
कौन थे जगमोहन मल्होत्रा
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कल कश्मीर में हुए हिन्दुओं के कत्लेआम की 30 वी बरसी थी. इस अवसर पर अनेकों लोगों ने विभिन्न माध्यमो से इस घटना को याद किया. सोशल मिडिया पर भी उसको लेकर ही चर्चा चलती रही. लेकिन मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले काग्रेसी, सपाइ, आपिये, कम्युनिस्ठ आदि कश्मीरी मुसलमानों की करतूत पर पर्दा डालते दिखे.
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कल कश्मीर में हुए हिन्दुओं के कत्लेआम की 30 वी बरसी थी. इस अवसर पर अनेकों लोगों ने विभिन्न माध्यमो से इस घटना को याद किया. सोशल मिडिया पर भी उसको लेकर ही चर्चा चलती रही. लेकिन मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले काग्रेसी, सपाइ, आपिये, कम्युनिस्ठ आदि कश्मीरी मुसलमानों की करतूत पर पर्दा डालते दिखे.
ये लोग लिख रहे थे कि उस समय वी.पी. की सरकार थी और उस सरकार को बीजेपी भी बाहर से समर्थन दे रही थी इसलिए उस हिंसा के लिए बीजेपी जिम्मेदार हुई. जब इनसे पूंछा कि - उन हिन्दुओं को अचानक उनके पड़ोसी मुस्लमान मारने लगे थे या कोई बाहरी हमला हुआ था तो वो इस सवाल से बचकर भागते दिखाई दिए.
उनसे पूंछा कि - चलो उस कत्लेआम के लिए कश्मीरी मुसलमानो के बजाये सरकार को ही जिम्मेदार मान लिया जाए तो क्या सरकार और सरकार में शामिल नेताओं को जिम्मेदार मानने के बजाय बाहर से समर्थन देने वाली पार्टी को जिम्मेदार माना जाए ? तब वो इस सवाल से भागते हुए कहने लगे कि- संघी राज्यपाल जगमोहन की गलती थी.
उनका कहना था कि- भाजपा के नेता और कश्मीर के राज्यपाल "जगमोहन" ने कश्मीरी हिन्दुओं को बहला - फुसलाकर उनसे कश्मीर खाली करवाया और शरणार्थी कैंपों में रखा, जिससे उनको दिखाकर शेष भारत के हिन्दुओं के वोट ले सकें. तब उनको "जम्मू एवं कश्मीर" के तत्कालीन राज्यपाल "जगमोहन मल्होत्रा" के बारे में भी बताया.
मेरा ख़याल है कि सभी को "जगमोहन" जी के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए जिससे ऐसे लोगों को जबाब दिया जा सके. सबसे पहले तो यह जानना चाहिए कि - कश्मीर के तत्कालीन राजयपाल "जगमोहन" जी थे कौन ? जगमोहन कोई नेता नहीं बल्कि आईएएस के उच्चाधिकारी थे जिनकी पहुँच कांग्रेस कार्यकाल में सीधे प्रधानमंत्री तक थी.
"जगमोहन" प्रधानमंत्री "इंदिरा गांधी" के बहुत खास ब्यूरोक्रेट थे. इंदिरा ने आपात काल (1975 से 1977) में उनके हाथ में काफी शक्तियां प्रदान की थी, आपातकाल के दिनों में ब्योरोकेशी के ऊपर उनका सीधा नियंत्रण था और वे इंदिरा गांधी / संजय गांधी को सीधे रिपोर्ट करते थे. "कनाट प्लेस" को बनाने का जिम्मा उनके पास था.
1977 में भारत सरकार द्वारा प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. इसका एकमात्र कारण था आपातकाल में इंदिरा और संजय के आदेशों को देश में लागू कराने में उनकी तत्परता. परन्तु 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार आने के बाद उनको खुड्डे लाइन लगा दिया गया.
जनता पार्टी की सरकार आने पर उन्हें रिटायर कर दिया गया लेकिन 1980 में फिर से कांग्रेस की सरकार बनने पर "इंदिरा" ने "जगमोहन" को बहुत बड़ी जिम्मेदारियां दी थीं. रिटायर हो जाने के बाद उनको पहले गोवा -दमन-दीव का और फिर उनको दिल्ली का राज्यपाल बनाया. एशियाड -82 के आयोजन की भी सारी जिम्मेदारी उनके पास थी.
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री बने उनके पुत्र राजीव गांधी भी उनको अपना नजदीकी मानते थे. उनके शासन काल में ही जगमोहन (26 अप्रैल 1984 से लेकर जुलाई 1989 तक ) "जम्मू एवं कश्मीर" के राज्यपाल रहे. "जगमोहन" जी जब तक "जम्मू एवं कश्मीर" के राज्यपाल थे, उनका तब तक भारतीय जनता पार्टी से कोई भी वास्ता नहीं था.
