Wednesday, 8 August 2018

अमर क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह

कान्तिकारी ठाकुर रोशन सिंह का जन्म 22 जनवरी 1892 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जनपद में, फतेहगंज कसबे के नजदीक गाँव नबादा में हुआ था. उनकी माता का नाम कौशल्या देवी एवं पिता का नाम ठाकुर जंगी सिंह था. वे अपने पाँच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे. उनका परिवार आर्य समाज का अनुयायी था.
गांधी जी द्वारा चलाये गए असहयोग आन्दोलन में ठाकुर रोशन सिंह ने बढचढ कर हिस्सा लिया था और शाहजहाँपुर, बरेली, पीलीभीत में असहयोग आन्दोलन को विस्तार दिया. बरेली में एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने आन्दोलन कारियों को गोली मारने की धमकी दी, तो उन्होंने पुलिस वाले से बंदूक छीन ली और उन पर फायरिंग कर दी.
पुलिस वाले उस समय तो भाग गए मगर बाद में उनपर मुकदमा चलाया जिसमें उन्हें 2 साल की सजा सुनाई गई. यह सजा उन्होंने बरेली की सेंट्रल जेल में काटी. वहां उनकी मुलाक़ात कानपुर निवासी पंडित रामदुलारे त्रिवेदी से हुई जो उन दिनों पीलीभीत के असहयोग आन्दोलन के लिए 6 महीने की सजा भुगतने बरेली जेल में रखे गये थे.
पंडित रामदुलारे त्रिवेदी ने ही उनको आजाद और विस्मिल के साथ जुड़ने के लिए प्रेरित किया था. जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने आजाद और विस्मिल से मिले. असहयोग आन्दोलन की असफलता और गांधी द्वारा देश को धोखा देकर अचानक आन्दोलन वापस लेने से वे सभी जोशीले युवा गांधी जी के खिलाफ हो गए थे.
असहयोग आन्दोलन के अनेकों साथियों ने कांग्रेस का रास्ता छोड़कर क्रांतिकारी दल "हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन" की स्थापना की. ठाकुर रोशन सिंह भी उनके साथ हो गए. वे बहुत अच्छे निशाने बाज थे. केशव चक्रवर्त्ती (छद्म नाम ) के आग्रह पर उन्होंने दल के अनेकों सदस्यों को बंदूक चलाना सिखाया.
यहाँ गांधी जी के असहयोग आन्दोलन का भी थोडा सा जिक्र करना आवश्यक है. जलियाँबाला बाग़ काण्ड, हिन्दू महासभा, अभिनव भारत और मुसलमानों के धार्मिक आन्दोलन "खिलाफत" के कारण अंग्रेजों के खिलाफ माहौल बना हुआ था . उस माहौल का लाभ उठाने के लिए गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया था.

गांधी जी तो अंग्रेजों से अंग्रेजी शासन के ही अधीन "सुराज" मांग रहे थे लेकिन देश की जनता इसको "स्वराज" का आन्दोलन समझ रही थी. देखते ही देखते गांधीजी का यह अहिंसक आन्दोलन हिंसक आन्दोलन में बदल गया और अंग्रेजों का गांधी परदबाब बढ़ने लगा. ऐसे में गांधी जी आन्दोलन को किसी तरह वापस लेने का बहाना ढूँढने लगे.
इसी बीच गोरखपुर पुर के पास चौरी चौरा में पुलिस ने अहिंसक आन्दोलन कारियों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी जिसमे लगभग 250 आन्दोलनकारी मारे गए और 400 से ज्यादा घायल हो गए. अपने साथियों का यह हाल देखकर आन्दोलनकारियों ने भी पुलिस पर हमला कर दिया और गोलीबाजी करने वाले पुलिस कर्मियों पर हमला कर दिया.
वो पुलिस वाले भागकर थाने में छुप गए तो आन्दोलनकारियों ने थाने को आग लगा दी. जिसमे वो खुनी 23 पुलिसवाले जिन्दा जल गए. गांधी जी तो जैसे ऐसा कोई बहाना ही खोज रहे थे. उन्होंने अंग्रेजों के सामने अपने आपको बेकसूर साबित करने के लिए, आंदोलकारियों को भर्त्सना की और उन्हें आन्दोलनकारी मानने से भी इनकार कर दिया.
आजाद, विस्मिल, रोशन, केशव, लाहिड़ी, आदि ने अंग्रेजों और अंग्रेजों के चापलूस भारतीयों को लूटने की योजना बनाई, जिससे धन की व्यवस्था कर क्रान्ति को व्यापक स्तर पर किया जा सके. इस कार्य को पार्टी की ओर से "ऐक्शन" नाम दिया गया. "एक्सन" के तहत पहली डकैती 25 दिसम्बर 1924 को पीलीभीत की एक खांडसारी में की गई
बमरौली खांडसारी का मालिक बलदेव प्रसाद, अंग्रेजों का बहुत बड़ा चमचा था. इस डकैती में 4000 रूपय नकद और कुछ सोना चांदी भी क्रांतिकारियों के हाथ लगा, लेकिन उनको रोकने की कोशिश करने वाला एक सुरक्षाकर्मी "मोहनलाल पहलवान" , ठाकुर रोशन सिंह की राइफल से निकली गोली से मारा गया.
9 अगस्त 1925 को काकोरी स्टेशन के पास जो सरकारी खजाना लूटा गया था. हालांकि उसमें ठाकुर रोशन सिंह शामिल नहीं थे लेलिन पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर 'केशव चक्रवर्त्ती" की गिरफ्तारी प्रदर्शित कर दी, जो उनके लगभग हमउम्र थे. परन्तु पुलिस उनको केशव चक्रवर्ती या उनका बंगाल से कोई सम्बन्ध साबित नहीं कर सकी.
लेकिन पीलीभीत खांडसारी की लूट और मोहनलाल पहलवान की हत्या के सूत्र मिलने पर, यह मामला और ठाकुर रोशन सिंह के केस को भी "काकोरी केस" से जोड़ दिया गया और उनको भी काकोरी के वीरों के साथ फांसी की सजा सुना दी गई. 19 दिसंबर 1927 को इलाहाबाद की नैनी जेल में उन्होंने फांसी देकर अमर कर दिया गया
इलाहाबाद की नैनी स्थित मलाका जेल के फाँसी घर के सामने अमर शहीद ठाकुर रोशन सिंह की प्रतिमा लगायी गयी है. वर्तमान समय में इस स्थान पर अब एक अस्पताल स्थापित हो चुका है. जिसका नाम स्वरूप रानी अस्पताल है. मूर्ति के नीचे ठाकुर साहब की कही गयी ये पंक्तियाँ भी अंकित हैं -
जिन्दगी जिन्दा-दिली को जान ऐ 'रोशन'
वरना कितने ही यहाँ रोज फना होते हैं

No comments:

Post a Comment