Sunday, 13 August 2023

नेहरू को भारत का प्रधानमंत्री भारत की जनता ने नहीं बल्कि अंग्रेजों ने बनाया था

 ज्यादातर लोग तह समझते हैं कि नेहरू को भारत की सत्ता 15 अगस्त 1947 को मिली थी जबकि हकीकत यह है कि नेहरू को सत्ता 3 सितम्बर 1946 को मिली थी और उन्होंने इस दिन यूनियन जैक क्व सामने इंग्लैण्ड की रानी के नाम की शपथ ली गई थी. दरअसल 3 सितम्बर 1946 को अंग्रेजों ने अंतरिम सरकार का गठन किया था.

अंग्रेजों ने भारत छोड़ने से पहले अपनी बनाई पार्टी "कांग्रेस" को सत्ता सौंपने का निर्णय लिया जिससे कि ब्रिटेन के हितों को कोई नुकशान न पहुंचें. 2 सितम्बर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन किया गया. इस सरकार के अध्यक्ष भी अंग्रेज वायसराय ही थे और उनका ही इस पर पूर्ण नियंत्रण था, इस अंतरिम सरकार के उपाध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू थे.
इस अंतरिम सरकार के बारे में जानने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि द्वतीय विश्वयुद्ध में इंग्लैण्ड और उसके मित्र देशों की जीत भले ही हो गई थी लेकिन इंग्लैण्ड की कमर टूट चुकी थी. भारत सहित सभी कामनवैल्थ देशों पर नियंत्रण रख पाना अब ब्रिटिश सरकार के लिए सम्भव नहीं रह गया था, लेकिन वो सम्मानजनक विदाई चाहते थे.
अंग्रेज नहीं चाहते थे कि - भारत को ब्रिटिश शासन से आजाद कराने का श्रेय किसी भी हाल में भारत के क्रांतिकारियों और आजाद हिन्द फ़ौज को दिया जाए. इसलिए अंग्रेजों ने जाने से पहले अपनी बनाई पार्टी के अंग्रेजी सोंच वालों की सरकार बना दी थी. अंग्रेज चाहते थे कि इनको लगभग एक साल सरकार चलाने की ट्रेनिंग देकर यहाँ से जाएंगे.
अंग्रेजों द्वारा बनाई गई इस कांग्रेसी सरकार में नेहरू सहित कुल 12 सदस्य थे. अंग्रेजों ने 26 अक्टूबर 1946 को इस अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के भी 5 सदस्यों को शामिल कर लिया. मुस्लिम लीग के 5 सदस्यों के लिए स्थान बनाने के लिए कांग्रेस के तीन सदस्यों ने इस्तीफ़ा दे दिया था और दो स्थान पहले से ही रिक्त थे.
इस प्रकार इस अंतरिम सरकार में कुल 14 सदस्य हो गए , जिसमे 9 सदस्य कांग्रेस के और 5 सदस्य मुस्लिम लीग के थे. ये सरकार वायसराय के अधीन ही काम करती थी. इस अंतरिम सरकार ने 3 सितम्बर 1946 से लेकर 14 अगस्त 1947 तक कार्य किया. अंग्रेजों ने किसी भी राष्ट्रवादी पार्टी या संगठन से कोई सदस्य इस अंतरिम सरकार में नहीं लिया.
अंतरिम सरकार के 14 सदस्यों के नाम इस प्रकार से हैं. पंडित जवाहर लाल नेहरु, सरदार वल्लभभाई पटेल, बलदेव सिंह, डा. जॉन, सी.राजगोपालाचारी, सी. एच. भाभा, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आसफ अली, जगजीवन राम, लियाकत अली खान, टी. टी. चुंदरीगर, अब्दुल रब नश्तर, गजान्फर अली खान और जोगेंद्र नाथ मंडल.
इसी पीरियड में जब अलग पापिस्तान बनाने का निर्णय हो गया तो भारत की सत्ता कांग्रेस को सौंप दी गई और मुस्लिम लीग को पापिस्तान की सत्ता सौंप दी गई. इस प्रकार अपने अंग्रेज मालिकों को खुश करके कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने भारत और पापिस्तान की सत्ता आपस में बाँट ली. अब आते है 15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद होने पर,
जब देश का विभाजन तय हो गया तो यह भी तय हो गया कि भारत में सरकार बनाने का मौका कांग्रेस को दिया जायेगा और कांग्रेस का अध्यक्ष या कांग्रेस द्वारा नामित व्यक्ति ही प्रधानम्नत्री बनेगा. उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे मौलाना आजाद लेकिन गांधीजी ने उनसे इस्तीफ़ा ले लिया. कांग्रेस की प्रदेश कमेटियो से प्रस्ताव मांगे गए.
