Sunday, 13 August 2023

गुरुद्वारा श्री दमदमा साहिब धुबरी (बोरो बाज़ार, धुबरी, असम, भारत)

उत्तर पश्चिम भारत में कब्ज़ा करने के बाद औरंगजेब अपने राज्य का विस्तार पूरे भारत में करना चाहता था. लेकिन दक्षिण में शिवाजी और असम में महाराजा चक्रधर सिंह उसे कड़ी टक्कर दे रहे थे. असम के महाराजा चक्रधर सिंह के वीर सेनापति लचित बोड़फुकन ने औरंगजेब के असम में काबिज होने के मनसूबों पर पानी फेर दिया था.

औरंगजेब ने अपने अधीन राज कर रहे अंबर के मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र राजा राम सिंह को अहोम (असम) के राजा चक्रध्वज सिंह को हराने के लिए एक बड़ी सेना देकर असम भेजा. यह ऑपरेशन वास्तव में राम सिंह के लिए एक सजा थी क्योंकि उसकी ही हिरासत से शिवाजी और उनके बेटे औरंगजेब की कैद से बचकर निकल गए थे.
उस समय मुग़ल सेना में मुस्लिम सैनिको के साथ हिन्दू राजा और हिन्दू सैनिक भी होते थे, लेकिन उनमे मतभेद रहते थे. राम सिंह को लगता था कि अगर गुरु तेग बहादुर उनकी सेना के साथ होंगे तो मतभेद कम होंगे. राजा राम सिंह ने असम अभियान के समय ढाका में गुरु तेग बहादुर से मुलाक़ात कर, उनसे भी अभियान में साथ जाने का अनुरोध किया.
राम सिंह को लगता था कि गुरु तेग बहादुर के साथ रहने से उनके सैनिकों का मनोबल बढ़ेगा. इसके अलाबा उन दिनों माना जाता था कि असम के लोग काला जादू जानते हैं और उसके द्वारा इंसान को जानवर तक बना देते हैं. राजा राम सिंह ने अपनी सेना को विशवास दिलाया कि हमारे साथ महान संत गुरु तेग बहादुर है. इनके रहते कालाजादू काम नहीं करेगा.
गुरु तेग बहादुर ने राजा राम सिंह का अनुरोध स्वीकार कर लिया और राम सिंह के नेतृत्व वाली औरंगजेब की मुग़ल सेना के साथ असम अभियान में साथ चल दिए. राम सिंह के नेतृत्व में मुग़ल सेना फरवरी 1669 ई. की शुरुआत में कामरूप पहुंच गई. राम सिंह और उनकी सेना ने वर्तमान में पश्चिम बंगाल / असम की सीमा के पास रंगमती किले में डेरा डाला.
गुरु तेग बहादुर ने ब्राह्मपुत्र नदी के किनारे धुबरी में अपना डेरा डाला. जब असम के राजा को पता चला कि मुग़ल सेना असम पर आक्रमण करने के इरादे से ब्रह्मपुत्र नदी के उस पार पहुँच चुकी है तो उन्होंने अपने राज्य की मुग़लों से रक्षा करने के लिए असम की महिला तांत्रिको की मदद भी ली. तांत्रिको ने ब्राह्मपुत्र के इस तरफ से तन्त्र साधना शरू कर दी.
असमिया महिला तांत्रिको ने, अपने तांत्रिक उपकरणों के साथ ब्रह्मपुत्र नदी के ठीक पार डेरा डाले गुरु तेग बहादुर के शिविर पर विनाश के मंत्रों का पाठ करना शुरू कर दिया, लेकिन उनके सभी जादुई प्रभाव उनको नुकसान पहुंचाने में विफल रहे. इससे मुग़ल सेना के सैनिको में गुरु तेग बहादुर के प्रति श्रद्धा और विश्वास और भी ज्यादा बढ़ गया.
कहा जाता है कि असमियों तांत्रिकों ने अपने तंत्र (या किसी यंत्र) की सहायता से एक 26 फुट लंबा एक पत्थर फेंका, जो एक मिसाइल की तरह आकाश में उछलता हुआ आया और गुरु तेग बहादुर के शिविर के पास जमीन पर इतना जोर से गिरा कि उसकी लंबाई का लगभग आधा हिस्सा जमीन में समा गया. इसे अभी भी उसी स्थिति में देखा जा सकता है.
जब उनकी मिसाइल गुरु को नुकसान पहुंचाने में विफल रही, तो जादूगरों ने अपने तंत्र (या किसी यंत्र) की सहायता से एक पेड़ को फेंक दिया, जो बिना किसी चोट पहुंचाए के शिविर के बहुत करीब गिर गया. उसके बाद जैसे ही गुरु तेग बहादुर ने अपना धनुष उठाया और जादू की वेदी पर तीर चलाया, उन असमिया तांत्रिको का सारा जादू अचानक समाप्त हो गया.
जादू टोना होता है या नहीं होता है, ये सोंचना आपका काम है लेकिन वहां वास्तव में ऐसी तंत्र - मन्त्र की लड़ाई भी हुई थी. असम अभियान के समय गुरु तेग बहादुर के मुग़ल सेना के साथ जाने को और उनके द्वारा वहां के देशभक्त तांत्रिको के उन पर तंत्र मन्त्र की शक्ति से हमला करने को, आप किस रूप में देखते है इसका निर्णय आप स्वयं लीजिये.
ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे जहाँ गुरु तेग बहादुर ठहरे थे, वहां असम के धुवरी में गुरुद्वारा दमदमा साहब है. 1896-97 के आसपास आए भूकंप में नष्ट होने तक इसकी देखभाल उदासी पुजारियों द्वारा की जाती थी. यहां दो गुरुद्वारे स्थित हैं: एक गुरुद्वारा धारा साहिब या दमदमा साहिब और दूसरा गुरुद्वारा श्री तेग बहादुर साहब.

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