Thursday, 9 August 2018

डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार

डा. हेडगेवार का जन्म भारतीय कैलेण्डर के अनुसार वर्ष प्रतिपदा के दिन हुआ था. डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक एवं प्रचण्ड क्रान्तिकारी थे. वे डॉक्टरी पढ़ने के लिये कलकत्ता गये और वहाँ से उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से प्रथम श्रेणी में डॉक्टरी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की, परन्तु घर वालों की इच्छा के विरुद्ध देश-सेवा के लिए नौकरी का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया.
केशव चूँकि कलकत्ता में अपने बडे भाई महादेव के मित्र श्याम सुन्दर चक्रवर्ती के घर रहते थे अत: वहाँ के स्थानीय लोग उन्हें केशव चक्रवर्ती के नाम से ही जानते व सम्बोधित करते थे. केशव बाल्यकाल से ही क्रान्तिकारी विचारों के थे. कलकत्ते में पढाई करते हुए उनका मेल-मिलाप बंगाल के क्रान्तिकारियों से हुआ. उनकी असाधारण योग्यता को मद्देनजर रखते हुए उन्हें अनुशीलन समिति का अन्तरंग सदस्य भी बना लिया गया.
उनकी तीव्र नेतृत्व प्रतिभा को देख कर उन्हें हिन्दू महासभा बंगाल प्रदेश का उपाध्यक्ष बनाया गया. लोकमान्य तिलक की मृत्यु के बाद केशव कॉग्रेस और हिन्दू महासभा दोनों में काम करते रहे. सन् 1916 के कांग्रेस अधिवेशन में लखनऊ गये, वहाँ संयुक्त प्रान्त (वर्तमान यू०पी०) की युवा टोली के सम्पर्क में आये. गांधीजी के अहिंसक असहयोग आन्दोलन / सविनय अवज्ञा आन्दोलनों में भाग लिया.
भारत में गांधी के बाद से ही मुस्लिम सांप्रदायिकता ने अपना सिर उठाना प्रारंभ कर दिया था. 1920ई. में अंग्रेजो ने तुर्की के सुल्तान को गद्दी से उतार दिया, उसके बिरोध में भारत में जगह-जगह आन्दोलन हुए. अंग्रेजों के सामने तो मुसलमानों की चली नहीं, लेकिन उन्होंने मुस्लिम बहुसंख्यक इलाकों में इसका गुस्सा असहाय हिन्दू जनता पर निकाला. बड़ी संख्या में हिंदुओं का कत्ल हुआ और स्त्रियों की इज्जत लूटी गई.
मालाबार, मुल्तान, कोहाट, आदि में हजारों हिन्दू मारे गए, लेकिन कांग्रेस उस हिंसा पर खामोश बनी रही. इस घटना ने उन्हें बिचलित कर दिया था. मालाबार हिंसा पर कांग्रेस के दोगलेपन को देखते उहोने कांग्रेस छोड़ दी और तो आजाद जी के गुट से भी जुड़े. यहाँ उनका क्षद्म नाम केशव चक्रवर्त्ती था. काकोरी ट्रेन काण्ड (9 अगस्त -1925) के फरार आरोपी केशव चक्रवर्त्ती कोई और नहीं बल्कि डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी ही थे.
काकोरी ट्रेन कांड में चार क्रांतिकारियों ( राम प्रसाद विस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह) को फांसी की सजा सुनाई गई थी. 19 दिसम्बर 1927 को उन सभी को फांसी होनी थी. सभी फरार क्रांतिकारी किसी तरह उनको बचाना चाहते थे. केशव चक्रवर्ती के नेत्रत्व में बंगाल के क्रान्तिकारियो के फैजाबाद पहुँचने की खबर मिलने पर अंग्रेजों ने "राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी" को दो दिन पहले 17 दिसंबर को फांसी दे दी थी.