15 में से 12 प्रदेश कमेटियों ने सरदार पटेल के पक्ष में प्रस्ताव रखे तथा शेष तीन ने आचार्य जे. बी. कृपलानी और पट्टाभि सीतारमैय्या का नाम प्रस्तावित किया. आचार्य जे. बी. कृपलानी और पट्टाभि सीतारमैय्या ने अपना नाम खुद वापस ले लिया. इस प्रकार केवल सरदार पटेल ही निर्विरोध मैदान में रह गए. नेहरू को यह पसंद नहीं था कि - वो सरकार में दूसरे नंबर पर हों.
तब गाँधी जी ने सरदार पटेल पर दबाब डाला और उन्हें अपना नाम वापस लेने को मजबूर होना पड़ा. इस प्रकार जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बन गए और उनका कार्यकाल 15 अगस्त 1947 से ही प्रारम्भ हो गया. यूँ तो अंग्रेजों द्वारा सीधे सीधे कांग्रेस और मुस्लिम लीग को भारत और पापिस्तान की सत्ता सौंपना ही गलत था,
लेकिन अगर यह हो भी गया था तो पटेल को प्रधानमंत्री बनना चाहिए था. देश आजाद होने के बाद, देश की जनता द्वारा देश की सरकार को चुना जाना चाहिए था, देश को आजाद कराने का संघर्ष क्रांतिकारियों ने किया था लेकिन आजादी के बाद देश को कौन चलाएगा यह अधिकार भी अंग्रेजों ने अपने पास रखा और अपनी मनपसंद पार्टियों को सत्ता सौंप दी.
देश की जनता उनमे से किसी को चुनती. 1947 से 1952 तक अंग्रेजों द्वारा बनाई गई यही सरकार चलती रही. आजाद भारत में सरकार बनाने का अधिकार जनता को होना चाहिए था न किअंग्रेजों को. सभी पार्टियां चुनाव में खड़ी होतीं और जिसकी बजह से अन्य पार्टियां आक्रोशित भी हुईं. नेहरू ने उन पार्टियों को संतुष्ट करने के लिए हिन्दू महासभा एवं कुछ अन्य पार्टियों के नेताओं को भी अपने मंत्रीमंडल में जगह दी.
जिसमे हिन्दू महासभा से श्यामा प्रसाद मुखर्जी, भारतीय रिपब्लिकन पार्टी से भीम राव अम्बेड्कर, पैंथिक पार्टी के सरदार बलदेव सिंह, जस्टिस पार्टी के आर के शनमुखम चेट्टी, आदि प्रमुख थे. बाद में कश्मीर मामले में नेहरू की नीति से नाराज होकर डॉ. मुखर्जीं से सरकार और हिन्दू महासभा दोनों से इस्तीफ़ा दे दिया।
पहली अंतरिम सरकार इस तरह थी
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1. विस्काउंट वावेल – वायसराय और गवर्नर जनरल इंडिया
2. सर क्लाउड ओचिंलेक – कमांडर इन चीफ
3. जवाहर लाल नेहरू – प्रधानमंत्री और एग्जीक्यूटिव कौंसिल के उप राष्ट्रपति, विदेश मामले और कामनवेल्थ रिलेशन
4. वल्लभ भाई पटेल – गृह मंत्रालय, सूचना और प्रसारण
5. राजेंद्र प्रसाद – खाद्य और कृषि
6. शाफत अहमद खान – कला, शिक्षा और स्वास्थ्य
7. सीएच भाभा – कामर्स
8. बलदेव सिंह – रक्षा
9. वित्त – जान मथाई
10. सी राजगोपालाचारी – उद्योग और आपूर्ति मंत्री
11. जगजीवन राम – श्रम
12. कानून – सैयर अली जहीर
13. आसफ अली – रेलवे औऱ परिवहन, डाक और वायु R
14. शरत बोस – खान और ऊर्जा
मु्स्लिम लीग के सरकार में शामिल होने के बाद 15 अक्टूबर 1946 बदलाव
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1. विस्काउंट वावेल – वायसराय और गवर्नर जनरल इंडिया
2. सर क्लाउड ओचिंलेक – कमांडर इन चीफ
3. जवाहर लाल नेहरू – प्रधानमंत्री और एग्जीक्यूटिव कौंसिल के उप राष्ट्रपति, विदेश मामले और कामनवेल्थ रिलेशन
4. वल्लभ भाई पटेल – गृह मंत्रालय, सूचना और प्रसारण
5. राजेंद्र प्रसाद – खाद्य और कृषि
6. इब्राहिम इस्माइल चुंदरीगर (मुस्लिम लीग) – कामर्स
7. बलदेव सिंह – रक्षा
8. लियाकत अली खान (मुस्लिम लीग) – वित्त
9. जान मथाई -उद्योग और आपूर्ति
10. सी राजगोपालाचारी – शिक्षा
11. गजनफर अली खान (मुस्लिम लीग) – स्वास्थ्य
12. जगजीवन राम – श्रम
13. जोगेंद्र नाथ मंडल (मुस्लिम लीग) – कानून
14. अब्दुलर राब निश्तार (मुस्लिम लीग) – रेलवे और संचार, पोस्ट और वायु
15. सीएच भाभा – खनिज और ऊर्जा
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