
आम तौर पर कोई ऐसी रकम दान करता है तो प्रधानमंत्री राहत कोष, मुख्यमंत्री राहत कोष या किसी प्रतिष्ठित NGO को देता है लेकिन कहीं से भी ये पता नहीं चल रहा है कि उन्होंने ये रकम किसको दी है. इंटरनेट पर सर्च करने के बाद पता चला है कि - उन्होंने एक खुद का NGO बना रखा है, जिसका नाम है - "अजीम प्रेमजी फाउंडेशन".
उन्होंने बाहर कहीं कुछ दान नहीं दिया है बल्कि अपनी कम्पनी विप्रो लिमिटेड के कुछ प्रतिशत शेयर, अपने ही फाउंडेशन के नाम कर दिए हैं, जिनका बाजार मूल्य आज की तारीख में 52,750 करोड़ है. यह काम भी उन्होंने आज "चायना वायरस" से लड़ने के लिए नहीं बल्कि पिछले साल ही कर दिया था. इसका चायना वायरस से कोई लेना देना नहीं था.
यह कह सकते हैं कि - उन्होंने पिछले साल अपनी एक जेब से रकम निकालकर दुसरी जेब में रखी थी. यह उनकी दानवीरता नहीं बल्कि चतुराई है, क्योंकि ऐसा करने के बाद उनकी यह रकम करमुक्त हो गई है. इस फाउंडेसन में से वे कभी कभार थोड़ा बहुत दान करके जरूरी खानापूर्ती करते रहेंगे. यह है इनकी दानवीरता की असलियत.
प्रेम अजीम जी ने आज तक जितना भी दान दिया है अपने इसी ट्रस्ट को दिया है. इस ट्रस्ट के द्वारा सहायता पाया हुआ कोई बाहरी व्यलक्ति आपको शायद ही कहीं मिलेगा. यह ट्रस्ट केवल कुछ स्कूल चला रहा है और उसकी बिल्डिंग बनाने में पैसा खर्च किया है. उन स्कूल पर भी मालिकाना हक़ ट्रस्ट के माध्यम से खुद अजीम प्रेम जी का ही हैं.
No comments:
Post a Comment