स्कूली किताबों में बताया जाता है कि- दिल्ली को शाहजहां ने बसाया था और उसी ने दिल्ली में लाल किले का निर्माण कराया था. वामपंथी इतिहासकार ऐसे झूठ कैसे बोल लेते हैं, सोंचकर आश्चर्य होता है. दिल्ली कब और कैसे तथा उजड़ी इस पर बाद में विस्तार से लिखूंगा, फिलहाल इस पर संक्षिप्त चर्चा कर "लाल किले" पर मुख्य चर्चा करते हैं.
बताया जाता है कि- अकबर के पोते शाहजहाँ ने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित किया और उसका नाम शाहजहानाबाद रखा, लेकिन यह नहीं बताया जाता है कि- आखिर उसने राजधानी को दिल्ली स्थानांतरित क्यों किया था ? अगर शाहजहाँ ने ही दिल्ली को बसाया था तो सैकड़ों साल पहले तैमूर ने आखिर किसको लूटा था ?
वास्तविकता यह है कि - दिल्ली का इतिहास बहुत पुराना है. दिल्ली को सबसे पहले इच्छ्वाकू वंश के राजा "महाराज दिलीप" ने बसाया था. उनके नाम से ही इसका नाम "दिल्ली" पडा था. उनके वंशजो द्वारा अपनी राजधानी अयोध्या ले जाने के बाद दिल्ली उजड़ गई, द्वापर युग में पांडवों ने इसे पुनः बसाया और नाम दिया "इन्द्रप्रस्थ".
कालान्तर में दिल्ली और अयोध्या दोनों ही उजड़ गए. तब प्राचीन काहनियों के आधार पर, उज्जैन के राजा वीर विक्रमादित्य ने दिल्ली और अयोध्या को पुनः खोजा और उनको फिर से बसाया. उन्होंने अयोध्या को खुबसुरत नगर बनाया तथा दिल्ली के पास महरोली में विशाल बेधशाला स्थापित की, जहाँ वराहमिहर तारों का अध्ययन करते थे.
उनके कुछ बर्षों के बाद 9 वीं शाताब्दी में, तोमर वंश के राजाओं ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया. तोमर वंश का राज 900 से 1200 ई. तक माना जाता है. यह तोमर राजा अपने आपको अर्जुन पुत्र अभिमन्यु का वंशज मानते थे. महरोली (लाल कोट) महाराजा अनंगपाल की राजधानी थी. उन्होंने लाल किले के रूप में नई राजधानी बनाना प्रारम्भ किया
परन्तु लाल किला बनाने का पूरा नहीं सका. पहले जयचन्द और पृथ्वीराज के विवाद के कारण और उसके बाद मोहम्मद गौरी के हमले के बाद वहां कुरुबुदीन का राज हो गया. काफी समय तक लालकिला अधूरा पड़ा रहा. लालकिले को बाद में औरंगजेब ने पूरा किया और मुगलों की राजधानी बनाया लेकिन इसे अपने पिता का सपना कहकर प्रचारित किया.
इसका प्रमाण "तारीखे फिरोजशाही" है. इसके के पृष्ट संख्या 160 (ग्रन्थ-3 ) में लेखक लिखता है कि- सन 1296 के अंत में जब "अलाउद्दीन खिलजी" अपनी सेना लेकर "दिल्ली" आया, तो वह अधूरे पड़े "कुश्क-ए-लाल" ( लाल किला) में ही ठहरा. अकबरनामा और अग्निपुराण में भी लिखा है कि- महाराज अनंगपाल ने एक भव्य "दिल्ली" का निर्माण करवाया था.
अकबरनामा में, 1398 ईस्वी में "तैमूरलंग" द्वारा आलीशान दिल्ली को लूटने का जिक्र है. उसमे लिखा है कि -15 दिनो तक दिल्ली में लूटमार करने के बाद "तैमूर" हरिद्वार को लूटने निकल पडा था. तैमूर का दिल्ली पर हमला शाहजहाँ से लगभग ढाई सौ साल पहले हुआ था. इससे साफ़ पता चलता है कि - दिल्ली और लालकिला शाहजहाँ से पहले भी थे.
शाहजहाँ ने राजधानी, आगरा से दिल्ली लाते समय केवल थोड़े से फेर बदल ही किये थे. लालकिले के एक खास महल मे वराह (सुअर) के मुँह वाले, चार प्राचीन नल आज भी लगे हुए हैं. किले के एक द्वार पर बाहर हाथी की मूर्ति है क्योंकि राजपूत राजा हाथियों के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात थे. जबकि इस्लाम जीवित प्राणी के मूर्ति का विरोध करता है.
लालकिला के दीवाने खास मे केसर कुंड नाम का एक कुंड बना हुआ है, जिसके फर्श पर हिंदुओं मे पूज्य कमल पुष्प अंकित है. पूरे लालकिले में कही भी गुंबद या मीनार का कोई अस्तित्व तकनही है जो मुस्लिमों ख़ास प्रिय होते हैं. दीवाने ख़ास और दीवाने आम की मंडप शैली पूरी तरह से 984 ईस्वी के अंबर के भीतरी महल (आमेर-पुराना जयपुर) से मिलती है.
