Tuesday, 26 May 2020

भारत और नेपाल के सम्बन्ध

भारत और नेपाल के बीच हजारों साल से धार्मिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक और राजनैतिक रिश्ते रहे हैं. लाखों नेपाली मूल के लोग भारत में स्थाई रूप से रहते है और लाखों भारतीय भी नेपाल में रहकर अपना कारोबार कर रहे हैं. नेपाल और भारत के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता है.
हमारे आराध्य भगवान् श्रीराम का विवाह नेपाल की राजकुमारी सीता (माता) के साथ हुआ था. भगवान् बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबनी में हुआ था और उनकी कर्मभूमि भारत थी. भगवान् बुद्ध का सारा जीवन नेपाल और भारत की सीमावर्ती क्षेत्र से सम्बद्ध रहा है.
भारत नेपाल सीमा दोनों तरफ उनसे सम्बंधित लुंबनी, देवदह, कपिलवस्तु, ठूठीबाड़ी, कुशीनगर, कौशाम्बी, आदि अनेकों स्थल है जिनमे दोनों की श्रद्धा है. नेपाल में भी भगवान् शिव, माता पार्वती (शक्ति) और भगवान् विष्णु की उतनी ही महिमा है जितनी भारत में.
नेपाल के काठमांडू में स्थित भगवान् पशुपतिनाथ का मन्दिर 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है. नेपाल के लगभग हर जिले में भगवान् शिव, भगवान् विष्णु और माता शक्ति से सम्बंधित मंदिर है, जिनमे पशुपतिनाथ, मुक्तिनाथ, मनकामना, वराह क्षेत्र, दक्षिण काली, चांगुनारायण मन्दिर, दन्तकाली, बज्रयोगिनी, आदि बहुत प्रशिद्ध हैं.
सनातन धर्म और बौद्ध धर्म के कारण, नेपाल और भारत के लोग भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं. भारत में इस्लामी आक्रमणकारियों और अंग्रेजी शासन में भी भारत और नेपाल का रिश्ता कमजोर नहीं हुआ. अनेकों क्रांतिकारी अंग्रेजों के खिलाफ कार्यवाही करने के बाद नेपाल में छुपते थे.
यह भी कहा जाता है कि - भारत के आजाद होने के बाद नेपाल ने भारत से जुड़ने की इच्छा व्यक्त की थी, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नेहरू ने इसको नकार दिया था. फिर भी भारत नेपाल रोटी -बेटी का रिश्ता बनाते हुए साथ चलते रहे. इन संबंधों में खटास आने की शुरुआत राजीव गांधी के समय में हुई.
1985 तक नेपाल अपना विदेश व्यापार का लगभग 95% व्यापार भारत के साथ करता था और लगभग 5% व्यापार चीन के साथ करता था. राजीव गांधी सरकार ने नेपाल के साथ रिश्तों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और मौके का फायदा उठाकर चीन ने नेपाल में घुसपैठ बढ़ा दी.
चीन ने अपने खर्च पर नेपाल में सड़कें और इंडस्ट्रीज आदि बनाना प्रारंभ किया. इनको बनाने का धन तो लगाया ही, साथ ही अधिकारियों और प्रभवशाली नेताओं को भी रिशवत के रूप में काफी धन दिया. साथ की कम्युनिस्ट नेताओं को आगे बढाकर माओवाद का प्रसार किया.
1985 में चीन ने नेपाल के पोखरा शहर से तिब्बत के जियांग को सड़क से जोड़ने का समझौता किया. 1987 में चीन ने नेपाल की सीमा पर ल्हासा से दज्हू तक एक सड़क का निर्माण शुरू कर दिया. 1988 में चीन और नेपाल में ऐसे कई करार हुए, जिनसे भारत के सुरक्षा हितों की उपेक्षा हुई.
