Tuesday, 26 July 2022

सोमनाथ मंदिर

सोमनाथ मंदिर की गिनती, 12 ज्योतिर्लिंगों में होती हैं ज्योतिर्लिंगों की गणना करते समय इसे प्रथम स्थान पर रखा जाता है. यह गुजरात के सौराष्ट्र के प्रभास क्षेत्र के वेरावल में स्थित है. इसका जिक्र ऋग्वेद में भी है. इस प्राचीन मंदिर की सेवा, पुनरुद्धार और सौंदर्यीकरण प्राचीन राजा तथा सेठ लोग सहस्त्राब्दियों से करते आ रहे थे.

ज्ञात इतिहास की बात करें तो मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया था. इसकी भव्यता और महत्वता के कारण इस मन्दिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी. तब आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर "जुनायद" ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी और मंदिर को काफी क्षति पहुंचाई.
उसके बाद प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निमाण किया. अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विस्तार से वर्णन किया. अलबरुनी से मंदिर की भव्यता और महिमा की बात सुनकर, खुद को इस्लाम का प्रचारक कहने वाले "महमूद गजनवी" ने सन् 1024 में मन्दिर पर हमला कर दिया.
महमूद गजनवी की सेना ने मंदिर का सारा धन, सोना, जवाहरात, लूट लिए और हजारों शिवभक्तों का क़त्ल कर दिया तथा मंदिर को तोड़ दिया. महमूद गजनवी के मन्दिर लूटने के बाद, राजा भीमदेव ने पुनः उसकी प्रतिष्ठा की. सन् 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मन्दिर की प्रतिष्ठा और उसके पवित्रीकरण में भरपूर सहयोग किया.
1168 ई. में विजयेश्वर कुमारपाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मन्दिर का सौन्दर्यीकरण करवाया था. सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुलतान अलाऊद्दीन खि़लजी ने गुजरात पर कब्जा किया, तो उसने भी इस मंदिर को भारत में इस्लाम के प्रचार बाधा कहते हुए, सोमनाथ पर हमला किया और मंदिर को तोड़ डाला.
उसके सेनापति नुसरत खां ने जी भरकर मन्दिर को लूटा और कत्लेआम किया. उसके बाद फिर हिन्दुओ ने इसका पुनर्निर्माण किया. सन् 1395 ई. में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने भी मन्दिर को विध्वंस किया. अपने पितामह के पद चिह्नों पर चलते हुए उसके पोते अहमदशाह ने पुनः सन् 1413 ई. में सोमनाथ मन्दिर को तोड़ डाला.
तब तक भारत की अनेको रियासतों पर मुस्लिम राजाओं का कब्जा हो चुका था. जगह जगह मंदिर तोड़े जाने लगे थे. हिन्दुओं को अपनी जान, इज्ज़त और धर्म को बचाना मुस्किल पड़ रहा था. फिर भी हिन्दुओ ने मंदिर को बचाय रखा और पूजन करते रहे. धीरे धीरे यह मंदिर फिर भव्य हो गया और प्राचीन गौरव को पा गया.
लेकिन इसी बीच आगरा में, अपने भाइयों और भतीजों की ह्त्या कर तथा अपने पिता और बहन को कैद में डालकर "औरंगजेब" राजा बन गया. उसने अपने परिवार पर किये गए अत्याचारों को ढांकने के लिए, कट्टर इस्लाम का सहारा लिया. अपने भाइयों भतीजों को काफिर तथा आपको इस्लाम का प्रचारक बताया, जिससे लोग उसके अपराधों को भूल जाए.
इसके लिए वो कभी टोपियाँ सिलने का, तो कभी कुरआन की कापियां लिखने नाटक करता और लोगों को यह जताता कि- वह आपना जीवन यापन इनको बेचकर करता है. अपनी कट्टरता को साबित करने के लिए उसने देशभर में सैकड़ों मंदिरों को नष्ट कर दिया. औरंगजेब ने 1706 ई में सोमनाथ पर हमला किया और उसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया.
इससे पहले सोमनाथ पर जितने हमले हुए उनमे मंदिर को लूटा गया था लोगों का क़त्ल हुआ था, लेकिन ज्योतिर्लिंग को नुकशान नहीं पहुंचाया गया था. लेकिन औरंगजेब ने मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया और शिवलिंग को भी खण्डित कर दिया. औरंगजेब ने वहां पर एक चौकी बनवा दी , जिससे कोई हिन्दू उस स्थान पर जाकर पूजा न कर सके.
औरंगजेब वहां मस्जिद बनाना चाहता था. उसने मंदिर तोड़ने के बाद उसपर मस्जिद जैसा गुम्मद बनवा भी दिया था, परन्तु कुछ महीने बाद (मार्च 1707) ही "औरंगजेब" की दर्दनाक मौत हो गई थी. इसी बीच राजपूतों, मराठों और बुंदेलों की ताकत इतनी बढ़ गई कि - औरंगजेब के वारिस वहां पर मस्जिद का निर्माण करने कोशिश भी न कर सके.
औरंगजेब की मौत के बारे में कहा जाता है हैं कि - वीर छत्रसाल से हुई एक लड़ाई में, छत्रसाल ने अपने गुरु "प्राणनाथ" के दिए हुए, एक विशेष दवा लगे हुए खंजर से "औरंगजेब" को एक घाव दिया था जो उस दबा के कारण बाद में नासूर बन गया था और जिसके कारण "औरंगजेब" की कइ माह तक तड़पते हुए मौत हुई.
औरंगजेब की म्रत्यु के बाद इंदौर की शिवभक्तन महारानी अहिल्याबाई बाई होलकर में सन् 1783 ने सोमनाथ के मंदिर का पुनर्निर्माण कर " ज्योतिर्लिंग पूजा" प्रारंम्भ करवाई. उसके बाद से सोमनाथ मंदिर में पूजा अनवरत चल रही है. लेकिन वहां पर भव्य मंदिर के बजाय टुटा -फूटा मंदिर और भग्नावशेष ही बचे थे.
15 अगस्त 1947 को देश के आजाद होते ही प्रथम राष्ट्रअध्यक्ष डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद और गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने देश के स्वाभिमान को जाग्रत करने के लिए ध्वस्त पड़े हुए "सोमनाथ मन्दिर" के स्थान पर, भव्य मंदिर के पनर्निर्माण का संकल्प लिया और बहुत ही कम समय में अत्यन्त भव्य निर्माण करवा दिया.
1970 में जामनगर की राजमाता ने अपने स्वर्गीय पति "दिग्विजय सिह" की स्मृति में मंदिर के आगे पूर्व दिशा में उनके नाम पर भव्य एवं सुन्दर दिग्विजय द्वार बनवाया. बाद में दिग्विजय द्वार के सामने थोड़ी दूरी पर सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा भी स्थापित की गई. आज यह मंदिर, भारत और भारतीयों की स्वतंत्रता का सबसे बड़ा प्रतीक है.
सरदार पटेल उन सभी मंदिरों के पुनरुद्धार के इच्छुक थे, जो गुलामी के समय में तोड़ दिए गए थे. यदि नेहरु के बजाय सरदार पटेल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने होते अथवा उनकी असमय (संदिग्ध) म्रत्यु नहीं हुई होती तो आज भारत की एक अलग ही गौरवशाली तश्वीर होती. अयोध्या, मथुरा, काशी, इत्यादि के लिए इतना संघर्ष नहीं करना पड़ता.

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