आप चाहे कुछ भी कर लें लेकिन मजदूर वर्ग को शराब पीने से नहीं रोक सकते. वो कुछ भी करके किसी भी तरह से नशा करने का जुगाड़ कर ही लेता है. उसकी इस लत का फायदा माफिया तथा भ्रष्ट नेता और पुलिस वाले अक्सर उठाते रहते हैं.
शराब की मैन्युफैचरिंग कास्ट ज्यादा नहीं होती है बल्कि ब्रांडेड शराब पर बहुत ज्यादा टैक्स हैं जिसके कारण यह बहुत महंगी मिलती है. गरीब लोग सस्ती शराब के लिए कच्ची शराब बनाने वालों के पास से शराब खरीद कर पीते हैं जो कई बार जहरीली भी बन जाती है.
शराब एल्कोहल से बनती है. शराब बनाने के अलाबा इंडस्ट्रियल और लैब यूज के लिए जो स्प्रिट बेचीं जाती है उसमे एल्कोहल में कॉपर सल्फेट (तूतिया) नाम का जहरीला पदार्थ मिला दिया जाता है जिससे कि लोग उसका शराब की तरह उपयोग न करे.
दबंद लोग इसी स्प्रिट से सस्ती शराब बना कर बेचते हैं. यह लोग नौशादर से स्प्रिट को फाड़कर, उसे निथार लेते है और उसमे पानी मिलाकर बेचते हैं. इनके पास कोई टेस्टिंग सिस्टम तो होता नहीं है, बस इतना देखते है कि नीला रंग ख़त्म हो जाये.
ऐसे में कई बार नीला रंग तो ख़त्म हो जाता है लेकिन कॉपर सल्फेट (तूतिया) पूरी तरह से समाप्त नहीं होता है. तब वह शराब जहरीली रह जाती है. अक्सर शराब पीकर मरने की जो खबर आती है वो ऐसी ही जहरीली शराब के कारण आती है.
अंग्रेजी शराब पर भले ही ज्यादा टैक्स रखा जाये लेकिन अगर आप गरीब मजदूरों की जान वास्तव में बचाना चाहते हो तो ब्रांडेड देसी शराब पर से टैक्स कम करना चाहिए और उसे कम कीमत में शराब के ठेकों पर उपलब्ध कराना चाहिए.
इसके अलाबा सस्ती शराब बनाने के लिए कुछ लोग इसमे नशीली गोलियां और ज्यादा पानी मिला देते हैं. ब्रांडेड देशी शराब की कीमत ऐसे ही बढ़ती रही तो नकली जहरीली शराब से होने वाली मौतों की संख्या सम्हाले नहीं सम्हलेगी
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