ऐसे में नेपाल से फिर से सम्बन्ध मजबूत करने के उद्देश्य से राजीव गांधी ने नेपाल की यात्रा की. वहां सबकुछ फिर से अच्छा हो गया था लेकिन एक छोटी सी बात पर राजीव गांधी नेपाल नरेश से नाराज हो गए और उनकी यह व्यक्तिगत नाराजगी भारत नेपाल संबंधों के लिया खराब साबित हुई.
काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर में केवल हिन्दू ही दर्शन कर सकते है. राजीव गांधी अपनी धार्मिक पहचान को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से वहां जाना चाहते थे. लेकिन वहां के पुजारियों ने इस पर ऐतराज जताया. राजा के समझाने पर वे राजीव के लिए तो तैयार हो गए परन्तु सोनिया के लिए तैयार नहीं हुए.
राजीव की इस यात्रा के बाद दोनों देशों के संबंध सुधरने के बजाय और बिगड़ गए. राजीवगांधी ने इसे अपना व्यक्तिगत अपमान माना और नेपाल की आर्थिक नाकाबंदी कर दी. इसके अलावा रॉ के द्वारा नेपाल से राजशाही को समाप्त करने का अभियान चलाया.
"रॉ" के पूर्व स्पेशल डायरेक्टर अमर भूषण ने अपनी किताब "इनसाइड नेपाल" में लिखा है कि- राजीव गांधी के निर्देश पर "कोवर्ट ऑपरेशन्स लॉन्च" किया गया और नेपाल के विपक्षी दलों का साथ मिलाकर गुप्त तरीके से नेपाल के राजशाही सिस्टम को ध्वस्त करने का अभियान चलाया.
अपने अपमान का बदला लेने के लिए राजीव गांधी ने नेपाल को लेकर भारत की परंपरागत नीति में बदलाव करते हुए रॉ को नेपाल में विरोधी नेताओं को एकजुट करने के लिए उपयोग किया. इसे उन्होंने राजशाही के ख़िलाफ़ लोकतंत्र को समर्थन देना बताया
भारत सरकार के इस रवैये के कारण भारत और नेपाल राजपरिवार के बीच हालात इतने असामान्य हो गये कि स्वयं नेपाल नरेश चीन से मदद मांगने पहुंच गये. नर्सिम्हाराव की सरकार में संबंध थोड़ी बहुत कोशिश हुई लेकिन बहुत ज्यादा नहीं क्योंकि तब भी नेपथ्य में सोनिया गांधी थी.
दूसरी तरफ तब तक चीन में नेपाल में अपनी पैठ बना चूका था. माओवादियों का प्रभाव बढ़ चुका था. चीन के सहयोग से नेपाल के माओवादी भारत समर्थकों पर हमले कर रहे थे. इसी बीच नेपाल नरेश की सपरिवार हत्या ने नेपाल को और अधिक अस्थिर कर दिया.
भारत में अटल बिहार बाजपेई की सरकार आने के बाद भारत ने नेपाल से रिश्ते सुधारने शुरू किये तथा कई सांस्कृतिक और आर्थिक समझौते किये लेकिन दुसरी तरफ से चीन अपने समर्थकों के दम से रिश्ते में खटास डालने का प्रयास करता रहा. इसी बीच 2004 में अटल सरकार चली गई.
अब भारत में मनमोहन सिंह की सरकार थी जिस अप्रत्यक्ष रूप से सोनिया गांधी का नियंत्रण था. दुसरी तरफ नेपाल में सशस्त्र माओंवादी हावी हो चुके थे. नेपाल पर चीन हावी होता जा रहा था और भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा था. इन दस साल में नेपाल के व्यापार पर भी चीन का कब्ज़ा हो गया.
2014 में भारत में सत्ता परिवर्तन हुआ और नरेंद्र मोदी की सरकार आई. नरेंद्र मोदी ने भारत का प्रधानमंत्री बनते ही सबसे पहले नेपाल से सम्बन्ध सुधारने का प्रयास किया. उन्होंने सबसे पहले नेपाल की यात्रा की भगवान् पशुपतिनाथ के दर्शन किये तथा बुद्ध और सीता माता को याद किया.

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