर वाणो की बर्षा कर देते है. पितामह भीष्म अपने रथ से नीचे गिर पडते हैं लेकिन उनका शरीर भूमि का स्पर्श नहीं करता है क्योंकि अर्जुन के बाण उनके समस्त शरीर में समाये हुए थे, जिस कारण वे बाणों की शैय्या पर पड़ जाते है. उनके गिरते ही कौरव और पांडव दोनों शिविरों में शोक छा जाता है.
11. ग्यारहवा दिन :- भीष्म के बाद द्रोणाचार्य कौरवो के सेनापति बनते हैं. वे कर्ण को युद्ध की अनुमति दे देते हैं. द्रोण कहते है कि- किसी भी तरह अर्जुन को दूर रखो तो मैं युधिष्ठिर को बंदी बना लूँगा. कर्ण अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारता है. कर्ण और अर्जुन में घमाशान युद्ध होता है. इधर द्रोणाचार्य युधिष्ठिर को बंदी बनाने का प्रयास करते हैं.
युधिष्ठिर को बचाने की कोशिश में द्रोणाचार्य के हाथों विराट वीरगति को प्राप्त हो जाते है. कर्ण लगातार अर्जुन को उलझाए रखता है परन्तु श्रीकृष्ण किसी तरह से रथ लेकर युधिष्ठिर के पास पहुँच जाते हैं. अर्जुन को आते देखकर द्रोणाचार्य युधिष्ठिर को बंदी बनाने की योजना को छोड़ देते हैं. कर्ण इस दिन पाण्डव सेना का भारी संहार करता है.
12. बारहवा दिन :- बारहवे दिन त्रिगध नरेश, अर्जुन को दूर युधिष्ठिर से ले जाने में कामयाब हो जाते है. इधर सात्यकी युधिष्ठर की रक्षा करते है और जलसंधि, सुदर्शन, म्लेच्छ सेना, भूरिश्रवा, कर्णपुत्र प्रसन का बध करते हुए खुद भी घायल हो जाते हैं. इससे पहले कि द्रोण युधिष्ठिर को बंदी बनाये अर्जुन त्रिगध नरेश का बध करके वापस आ जाते हैं.

अभिमन्यु के शौर्य को देखकर द्रोणाचार्य तक घबरा जाते है. कर्ण के कहने पर सात महारथी ( कर्ण, जयद्रथ, द्रोण, अश्वत्थामा, दुर्योधन, लक्ष्मण तथा शकुनि) एकसाथ अकेले अभिमन्यु पर आक्रमण कर देते है. अभिमन्यु का रथ टूट जाता है और निहत्था हो जाता है. तब सातों उसे घेर लेते है. अभिमन्यु रथ का पहिया उठाकर सातों से मुकाबला करता है.
लक्ष्मण गदा फेंक कर अभिमन्यु के सर पर मारता है. अभिमन्यु उसकी ही गदा उठाकर उसे मारता है जिससे लक्ष्मण के प्राण पखेरू उड़ जाते है लेकिन अभिमन्यु भी होश खो बैठता है ऐसे में जयद्रथ पीछे से तलवार का बार करता है और अन्य पाँचों महारथी भी उस निहत्थे और घायल पर वार करते हैं जिससे अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हो जाता है.
उधर अर्जुन के ऊपर भगदत्त वैष्णवास्त्र का प्रहार करता है लेकिन उसे श्रीकृष्ण अपने ऊपर लेकर अर्जुन की रक्षा करते है. भगदत्त का बध करने के बाद अर्जुन और कृष्ण लौट आते है. जब उनको अभिमन्यु की हत्या का पता चलता है तो अर्जुन कसम खाते हैं कि - कल सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का बध कर दूंगा यदि नहीं कर पाया तो अग्नि समाधि ले लूँगा.

