Wednesday, 29 August 2018

पानीपत का तीसरा युद्ध और "NOTA"

आज मकर संक्रांति का दिन है. यह भारत का बहुत बड़ा पर्व है जो किसी किसी न किसी रूप में सारे भारत में मनाया जाता है. इस दिन का एक और भी महत्त्व है. आज के दिन (14 जनवरी) ही सन 1661 में पानीपत की तीसरी लड़ाई हुई थी. उत्तर भारतीय राजाओं द्वारा मराठों का साथ न देने के कारण इसमें अब्दाली की जीत हुई थी.
शिवाजी महाराज के समय से ही मराठा शक्ति का उदय हो चूका था जिसे पेशवा बाजीराव ने बहुत आगे बढाया था. मुघलो कि शक्ति बहुत क्षीण हो चुकी थी. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, ब्रज प्रदेश, मालवा, बुंदेलखंड, उडीसा, आदि की भी जियादातर रियासते अपने आपको मुघलों के प्रभुत्व से आजाद कर चुकी थी
ऐसे समय में अफगानिस्तान का शासक बना अहेमद शाह दुर्रानी, जिसको अहेमद शाह अब्दाली भी कहा जाता है. अब्दाली बहुत विशाल सेना लेकर भारत पर हमला करने निकल पड़ा. उत्तर भारत में उस समय हिन्दू राजाओं की छोटी छोटी रियासतें थीं. अहेमद शाह अब्दाली का सामना करना उनके अकेले के बस की बात नहीं थी.
तब पेशवा बालाजी बाजीइराव (नाना साहब प्रथम) ने सदाशिव राव भाऊ को एक मजबूत सेना देकर अब्दाली का सामना करने भेजा. उनकी रणनीति थी कि -अब्दाली को दिल्ली पहुँचने से पहले रोका जाए. इसके अलावा नाना साहब ने उत्तर भारत से सभी हिन्दू राजाओं को सन्देश भेजा कि - मिलकर अब्दाली का सामना किया जाये.
लेकिन पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हिन्दू राजाओं को लगा कि - अगर मराठे अब्दाली को हराने में कामयाब हो गए तो उत्तर भारत में भी उनका प्रभुत्व बढ़ जाएगा. उत्तर भारत के राजाओं ने अब्दाली और मराठों की लड़ाई से तटस्थ रहने का फैसला कर लिया. जिसे आज की भाषा में नोट दबाना कह सकते हैं.
Image may contain: 2 people, beardअवध के नबाब शुजाजुद्दौला ने इस्लाम की रक्षा के लिए काफिरों से जेहाद घोषित कर दिया. शुजाजुद्दौला ने - मुस्लिम रियासतों से आव्हान किया कि - आलमगीर (औरंगजेब) के न रहने के बाद, काफिरों का जोर बढ़ गया है ऐसे में अहमद शाह अब्दाली इस्लाम का रक्षक बन कर आ रहा है. हम सभी को उसका साथ देना चाहिए.
देखते ही देखते छोटी बड़ी मुस्लिम राजाओं और नबाबों की सेना अब्दाली का साथ देने को निकल पडी. अब्दाली के पास 60,000 की सेना थी और पेशवा के पास पास लगभग 40,000. पेशवा को उम्मीद थी कि - राजपूत, जाट, सिक्ख एवं स्थानीय हिन्दू उनका साथ देंगे लेकिन इन सब ने पानीपत की लड़ाई से किनारा कर लिया.
स्थानीय हिन्दू राजाओं ने उनको साथ देना तो दूर भोजन और गर्म कपडे तक उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया.पानीपत की वह लड़ाई 14 जनवरी 1761 मकरसंक्रांति के बेहद सर्द दिन लड़ी गई थी. महाराष्ट्र / गुजरात / मध्य प्रदेश के रहने वाले मराठा उस ठण्ड के आदी नहीं थे और न ही उनके पास गर्म कपडे थे.

"अहेमद शाह अब्दाली" ने महाराष्ट्र में नहीं बल्कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश में भयानक कत्लेआम किया था. अपने पिछले आक्रमणों में उसने कुरुक्षेत्र, पेहोवा, दिल्ली, मथुरा, वृन्दावन, आगरा आदि में कत्लेआम किया था और मंदिर तोड़े थे. यहीं की औरतों के साथ बलात्कार किया. लेकिन उससे लड़ रहे थे मराठा और यहाँ वाले देख रहे थे तमाशा

इसके विपरीत अब्दाली द्वारा जेहाद का नारा देते ही अवध का नवाव सुजा उद दौला, रोहिलखण्ड का नबाब नजीबुद्दीन एवं स्थानीय छोटी छोटी मुस्लिम रियासते और जागीरदार अब्दाली के साथ मिल गये. अब्दाली की साठ हजार की सेना सवा लाख हो गई. और 40,000 मराठा सैनिक खाली पेट युद्ध लड़ रहे थे. परिणाम आपको पता ही है.
भूखे पेट और बिना गर्म कपड़ों के सर्द मौसम में लड़ाई लड़ते हुए मराठों ने अब्दाली को कड़ी टक्कर दी. इस लड़ाई सदाशिवराव भाऊ, पेशवा बालाजी बाजीराव के पुत्र विश्वासराव, ग्वालियर के राजघराने के जानकोजी शिंदे और तुकोजी शिंदे ( सिंधिया ), इंदोर राजघराने के होल्कर, धार और देवास घराने के यशवंतराव पवार आदि ने अपना बलिदान दिया.
पानीपत की इस लड़ाई में मराठा सेना की करारी हार हुई. जो हिन्दू राजा यह सोंचते हुए लड़ाई से अलग हो गए थे कि - यह तो मराठों और अब्दाली की लड़ाई है सबसे ज्यादा नुकशान उनका ही हुआ. पानीपात की लड़ाई जीतने के बाद अब्दाली ने उस इलाके में भयानक कत्लेआम किया, मंदिर तोड़े और महिलाओं की इज्ज़त लूटी.
"अहेमद शाह अब्दाली" ने महाराष्ट्र में नहीं बल्कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश में भयानक कत्लेआम किया. कुरुक्षेत्र, पेहोवा, दिल्ली, मथुरा, वृन्दावन, आदि के मंदिर तोड़े. यहीं की औरतों के साथ बलात्कार किया और अपने साथ गुलाम बनाकर ले गया. जबकि महाराष्ट्र वालों का वो कुछ नुकशान नहीं कर सका.
पानीपत का युद्ध जीतने के बाद अब्दाली और भारत के स्थानीय मुसलमानों ने मराठों से ज्यादा स्थानीय हिन्दुओं और सिक्खों को नुकशान पहुंचाया था. याद रखिये जो लोग इतिहास से सबक नहीं लेते है वो मिट्टी में मिल जाते हैं. धर्मयुद्ध में कोई तटस्थ नहीं रह सकता, जो धर्म के साथ नहीं वह धर्म के बिरुद्ध माना ही जाएगा.
आज के नोटा छाप हिन्दुओं को भी इससे सबक लेना चाहिए. आज भी यही हो रहा है. देश भर के 99% मुसलमान भाजपा के खिलाफ एक जुट है और हिन्दू नोटा नोटा खेलने में व्यस्त है.

No comments:

Post a Comment