उनके बाद जुलाई 1989 को के. वी. कृष्णा राव को जम्मू कश्मीर का राजयपाल बनाया गया. जब फारुख अब्दुल्ला सरकार को बर्खास्त करने के बाद 19 जनवरी 1990 को जेहादियों ने हिन्दुओं का कत्लेआम शुरू कर दिया था तब केंद्र सरकार ने 19 जनवरी 1990 को ही जगमोहन जी को फिर से जम्मू & कश्मीर का राजयपाल नियुक्त किया।
परन्तु "जम्मू एवं कश्मीर" के राज्यपाल रहने के दौरान उन्होंने जब वहां हिन्दुओं की दुर्दशा देखी, तब उन्होंने कश्मीर में आतंकियों पर सख्ती करनी चाही लेकिन उस समय कांग्रेस की अपनी ही सरकार से उन्हें कोई सहयोग नहीं मिला. तुष्टीकरण की नीति के कांग्रेस कारण पीछे हट गई लेकिन भाजपा ने उनके नजरिये का समर्थन किया.
जेहादियों द्वारा पूरी तैयार करने के बाद 19 जनवरी 1990 को एक साथ पूरी कश्मीर घाटी में हिन्दुओं का कत्लेआम किया जाने लगा. उनकी ह्त्या करने वाले कोई विदेशी हमलावर नहीं थे बल्कि उनके अपने पड़ोसी मुस्लमान थे और कश्मीर की सभी राजनैतिक पार्टियां जेहादियों के साथ खड़ी दिखाई दे रही थी और केंद्र किम्कर्व्यविमूढ़ बैठा था.
तब कोई चारा न देखकर, राजयपाल जगमोहन ने उस समय किसी तरह उन हिन्दुओं को, कश्मीर घाटी के मुस्लिम बहुल इलाके से निकालकर, हिन्दू बहुल सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने का फैसला किया और लाखों हिन्दुओं को जेहादियों से बचाकर हिन्दू बहुल जम्मू में पहुंचाया. वहां उनके रुकने रहने खाने की अस्थाई व्यवस्था की.
अगर कोई कहता है कि - कश्मीर के विशाल इलाके में दूर -दूर रहने वाले लाखों हिन्दू, केवल एक गवर्नर के फुसलाने पर अपना घरवार छोड़कर कैंपों में रहने के लिए चले आये, तो यह बिचार ही केवल उनके मानसिक दिवालियेपन का सबूत है. ये लोग मुस्लिम वोट के लालच में इतना गिर चुके हैं कि - उन्हें हिन्दुओं की दुर्दशा दिखाई ही नही देती है.
मुझे पक्का यकीन है कि - इनमे से कोई भी तथाकथित सेकुलर, कभी किसी ऐसे बिस्थापित कश्मीरी हिन्दू से नहीं मिला होगा. अगर ये लोग कश्मीर से विस्थापित किसी हिन्दू से वास्तव में मिले होते और वहां के वास्तविक हालात के बारे में सुना होता तो ये लोग भी कभी "कश्मीरी मुसलमानों" का पक्ष लेने की भूल हरगिज नहीं करते .
कश्मीर में बे-हिसाब हिन्दुओं का लूटा व मारा गया और उनकी स्त्रियों को बे-आबरू किया किया. हिन्दुओं के घरों पर नोटिस लगा दिया जाता था कि - अपनी औरतों को छोड़ कर कश्मीर से चले जाओ. उस समय हिन्दुओं को जेहादियों से बचाने वाले जगमोहन, बाद में भी लगातार सरकारों से अपील करते रहे कि कश्मीर में सख्त कार्यवाही की जाय.
वी पी सिंह सरकार और चंद्र शेखर सरकार से तो कोई उम्मीद रखना ही बेकार था लेकिन बाद पी वी नरसिंहाराव (कांग्रेस) सरकार भी कश्मीर के हालात से उदासीन बनी रही. जगमोहन हर मंच से कश्मीर के हालात पर आवाज उठाते रहे लेकिन उनको नजरअंदाज किया जाता रहा, उस समय केवल भाजपा ने उनके नजरिये का समर्थन किया।
तब उन्होंने 1995 में "कांग्रेस" छोड़कर, "भाजपा" ज्वाइन की थी. इसलिए उनके "जम्मू एवं कश्मीर" का राज्यपाल रहते हुए किसी भी कार्यवाही को भाजपा से जोड़ना केवल बात को घुमाना है. "जम्मू एवं कश्मीर" का राज्यपाल रहते हुए उनका भाजपा से कोई सम्बन्ध नहीं था. वे तो बाद में राष्ट्रवादी नीतियों के कारण कई साल बाद भाजपा में आये थे.
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