लालकिले से कुछ ही दूरी दो देवालय बने हुए हैं जो कि शाहजहाँ से कई शताब्दी पहले राजपूत राजाओं के बनवाए हुए है. जिनमे से एक लाल जैन मंदिर और दूसरा गौरीशंकार मंदिर है. पुरानी दिल्ली के आसपास की आवादी हिन्दू ही थी / है, जिनके पूर्वज शाहजहा के दिल्ली आने से भी पहले से ही वहां बसे हुए थे.
प्रथ्वी राज चौहान के साथी, कवि चंदबरदाई के प्रशिद्ध ग्रन्थ " प्रथ्वीराज रासो" में लालकिले और पुरानी दिल्ली का जिक्र बारबार आया है. शाहजहाँ काल के केवल एक शिलालेख जिसमे कुछ स्पष्ट भी नहीं है उसके आधार पर वामपंथी इतिहासकारों ने लालकिले को "शाहजहां द्वारा निर्मित करार दे दिया गया है.
"गर फ़िरदौस बरुरुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्ता,हमीं अस्ता, हमीं अस्ता"
अर्थात-- "इस धरती पे अगर कहीं स्वर्ग है तो यही है, यही है, यही है"
अर्थात-- "इस धरती पे अगर कहीं स्वर्ग है तो यही है, यही है, यही है"
इस अनाम शिलालेख के आधार पर लालकिले को शाहजहाँ द्वारा बनवाया साबित करना उन तथाकथित इतिहासकारों की नीयत को प्रदर्शित करता है. जो निर्माताओं के नाम को छुपाते है तथा लुटेरों और विध्वंशको को निर्माता बताते हैं. लालकिले में ही आज भी अनेकों ऐसे प्रमाण है जो चीख-चीख कर इसके लाल कोट होने का प्रमाण देते है.
दरअसल राजा अनंगपाल तोमर की असमय मृत्यु के कारण किले का निर्माण कार्य रुक गया था और किला अधूरा रह गया था. राजा अनंगपाल के कोई बेटा नहीं था बल्कि दो बेटियां थी. बड़ी बेटी का बेटा था कन्नौज का राजा जयचंद और छोटी बेटी का बेटा था अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान. अनंगपाल के बाद पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का राजा घोषित किया गया परन्तु उनका मौसेरा बड़ा भाई कन्नौज का राजा जयचंद दिल्ली का राजा बनना चाहता था.
अपने पिता को कैद करने अपर अपने भाइयों और भतीजो की ह्त्या करने के कारण आगरा की जनता ने औरंगजेब को कभी सम्मान नहीं दिया। तब औरंगजेब ने अपनी राजधानी को दिल्ली ले जाने का निर्णय लिया. औरंगजेब दिल्ली वालों को यह जता रहा था कि अपने पिता का कितना आदर करता है और अपने पिता के आदेश पर किले को तैयार कर रहा है.
शाहजाहा आगरा का राजा था. शाह्जहां अपने बाद अपने बड़े बेटे "दारा" को आगरे का राजा बनाना चाहता था. 1652 में शाहजहाँ बहुत ही गंभीर रूप से बीमार हो गया था और ऐसा लगने लगा कि बचना मुश्किल है, तब दारा और औरंगजेब में सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो गया. 1658 में औरंगजेब ने अपने भाई और भतीजों को क़त्ल करके पिता शाहजहाँ को कैद कर दिया. और खुद आगरे का राजा बन गया.
आगरे में औरंगजेब को कभी सम्मान नहीं मिला. तब उसने अपनी राजधानी को दिल्ली ले जाने का निर्णय लिया और पुराने लालकिले का जीर्णोद्धार कराया. आगरा से 21 साल शासन चलाने के बाद औरंगजेब 1679 में अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली ले गया.दिल्ली वालों की नजर में अपने आपको अपने पिता का आज्ञाकारी बेटा साबित करने के लिए ऐसा कर रहा था जबकि उनदिनों उसका बाप आगरे के लालकिले में कैद था और पानी को भी तरस रहा था
शाहजाहा आगरा का राजा था. शाह्जहां अपने बाद अपने बड़े बेटे "दारा" को आगरे का राजा बनाना चाहता था. 1652 में शाहजहाँ बहुत ही गंभीर रूप से बीमार हो गया था और ऐसा लगने लगा कि बचना मुश्किल है, तब दारा और औरंगजेब में सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो गया. 1658 में औरंगजेब ने अपने भाई और भतीजों को क़त्ल करके पिता शाहजहाँ को कैद कर दिया. और खुद आगरे का राजा बन गया.
आगरे में औरंगजेब को कभी सम्मान नहीं मिला. तब उसने अपनी राजधानी को दिल्ली ले जाने का निर्णय लिया और पुराने लालकिले का जीर्णोद्धार कराया. आगरा से 21 साल शासन चलाने के बाद औरंगजेब 1679 में अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली ले गया.दिल्ली वालों की नजर में अपने आपको अपने पिता का आज्ञाकारी बेटा साबित करने के लिए ऐसा कर रहा था जबकि उनदिनों उसका बाप आगरे के लालकिले में कैद था और पानी को भी तरस रहा था
No comments:
Post a Comment