Sunday, 13 August 2023

मिजोरम में 5 मार्च 1966 का जनसंहार

कल जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव का जबाब देते हुए 1966 में मिजोरम में हुई बमबारी की घटना का जिक्र किया, तब से लोग इंटरनेट पर उस घटना की जानकारी ढूँढने में लगे हैं. जानकर आश्चर्य होता है कि राष्ट्रवादियों के अलावा अन्य किसी को उस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं है. इसलिए मैं विस्तार से उस घटना पर पोस्ट लिख रहा हूँ.

यह घटना मिजोरम की राजधानी आइजोल की है. 5 मार्च 1966 की सुबह 11 बजकर 30 मिनट पर आसमान में 4 लड़ाकू विमान शहर को चारों ओर से घेर लेते हैं और बम बरसाने लगते हैं. यह किसी दुश्मन देश के नहीं, बल्कि भारतीय वायुसेना के विमान थे. उस समय मिजोरम, असम का हिस्सा था और उसे मिजो हिल्स कहते थे. ये बमबारी 13 मार्च 1966 तक होती रही.
इस कहानी की शुरुआत 6 साल पहले 1960 में हो गई थी. 1960 में केंद्र में नेहरू सरकार के समय ने असम सरकार ने असमिया भाषा को राजकीय भाषा घोषित कर दिया. मिजो लोग इसका विरोध करने लगे. 28 फरवरी 1961 को इसी वजह से मिजो नेशनल फ्रंट यानी MNF बना, इसके नेता लालडेंगा थे. MNF ने शुरुआत में शांतिपूर्वक धरनों से अपनी बात रखी.
1963 में राजद्रोह के आरोप में लालडेंगा को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन कोर्ट ने 1964 उन्हें बरी कर दिया. तब तक नेहरू जी का स्वर्गवास हो चूका था और शास्त्री जी प्रधानमंत्री बन चुके थे. उनके समय में 1964 में असम रेजिमेंट की सेकेंड बटालियन को ही बर्खास्त कर दिया गया, जिसमें अधिकतर मिजो लोग थे. इससे मिजो हिल्स के लोगों में और भी ज्यादा नाराजगी बढ़ गई.
इसी बीच 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया. केंद्र पर दबाब बनाने के लिए लालडेंगा ने शास्त्री जी के नाम एक मेमोरेंडम भेजा कि - मिजो भारत के साथ लम्बे स्थायी और शांतिपूर्ण संबंध रखेगा या दुश्मनी मोल लेगा, इसका निर्णय अब भारत सरकार के हाथ में है'. शास्त्री जी ने उनको आश्वासन दिया कि युद्ध ख़त्म होने के बाद उनकी बात को सुना जाएगा,
लेकिन युद्ध की समाप्ति के समय 11 जनवरी 1966 को शास्त्री जी की मृत्यु (अथवा हत्या) हो गई और इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बन गईं. उन्होंने मिजो लोगों को मांग को एकदम अनसुना कर दिया. तब शांतिपूर्वक धरना प्रदर्शन करने वाला MNF हिंसा पर उतर आया. इसके अलावा जो मिजोवासी सैनिक बटालियन से निकाले गए थे, वे भी MNF में शामिल हो गए.
इन लोगों ने मिलकर मिजो नेशनल आर्मी नाम का सशस्त्र गुट बना लिया. इन लोगों ने फिर सरकार के सामने मांगे रखी लेकिन सरकार ने कोई जबाब नहीं दिया. 28 फरवरी 1966 को मिजो नेशनल फ्रंट ने 'ऑपरेशन जेरिको' शुरू कर दिया. उन लोगों ने सबसे पहले आइजोल और लुंगलाई में असम राइफल्स की छावनी पर हमला किया गया
सबसे पहले आइजोल और लुंगलाई में असम राइफल्स की छावनी पर हमला किया गया. सीमावर्ती नगर चंफाई में वन असम राइफल के ठिकाने पर आधी रात को हमला इतनी तेजी से हुआ था कि जवानों को अपने हथियार लोड करने और लुंगलाई और आइजोल खबर करने तक का समय नहीं मिला. वहीं एक जत्थे ने सरकार खजाने पर धावा बोलकर 18 लाख रुपए लूट लिए.
उग्रवादियों ने सभी हथियार लूट लिए जिसमे 6 लाइट मशीन गन, 70 राइफलें, 16 स्टेन गन और ग्रेनेड फायर करने वाली 6 राइफलें थीं. इसके अलावा एक जूनियर कमीशंड अफसर के साथ 85 जवानों को बंधक बना लिया गया और टेलीफोन एक्सचेंज को नष्ट कर दिया. यहां से किसी तरह से दो सैनिक भागने में कामयाब हुए. इन्ही 2 सैनिकों ने हमले की जानकारी दी,
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सेना को जवाबी कार्रवाई का आदेश दे दिया. 5 मार्च 1966 को वायुसेना के 4 लड़ाकू विमानों को आइजोल में MNF के उग्रवादियों पर बमबारी की जिम्मेदारी दी गई. इनमें 2 लड़ाकू विमान फ्रांस में बने दैसे ओरागन (तूफ़ान) और 2 ब्रिटिश हंटर विमान थे. इन लड़ाकू विमानों ने पहले दिन मशीन गन से उग्रवादियों पर फायर किया.
