Monday, 25 July 2022

क्या सचमुच "ज्वाला माता" के मंदिर में अकबर ने सोने का छत्र चढ़ाया था ?

मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक, यह "ज्वालामुखी मंदिर" हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में स्थित है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी. यहां माता ज्वाला के रूप में विराजमान हैं और भगवान शिव यहां उन्मत भैरव के रूप में स्थित हैं. मुख्य मंदिर में माता की कोई मूर्ति नहीं है.

एक बड़े से हाल जैसे स्थान पर भूमि से अलग-अलग 9 स्थानों पर ज्वाला प्रकट हो रही है, उसे ही माँ का स्वरूप मान कर हिन्दू उनकी पूजा करते हैं. सबसे बड़ी ज्वाला को ज्वाला माता कहते है और अन्य 8 ज्वालाओं को अन्नपूर्णा, विध्यवासिनी, चण्डी देवी, महालक्ष्मी, हिंगलाज माता, सरस्वती, अम्बिका एवं अंजी माता का स्वरूप माना जाता है

कहा जाता है कि - बाबा गोरखनाथ ने यहाँ माता की साधना की थी. जब उनकी साधना से प्रसन्न होकर माता ने दर्शन दिए तो बाबा गोरखनाथ ने माता से कहा - आप पानी गर्म करके रखे तब तक मैं भोजन का प्रबंध करके आता हूँ. आप बचन दें कि जब तक मैं वापस नहीं आ जाता आप यहाँ से वापस नहीं जाएंगी माता ने उन्हें इसका बचन दे दिया.
लेकिन उसके बाद बाबा गोरखनाथ वहां वापस नहीं आये. तब से लेकर आज तक माता ज्वाला के रूप में वहां विराजमान है. इस स्थान के पास ही गोरखडिब्बी मंदिर है. यहाँ बने कुंड से भाप निकलती रहती मान्यता है कि कलयुग के अंत में गोरखनाथ मंदिर वापस लौटकर आएंग. तब तक गोरखनाथ को दिए बचन को निभाने के लिए ज्वाला माता यहीं तहेंगी
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि- अकबर ने ज्वाला माता के मंदिर के पुजारियों को बहुत सताया और जलती ज्वाला को बुझाने की बहुत कोशिश की और जब वह अपने प्रयास में असफल रहा तो माता के चमत्कार से प्रभावित होकर नंगे पैर माँ के दर्शन करने आया और माता पर सोने का छत्र चढ़ाया साथ ही मंदिर को कई सौ बीघा भूमि दान दी.
जबकि ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार यह गलत है. अकबर मूर्ति पूजक नहीं बल्कि मूर्ति-भंजक था, उसने लाखों निर्दोष हिन्दुओं की हत्या करवाई और महिलाओं को बेइजजत किया. उसमे सनातन धर्म को मिटाने के अनेक प्रयास किये. जब कामयाब नहीं हुआ तो इस्लाम और हिन्दू के बीच का नया धर्म दीन इलाही चलाने की कोशिश की
ऐतिहासिक तथ्यो के अनुसार अकबर ने नगरकोट, नूरपुर और चम्बे पर हमला किया था. उसी दौरान अकबर ज्वाला मंदिर की ज्योति को बुझाने के प्रयास भी किये थे. इसमें असफल रहने के बाद वह मंदिर का विध्वंस करवा कर चला गया था. उसने वहां के सभी सेवादारों और पुजारियों की हत्या की और ज्योति स्थल को शिलाओं से ढंककर चला गया.
बाद में चंबा के राजा संसार चंद ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था. उसके बाद 1835 में महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर पर सोने का छत्र लगवाया था साथ ही महाराजा के पुत्र शेरसिंह ने मंदिर के मुख्य द्वार को चांदी से सजवाया. उसके बाद स्थानीय भक्तों और व्यापारियों ने समय समय पर इस स्थान का सौंदर्यकरण किया.
अकबर द्वारा माता के मंदिर में सोने का छत्र चढाने की कथा हिन्दू बिरोधियों ने हिन्दुओं को बहलाने के लिए शुरू कर दी और इस कथा के द्वारा अकबर की विध्वंशक कार्यवाहियों के बारे में तो बताया जाता है साथ ही उसका गलती मान लेना भी बताया जाता है. ऐसा बताने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि - अकबर की विध्वंशक कार्यवाहियों पर पर्दा डाला जा सके.
ज्वाला माता के मंदिर के विध्वंश को लेकर एक कहानी यह भी चलती है कि - मंदिर की ज्योति बुझाने में नाकाम रहने पर अकबर ने वहां के ध्यानु भगत के घोड़े की गर्दन कटवा दी और कहा कि ध्यानु अपनी माता से कहकर उसे जुड़वाये. तब ध्यानु भगत ने माता को अपनी गर्दन काट कर भेंट कर दी और माता ने ध्यानु और घोड़े दोनों को जिन्दा कर दिया.

जबकि अनेकों लोगों का यह मानना है कि - अकबर ने अपनी सेना द्वारा मंदिर के सभी पुजारियों और सभी सेवादारों की हत्या करवा दी थी. लेकिन बाद में अकबर के चापलूस हिन्दू दरबारियों ने अकबर के गुनाह पर पर्दा डालने के लिए यह कहानी प्रचारित कर दी कि - ध्यानु भगत ने खुद अपनी गर्दन काटकर चढ़ाई थी जिसे माता ने जोड़ भी दिया था.

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