Thursday, 2 February 2023

स्वाधीनता सेनानी सुहासिनी गांगुली

स्वाधीनता सेनानी "सुहासिनी गांगुली" का जन्म खुलना में हुआ. उनके पिता का नाम अविनाश चन्द्र गांगुली और माता का नाम "सरला सुन्दरी देवी" था. उन्होंने 1924 में ढाका ईडन हाईस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की और उसके बाद ईडन कालेज से स्नातक बनीं.

एक तैराकी स्कूल में तैराकी सीखने के दौरान वे "कल्याणी दास" और "कमला दासगुप्ता" नाम की क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आईं. उनसे प्रभावित होने के बाद 1929 में वे भी क्रांतिकारी संगठन "विप्लवी दल" की सदस्य बन गई और क्रांतिकारी कार्यों का प्रशिक्षण लेने लगीं.
वे उस जमाने में स्नातक तक शिक्षित थी जब महिलाओ तो दूर पुरुषों का भी स्नातक होना बहुत बड़ी बात माना जाता था. विप्लवी दल के नेता "रसिक लाल दास" और "हेमन्त तरफदार" उनकी शिक्षा और बुद्धिमत्ता से बहुत प्रभावित थे. बहुत जल्द ही वे प्रशिक्षार्थी से प्रशिक्षक बन गईं.
18 अप्रैल 1930 की रात में महान क्रांतिकारी मास्टर सूर्यसेन के नेतत्व में उनकी "इंडियन रिपब्लिक आर्मी" ने "चटगांव" में अंग्रेजों के दो शस्त्रागारों को लूट लिया था. इसके बाद इंडियन रिपब्लिक आर्मी के बाहर से सदस्य पुलिस की धर-पकड़ से बचने के लिए चन्द्रनगर चले गये.
इन क्रांतिकारियों को पुलिस से छुपाने के उद्देश्य से सुहासिनी गांगुली भी कलकत्ता से चंद्रनगर पहुँचीं. वहां पहुंचकर एक स्कूल में पढ़ाने का कार्य ले लिया और अपने घर को क्रांतिकारियों की शरणस्थली बना दिया. मास्टर सूर्यसेन के साथी "शशिधर आचार्य" उनके पति बनकर रहने लगे.
किसी को संदेह न हो इसलिए वे दिन भर एक सामान्य अध्यापिका के रूप में स्कूल में जाती थीं और घर में शशिधर आचार्य की छद्म पत्नी बन कर रहती थीं. स्कूल के बाद क्रांतिकारियों के संदेश एक दूसरे तक पहुंचाने के लिए स्कूल के बच्चों के अभिभावकों से भी लिया करती थी.
वे इन संदेशों को अपने चयनित बच्चों को देतीं, वे बच्चे अपने अभिभावक को देते, अभिभावक उस सन्देश को क्रांतिकारी तक पहुंचाते और उनका सन्देश लाकर बच्चों को देते और बच्चे अपनी सुहासिनी दीदी को देते. वे बंगाल के सभी क्रांतिकारियों की दीदी बन चुकी थीं.
गणेश घोष, लोकनाथ बल, जीवन घोषाल, हेमन्त तरफदार, आदि जैसे क्रांतिकारी उनके रिश्तेदार बनकर उनके यहाँ आकर क्रान्ति को आगे बढ़ाने पर बिचार किया करते थे. परन्तु अत्यंत सावधानी बरती जाने के बाबजूद सरकारी अधिकारियों को उनपर संदेह हो गया.
उस घर पर चौबीसों घंटे निगाह रखी जाने लगी. 1 सितम्बर 1930 को पुलिस ने उनके मकान पर घेरा डाल दिया गया. इस मुठभेड़ में जीवन घोषाल पुलिस की गोली से वीरगति को प्राप्त हो गए. सुहासिनी गांगुली और श्री शशिधर आचार्य को गिरफ्तार कर लिया गया.
उन्हें हिजली जेल भेज दिया गया. जहाँ से आठ साल की लम्बी अवधि के बाद वे 1938 में रिहा की गईं. 1942 के आन्दोलन में उन्होंने फिर से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया फिर जेल गईं और 1945 में छूटीं. उन दिनों हेमन्त तरफदार धनबाद के एक आश्रम में संन्यासी भेष में रह रहे थे.
रिहाई के बाद सुहासिनी गांगुली भी उसी आश्रम में पहुँच गईं और आश्रम की ममतामयी सुहासिनी दीदी बनकर वहीं रहने लगीं. बाकी का अपना जीवन उन्होंने इसी आश्रम में बिताया. भारत की आज़ादी उनके जीवन का सबसे बड़ा सपना था, जिसके लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया.
23 मार्च 1965 को उनका स्वर्गवास को गया परन्तु अफसोश की बात है कि - देश की खातिर अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले त्यागियों की, साहसिक गाथाओं को, अंग्रेजों की बनाई पार्टी द्वारा मचाये गए चरखे के शोर में दबा दिया गया. इस त्याग की देवी को उनके जन्मदिवस पर सादर नमन

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