दूसरे दिन इन लड़ाकू विमानों ने आग लगाने वाले बम बरसाए. वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने आइजोल और अन्य क्षेत्रों में 13 मार्च तक बमबारी की. इस घटना को लेकर विपक्ष ने सरकार को घेरा तो इंदिरा गांधी ने गोलीबारी और बमबारी से साफ़ इंकार कर दिया. उन्होंने 9 मार्च1966 को जबाब दिया कि विमानों को एयरड्रॉप और आपूर्ति के लिए भेजा गया था, बम बरसाने के लिए नहीं,
इस पर तत्कालीन जनसंघ के नेता अटल विहारी बाजपेई ने सवाल उठाया कि राशन / रशद पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टर भेजा जाता है या लड़ाकू विमान. विपक्ष ने सैनिको को आतंकियों से छुड़ाने के लिए सैन्य आपरेसन करने का तो समर्थन किया लेकिन बात यहाँ तक पहुँचने और पूरे आइजोल शहर में नागरिकों पर बमबारी के लिए सरकार की बहुत आलोचना भी की.
सरकार की तरफ से कहा गया कि इस पूरे अभियान में केवल 40 लोगों की जान गई, जिनमे 27 तो केवल आतंकी ही थे और केवल 13 ही आम नागरिक थे. लेकिन स्थानीय लोग बताते है कि - हमारे छोटे से शहर को अचानक 4 लड़ाकू विमानों ने घेर लिया था, गोलियों और बम चलाये गए जिसमे सैकड़ों लोग मारे गए हुए दर्जनों घर जल कर ढह गए.
जब विपक्ष ने दबाब बनाया तो सरकार ने इसका दोष पायलटों पर डाल दिया. आधिकारिक बयान दिया गया कि - विमानों को एयरड्रॉप और आपूर्ति के लिए भेजा गया था, बम बरसाने के लिए नहीं. अति उत्साह में फायरिंग करने वाले दो पायलटों से इस्तीफ़ा भी ले लिया गया. इसके बाद मामला धीरे धीरे शांत हो गया. लेकिन मिजोरम के लोगों में गुस्सा बना रहा.
केंद्र सरकार मिजोरम में लगातार क्रूर बनी रही. 1967 में एक योजना लागू की गई, जिसके तहत गांवों का पुनर्गठन किया गया. इसमें पहाड़ों पर रहने वाले मिजोवाशियों को उनके गांवों से हटाकर मुख्य सड़क के दोनों ओर बसाया गया, ताकि भारतीय प्रशासन उन पर नजर रख सके. मिजोरम के कुल 764 गांवों में से 516 गांवों के निवासियों को उनकी जगह से हटाया गया.
मिजोरम में अगले पूरे दशक तक अशांति छाई रही. 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार आई तब एक बार फिर मिजोरम वाशियों से संवाद लागू कर उन्हें मुख्य धारा में शामिल करने की कोशिश की गई जिसकी पहल जनसंघ के नेता अटलजी की तरफ से की गई, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से मोरारजी देसाई सरकार ने अटल जी को इस मामले में आगे बढ़ने से रोक दिया.
बताया जाता है कि गठबंधन के साथी वामपंथी नहीं चाहते थे कि दक्षिणपंथी नेता नार्थईस्ट के मामले में इंटरफेयर करें. उनको कहा गया कि आप अपना विदेश मंत्रालय सम्हालिए हर मामले में हस्तक्षेप मत कीजिये. 1980 में फिर इंदिरा गांधी की सरकार बन गई और फिर मिजोरम की उपेक्षा की गई जिसके कारण मिजोरम की आम जनता भी आतंकवादियों का समर्थन करने लगी.
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने. 30 जून 1986 को केंद्र सरकार और MNF के बीच ऐतिहासिक मिजो शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुएम. इसे राजीव गांधी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है. 1987 में मिजोरम अलग राज्य बना. इसी साल मिजोरम में पहली बार चुनाव हुए और लालडेंगा मिजोरम के पहले मुख्यमंत्री बने.
यह भी बताया जाता है कि जिन दो पायलट से इस्तीफ़ा लिया गया था उनके नाम थे - राजेश पायलट और सुरेश कलमाड़ी. मिजोरम की जनता और विपक्ष को शांत करने के लिए इनसे इस्तीफ़ा लिया गया था लेकिन इनको इसके बदले में कांग्रेस पार्टी में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया था. आज भी 5 मार्च को पूरा मिजोरम शोक दिवस मनाता है

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