इसी बीच उनको मालाबार (केरल) जाने का अवसर मिला. बहा हिन्दुओं की हुई दुर्दशा को देखकर उन्होंने समझ लिया कि हिन्दूओं एकता ही उनकी सुरक्षा कर सकती है. उन्होंने एक हिंदू-मिलीशिया बनाने का निर्णय लिया. प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की असफल क्रान्ति और तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक अर्ध-सैनिक संगठन की नींव रखी. उन्होंने व्यक्ति की क्षमताओं को उभारने के लिये नये तरीके विकसित किये.
इस प्रकार 28/9/1925 (विजयदशमी दिवस) को डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे, उनके शिष्य डॉ. हेडगेवार, श्री परांजपे और बापू साहिब सोनी ने एक हिन्दू युवक क्लब की नींव डाली, जिसका नाम कालांतर में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ हो गया. इस मिलीशिया का आधार बना - वीर सावरकर का राष्ट्र दर्शन ग्रन्थ (हिंदुत्व) जिसमे हिंदू की परिभाषा यह की गई थी कि - “भारत के वह सभी लोग हिंदू हैं जो इस देश को पितृभूमि-पुण्यभूमि मानते हैं”.
इनमे सनातनी, आर्यसमाजी, जैन , बौद्ध, सिख आदि पंथों एवं धर्म विचार को मानने वाले व उनका आचरण करने वाले समस्त जन को हिंदू के व्यापक दायरे में रखा गया था. मिलीशिया को खड़ा करने के लिए स्वंयसेवको की भर्ती की जाने लगी, सुबह व शाम एक-एक घंटे की शाखायें लगाई जाने लगी. इसे सुचारू रूप से चलाने के लिए शिक्षक, मुख्य शिक्षक, घटनायक आदि पदों का सृजन किया गया.
इन शाखायों में व्यायाम, शरारिक श्रम, हिंदू राष्ट्रवाद की शिक्षा के साथ- साथ वरिष्ठ स्वंयसेवकों को सैनिक शिक्षा भी दी जानी तय हुई. बाद में यदा कदा स्वंयसेवकों की गोष्ठीयां भी होती थी, जिनमें महराणा प्रताप, वीर शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, बंदा बैरागी, वीर सावरकर, मंगल पांडे, तांत्या टोपे आदि की जीवनियाँ भी पढ़ी जाती थीं. वीर सावरकर द्वारा रचित पुस्तकों के अंश भी पढ़ कर सुनाये जाते थे.
उनके द्वारा खडा किया गया यह संगठन "राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ" आज दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है . देश की प्रत्येक समस्या का मुकाबला करने के लिए इसके स्वयं सेवक सदैव तैयार रहते हैं. प्राकृतिक आपदा हो या भीषण दुर्घटना, आतंकवाद हो या अराजक तत्वों का हमला, चीन से युद्ध हो या पापिस्तान से लड़ाई, स्वयंसेवकों ने सदैव आगे लोगों की रक्षा की और सेना को सहयोग दिया है.
इसके अलावा संघ के अनुसांगिक संगठन ( भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, दुर्गा वाहिनी, सिक्षा भारती, संस्कार भारती, सहकार भारती, वनवासी कल्याण मंच, राष्ट्र सेविका समिति, विश्व हिन्दू परिषद्, राष्ट्रीय सिक्ख संगत, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, ... आदि ) गरीबों, मजदूरों, किसानों, महिलाओं, वनवासियों, अल्पसंख्यको आदि की समस्याओं को दूर करने के प्रयास में निरंतर जुटे रहते हैं.
भारत पर मनमाने तरीके से बर्षों राज करती और देश को लूटती आ रही "कांग्रेस" को रोकने के लिए भी, राजनैतिक सोंच वाले स्वयंसेवकों ने "भारतीय जनसंघ" नाम की राजनैतिक पार्टी बनाई जो कालांतर में "भारतीय जनता पार्टी" में परीवर्तित हो गई . 2014 में "भारतीय जनता पार्टी" ने कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों को पछाड़ कर पूर्णबहुमत से सरकार भी बना ली है . जय हिन्द, वन्दे मातरम, भारत माता की जय ,

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