अर्जुन को अग्नि समाधि के लिए जाते देख जयद्रथ सामने आकर अर्जुन का उपहास उड़ाने लगता है. तभी श्रीकृष्ण माया को समाप्त कर अन्धकार को दूर कर देते है और अर्जुन से कहते है कि - "हे पार्थ प्राण पालन करो, देखो अभी दिन शेष है" और अर्जुन अपने वाण से जयद्रथ का सर काट देता है. इसी दिन युद्ध में द्रोणाचार्य भी द्रुपद का बध कर देते है.
15. पन्द्रहवाँ दिन :- युद्ध के पन्द्रहवें दिन द्रोणाचार्य पांडव सेना का बुरी तरह से संहार करने लगते है. तब श्रीकृष्ण भीम को आदेश देते हैं कि अवन्तिराज के हाथी "अश्वत्थामा" को मार दे और इस बात का शोर मचा दें कि - अश्वत्थामा मारा गया. भीम ऐसा ही करते हैं. अश्वत्थामा के मारे जाने का शोर सुनकर द्रोणाचार्य व्याकुल हो जाते है.
वे युधिष्ठिर से पूंछते है कि - क्या यह सत्य है कि अश्वत्थामा मारा गया. तो युधिष्ठिर कहते है कि - हाँ, अश्वत्थामा मारा गया है, परन्तु हाथी. इसी समय श्रीकृष्ण शंखनाद कर देते हैं जिससे द्रोणाचार्य "हाथी" शब्द नहीं सुन पाते है और शोकाकुल होकर अपने शस्त्र रख देते है. तभी मौक़ा देखकर धृष्टधुम्न अपनी तलवार से द्रोणाचार्य का सर काट देता है.

तब दुर्योधन कर्ण से आग्रह करता है कि - वह अपनी अमोघ शक्ति का प्रयोग घटोत्कच पर करे. कर्ण उसका प्रयोग नहीं करना चाहता है पर दुर्योधन के बार- बार कहने पर उसे घटोत्कच घटोत्कच पर चला देता है. घटोत्कच वीरगति को प्राप्त हो जाता है. दुसरी तरफ भीम दुशासन का बध कर देता है और उसकी छाती के खून से द्रोपदी के केस धोता है.
17. सत्रहवां दिन :- सत्रहवें दिन शल्य कर्ण के सारथी बनते है. कर्ण भीम और युधिष्ठिर को हरा देता है, लेकिन कुंती को दिए वचन के कारण उन्हें मारता नहीं है. युद्ध में कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धंस जाता है. जब शस्त्र रखकर कर्ण पहिया निकालने के लिए नीचे उतरता है और उसी समय श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन कर्ण का वध कर देता है.

18. अट्ठारहवां दिन :- अट्ठारवे दिन अपनी पराजय को निश्चित जानकर दुर्योधन एक सरोवर में छुप जाता है. सरोवर में छिपे हुए दुर्योधन को पांडवों द्वारा ललकारे जाने पर वह बाहर आ जाता है और भीम से गदा युद्ध करता है. भीम अपनी गदा के प्रहार से दुर्योधन की जंघा तोड़ देते है, जिसको तोड़ने की भीम ने तब कसम खाई थी जब दुर्योधन ने द्रोपदी को नंगा कर अपनी जंघा पर बैठने को कहा था. इस प्रकार 18 दिन चले इस युद्ध में पांडव विजयी होते हैं
अब कौरवों के केवल तीन योद्धा शेष बचते हैं- अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा. दुर्योधन मरने से पहले अश्वत्थामा को सेनापति घोषित कर देता है. अश्वथामा पांडवों का वध करने की प्रतिज्ञा करता है और रात्रि में ही सेनापति अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा पांडव शिविर पर हमला कर देता है जब पांडव सेना विश्राम कर रही होती है.
अब कौरवों के केवल तीन योद्धा शेष बचते हैं- अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा. दुर्योधन मरने से पहले अश्वत्थामा को सेनापति घोषित कर देता है. अश्वथामा पांडवों का वध करने की प्रतिज्ञा करता है और रात्रि में ही सेनापति अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा पांडव शिविर पर हमला कर देता है जब पांडव सेना विश्राम कर रही होती है.
धोखे से किये गए इस हमले में अश्वत्थामा सभी पांचालों (द्रौपदी के पांचों पुत्रों, धृष्टद्युम्न तथा शिखंडी आदि) का सोते हुए वध कर देता है. अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर देता है. श्रीकृष्ण द्वारा फटकारने पर वह ब्रह्माश्त्र को रोक तो देता है परन्तु उसके दुष्प्रभाव को अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ में उतार देता है.
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