Sunday, 26 March 2023

देश के महापुरुषों का क्षेत्र, जाति और धर्म के नाम पर बंटवारा

बहुत ही दुःख की बात है कि आजकर देश के उन महापुरुषों का बंटवारा भी क्षेत्र, जाति और धर्म पर किया जाने लगा है, जिन महापुरुषों ने क्षेत्र, जाति और धर्म से ऊपर उठकर अपना सर्वस्व देश के लिए न्योछावर कर दिया था. आज अगर वे महापुरुष कहीं स्वर्ग से धरती पर देखते होंगे तो यह सब देखकर उनकी आत्मा निश्चित रूप से आहत होती होगी

जिन चंद्र शेखर आजाद ने अपना सरनेम "आजाद" बना लिया था उनको आज तिवारी बताया जाने लगा है, जिन राम प्रसाद ने अपना सरनेम विस्मिल रख लिया था उनको "तोमर" बताया जाने लगा है, जिन उधम सिंह ने अपना पूरा नाम ही राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था उनको आजकल उधम सिंह काम्बोज लिखकर उन्हें काम्बोज जाति का गौरब बताया जा रहा है.
इसी प्रकार भगत सिंह के साथ संधू, सुखदेव के साथ थापर, आदि लगाने पर जोर दे रहे हैं. राजगुरु को मराठी ब्राह्मण, सुभाष चंद्र बोस को कायस्थ गौरव, श्याम कृष्ण वर्मा को वर्माओ का महापुरुष, अशफाक उल्ला खान को मुसलमानो का प्रतिनिथि, विरसा मुंडा को वनवासी समुदाय का भगवान्, गांधी जी को गुजरातियों का नेता बताने का भी प्रयास हो रहा है.
कुछ महापुरुषों पर तो कई लोगों ने दावा कर रखा है जैसे भगत सिंह पर सिक्खों के अलावा जाट और आर्य समाजी भी दावा करते और पाकिस्तान के लोग भी उनको अपना बताकर उनपर भारतीयों के दावे को ख़ारिज करने लगते हैं. इसी प्रकार सुभाष चन्द्र बोस को लेकर बंगाल और उड़ीसा के लोग अपना अपना दावा करते भी दिखाई देते हैं ?
क्या ये महापुरुष किसी केवल एक क्षेत्र विशेष, जाति विशेष, किसी पार्टी विशेष या धर्म विशेष के महापुरुष हैं ? जी नहीं, ये सभी सारे देश के ही महापुरुष हैं और उनका जीवन सारे देश के लिए ही समर्पित था. इन्होने जो कुछ भी किया था किसी क्षेत्र विशेष, जाति विशेष या धर्म विशेष के लिए नहीं किया था बल्कि सारे देश के लिए किया था.
भगत सिंह लाहौर में रहते थे और जिस दल से जुड़े थे वह दल मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश का था. इस दल की स्थापना राम प्रसाद विस्मिल ने की थी, राम प्रसाद विस्मिल के बलिदान के बाद इसका नेतृत्व चंद्र शेखर आजाद ने सम्हाल लिया था. इस दल में पंजाब से सुखदेव, महाराष्ट्र से राजगुरु, बंगाल से योगेश चन्द्र चटर्जी, आदि प्रमुख क्रांतिकारी थे.
लुधियाना के रहने वाले हिन्दू महासभा के नेता लाला लाजपत राय पर जब अंग्रेजों ने लाठिया चलाई तो उनके बलिदान का बदला लेने के सारे देश के युवा उतावले हो गए थे और चंद्र शेखर आजाद के नेतृत्व में भगत सिह, सुखदेव, राजगुरु, आदि ने सांडर्स का वध कर दिया और जब इनको लाहौर से निकालना था तो दुर्गा भाभी उनको अपने साथ बंगाल ले गई.
अलग अलग पाटियों के लोग अलग अलग बिचार धारा के थे उसके बाबजूद वो एक दूसरे के रास्ते में रुकावट नहीं डालते थे बल्कि तमाम विरोधाभाष के बाबजूद एक दूसरे को सहयोग भी करते थे. लेकिन आज कुछ स्वार्थी लोग देश के इन महापुरुषों को जाति, धर्म, क्षेत्र, राजनैतिक विचारधारा, आदि के नाम पर बांटने में लगे हुए हैं.
जिन महापुरुषों ने देश के अलावा कुछ नहीं सोंचा उनका इस तरह से बँटबारा करना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है. और मैं एक बात और कहना चाहता हूँ कि जो लोग महापुरुषों का इस तरह से बँटबारा करते हैं, अगर उनके पुरखों का इतिहास निकालेंगे तो उनमे से ज्यादातर अंग्रेजों की नौकरी करने वाले कर्मचारी निकलेंगे या फिर अंग्रेजों के चापलूस जमींदार रहे होंगे.

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